Photo courtesy: Hohaeng.com |
गौरैय्या दिवस 20 मार्च के उपलक्ष्य में विशेष
-शाहजहांपुर नगर क्षेत्र में लिंग अनुपात में भारी गिरावट
-एक हजार पर केवल छह सौ छियालिस लड़कियां
शाहजहांपुर। कटरी के गांव कुंडरी से खबर आई है कि वहां एक घर के आंगन में लगे शीशे को गौरैय्या ने चोंच मार-मार कर तोड़ दिया है। शीशा तोड़ देने से गौरैय्या पर कोई नाराज नहीं है। इस परिवार के लोगों ने पूरे गांव के लोगों को और बाहर वालों को भी बताया कि उनके घर का शीशा गौरैय्या ने तोड़ दिया है। यह बताते वक्त उस परिवार के प्रत्येक सदस्य के चेहरे पर भाव खुशी के होते हैं। जानते हैं इसका मतलब क्या है...यानी गौरैय्या ने लोगों के घरों के आंगन में आना शुरू कर दिया है। यह सब हो पाया है एक अघोषित मुहिम के तहत ही।
20 मार्च 2010 को एक साथ अखबारों में पढ़ने को मिला था गौरैय्या के बारे में। लोगों के दिमाग में यह बात घर कर गई कि आखिर क्यों गौरैय्या देखने को नहीं मिल रही। उसी समय अपील की गई थी कि आप अपने घर की छत पर और ताखों में कटोरी में पानी और गेहूं, चावल के दानें रखिए...ताकि आपके घर के आंगन में चिड़िया गौरैय्या आना शुरू कर दे, जो दिखना बंद हो गई। बात जरा सी थी, बहुत ही छोटी सी अपील थी, लोगों ने ऐसा किया और अब आप उसी गौरैय्या को कहीं भी, किसी के भी घर में आते-जाते यानी दाना चुगते हुए देख सकते हैं।
तो थोड़ा सा सचेत हो जाइए और एक और गौरैय्या को अपने घर के आंगन में आने दीजिए। यह गौरैय्या भी जहां आती-जाती है, वह घर खुशियों से भर जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं, कन्या भू्रण हत्या रोकने के लिए। अभी कुछ दिन पहले की बात है जब अचानक एक दिन यूपी वात्सल्य प्रभारी डा. नीलम सिंह ने अपनी टीम के साथ शाहजहांपुर के कई अल्ट्रासाउंड सेंटर्स पर छापेमारी की। तमाम डाक्टर भाग गए, कई अल्ट्रासाउंड सेंटर्स को सीज कर दिया गया। ऐसा इसलिए हुआ कि अपने शाहजहांपुर नगर क्षेत्र में 1000 हजार पर केवल 646 लड़कियां ही हैं। बीच में यह अनुपात बढ़ा भी था, लेकिन अचानक घट गया। हड़कंप मचा और इसके बाद कार्रवाई के निर्देश हुए, तभी अल्ट्रासाउंड सेंटर्स पर छापेमारी की गई।
-शाहजहांपुर नगर क्षेत्र में लिंग अनुपात में भारी गिरावट
-एक हजार पर केवल छह सौ छियालिस लड़कियां
शाहजहांपुर। कटरी के गांव कुंडरी से खबर आई है कि वहां एक घर के आंगन में लगे शीशे को गौरैय्या ने चोंच मार-मार कर तोड़ दिया है। शीशा तोड़ देने से गौरैय्या पर कोई नाराज नहीं है। इस परिवार के लोगों ने पूरे गांव के लोगों को और बाहर वालों को भी बताया कि उनके घर का शीशा गौरैय्या ने तोड़ दिया है। यह बताते वक्त उस परिवार के प्रत्येक सदस्य के चेहरे पर भाव खुशी के होते हैं। जानते हैं इसका मतलब क्या है...यानी गौरैय्या ने लोगों के घरों के आंगन में आना शुरू कर दिया है। यह सब हो पाया है एक अघोषित मुहिम के तहत ही।
20 मार्च 2010 को एक साथ अखबारों में पढ़ने को मिला था गौरैय्या के बारे में। लोगों के दिमाग में यह बात घर कर गई कि आखिर क्यों गौरैय्या देखने को नहीं मिल रही। उसी समय अपील की गई थी कि आप अपने घर की छत पर और ताखों में कटोरी में पानी और गेहूं, चावल के दानें रखिए...ताकि आपके घर के आंगन में चिड़िया गौरैय्या आना शुरू कर दे, जो दिखना बंद हो गई। बात जरा सी थी, बहुत ही छोटी सी अपील थी, लोगों ने ऐसा किया और अब आप उसी गौरैय्या को कहीं भी, किसी के भी घर में आते-जाते यानी दाना चुगते हुए देख सकते हैं।
तो थोड़ा सा सचेत हो जाइए और एक और गौरैय्या को अपने घर के आंगन में आने दीजिए। यह गौरैय्या भी जहां आती-जाती है, वह घर खुशियों से भर जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं, कन्या भू्रण हत्या रोकने के लिए। अभी कुछ दिन पहले की बात है जब अचानक एक दिन यूपी वात्सल्य प्रभारी डा. नीलम सिंह ने अपनी टीम के साथ शाहजहांपुर के कई अल्ट्रासाउंड सेंटर्स पर छापेमारी की। तमाम डाक्टर भाग गए, कई अल्ट्रासाउंड सेंटर्स को सीज कर दिया गया। ऐसा इसलिए हुआ कि अपने शाहजहांपुर नगर क्षेत्र में 1000 हजार पर केवल 646 लड़कियां ही हैं। बीच में यह अनुपात बढ़ा भी था, लेकिन अचानक घट गया। हड़कंप मचा और इसके बाद कार्रवाई के निर्देश हुए, तभी अल्ट्रासाउंड सेंटर्स पर छापेमारी की गई।
एक साल पहले जब गौरैय्या के संरक्षण के लिए एक बहुत ही छोटी सी अपील लोगों के दिलों में घर कर गई तो इस गौरैय्या यानी पेट में पल रही कन्या को बचाने की मुहिम में आप शामिल हो जाइए...वरना जिस बेटे की चाहत में आप बेटियों का पेट में ही कत्ल कर रहे हैं, उन बेटों को बहुएं नहीं मिलेंगी...बेटे के लिए बहू खरीद कर लानी पड़ेगी...। तो चलिए अब इस गौरय्या यानी की पेट में पल रही कन्या भू्रण को बचाने के लिए।
छोटा सा किस्सा
एक नहीं कई ऐसे परिवार हैं, जहां गौरैय्या यानी बेटी के आने का इंतजार हो रहा है। ऐसा ही एक परिवार है गुप्ता जी का। प्रवीन गुप्ता नाम है इनका। इनके दो बेटे हैं। भाई के भी दो बेटे हैं, परिवार में एक भी बेटी नहीं है। मन्नतें मान रखी हैं कि परिवार में एक बेटी का जन्म हो, ताकि घर में रौनक आ सके। सोचने का तरीका यह है कि बेटों को कैसे पता चलेगा कि रक्षाबंधन का त्यौहार क्यों मनाया जाता है। बहन का महत्व क्या होेता है। बेटे किससे प्यार भरा झगड़ा करेंगे। गुप्ता जी का कहना है कि बेटी एक परिवार में पलती है, पढ़ती है, बढ़ती है और फिर दूसरे परिवार में उसकी शादी होती है। यह बेटी ही होती है तो दो कुनबों का मजबूत जोड़ बनती है। बेटे का क्या भरोसा, लेकिन बेटियों के बारे में देखा गया है कि वह अपने मां-बाप का अंत तक साथ देती हैं। यह बेटियां दो परिवारों का सहारा बनती हैं।
छोटा सा किस्सा
एक नहीं कई ऐसे परिवार हैं, जहां गौरैय्या यानी बेटी के आने का इंतजार हो रहा है। ऐसा ही एक परिवार है गुप्ता जी का। प्रवीन गुप्ता नाम है इनका। इनके दो बेटे हैं। भाई के भी दो बेटे हैं, परिवार में एक भी बेटी नहीं है। मन्नतें मान रखी हैं कि परिवार में एक बेटी का जन्म हो, ताकि घर में रौनक आ सके। सोचने का तरीका यह है कि बेटों को कैसे पता चलेगा कि रक्षाबंधन का त्यौहार क्यों मनाया जाता है। बहन का महत्व क्या होेता है। बेटे किससे प्यार भरा झगड़ा करेंगे। गुप्ता जी का कहना है कि बेटी एक परिवार में पलती है, पढ़ती है, बढ़ती है और फिर दूसरे परिवार में उसकी शादी होती है। यह बेटी ही होती है तो दो कुनबों का मजबूत जोड़ बनती है। बेटे का क्या भरोसा, लेकिन बेटियों के बारे में देखा गया है कि वह अपने मां-बाप का अंत तक साथ देती हैं। यह बेटियां दो परिवारों का सहारा बनती हैं।
कैसे शामिल हों मुहिम
बेटी बचाओ मुहिम में शामिल होने के लिए सबसे पहले तो आपको अपने घर और आसपास वालों को बेटियों के महत्व के बारे में बताना होगा। खास कर उन लोगों पर ज्यादा ध्यान देना होगा, जिनके परिवार में बेटियां ज्यादा हैं और वह लड़के की चाहत रखते हैं। उन्हें बताना पड़ेगा कि बेटी और बेटे में अब कोई अंतर नहीं है। उन्हें जागरूक करने के लिए आपको चरणबद्ध तरीके से उनके दिमाग से बेटे की लालसा को मिटाना होगा। अगर आपको पता चलता है कि किसी अल्ट्रासाउंड सेंटर पर लिंग की जांच की जाती है तो इसकी शिकायत सीएमओ से करें।
बेटी बचाओ मुहिम में शामिल होने के लिए सबसे पहले तो आपको अपने घर और आसपास वालों को बेटियों के महत्व के बारे में बताना होगा। खास कर उन लोगों पर ज्यादा ध्यान देना होगा, जिनके परिवार में बेटियां ज्यादा हैं और वह लड़के की चाहत रखते हैं। उन्हें बताना पड़ेगा कि बेटी और बेटे में अब कोई अंतर नहीं है। उन्हें जागरूक करने के लिए आपको चरणबद्ध तरीके से उनके दिमाग से बेटे की लालसा को मिटाना होगा। अगर आपको पता चलता है कि किसी अल्ट्रासाउंड सेंटर पर लिंग की जांच की जाती है तो इसकी शिकायत सीएमओ से करें।
विवेक सेंगर ( लेखक वर्तमान में दैनिक हिन्दुस्तान शाहजहांपुर के ब्यूरोचीफ हैं। इन्होंने पहले भी गौरैय्या को बहन और बेटी से जोड़ कर कई लेख लिखे हैं, उन लेख को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। इनसे viveksainger1@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं)
एक विचार आया ....बेटी के लिए गौरैया नाम अच्छा रहेगा ...एकदम यूनिक नाम.
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