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International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

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ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Feb 28, 2011

दुधवा लाइव पत्रिका का लेखक जो बन गया देशद्रोही !



एक सरकार के अपराधी का खुला बयान जो बार बार प्रकाशित होता रहा दुधवा लाइव पर...

....अरूणेश आदिवासी हाजिर हो

कोर्ट मुहर्रिर की इस पुकार को सुनते ही ४ पुलिस वाले मुझे न्यायाधीश के केबिन मे सम्मान पूर्वक धकियाते हुये ले चले सम्मान पूर्वक इसलिये कि सारे विश्व की मीडिया मेरे केस पर ध्यान दे रही थी । धकियाते हुये इसलिये कि मै उन पुलिसियो की नजर मे उनके हमवर्दी भाईयो का कातिल था ।  अंदर पहुचते ही जज  सवाल किया  यह तो ब्राह्मण है फ़िर आदिवासी क्यो कहा जा रहा है सरकारी वकील ने कहा  मुकदमा सुनने के बाद आप समझ जायेंगे । इसके बाद आरोपो की सूची पढ़ी गयी  आरोप लगे राष्ट्रद्रोह के और न जाने क्या क्या तमाम आरोप  और दलीले सुनने के बाद जज ने विदेशो से आये प्रतिनिधियो को देखा जो न्याय की सत्यता परखने आये थे इसके बाद जज ने कक्ष मे सरकारी वकील को बुलाया ।


बूढ़े जज ने मेरी जवानी पर तरस खाते हुये आफ़ द रिकार्ड सरकारी वकील से कहा आरोप तो कोई साबित नही होते । जवाब मिला  माननीय  अपराधी शातिर है इसने बहुत  कम सबूत छोड़े थे  मै हूं कि केस खड़ा कर दिया वरना ये तो पाक साफ़ निकल जाता । जज बोले ये कोई बात नही हुई  सबूत कहां है फ़िर इसने हिंसा तो कोई नही की । वकील ने कहा  यह लेख लिख कर आदिवासियो को उन पर हुये अत्याचार और शोषण  समझाता है उनके जंगलो के राष्ट्रीयकरण और उनको इमारती लकड़ी के बागानो मे बदलने की सच्चाई बताता है । यह जानकर आदिवासी सरकार विरोधी होकर नक्सलवादियो के साथ  पुलिस पर हमला करते हैं ।  हिंसा भड़काने का आरोप तो निश्चित साबित होता है हुजूर । इस पर जज ने कहा देश मे अभिव्यक्ती का अधिकार सभी को है और फ़िर यह झूठ भी तो नही कहता है । अब मुझे तुम नक्सली साहित्य मिलने की कहानी नही बताना वो तो तुम्हारा बस चले तो मेरे पास से भी जप्ती दिखा दोगे ।  नही मै इस बेगुनाह को सजा नही दे सकता यह कह कर जज ने अपनी कलम नीचे रख दी ।


असहाय जज को सरकारी वकील ने करूणामयी आंखो से देखकर कहा  माननीय आपको विचलित होने की जरूरत नही है । अपराधी सिस्टम के विरुद्ध है ब्राह्मण कुल मे जन्म लेने के बाद भी दिन भर आदिवासी आदिवासी भजता रहता है। हमने इससे कहा कि लेख लिखो लेकिन केवल यह पांच लाईने लिखना छोड़ दो पर यह नही माना । इसे अच्छी शिक्षा मिली थी आराम से सरकारी नौकरी कर सकता था  ठेकेदारी या दलाली  कर के भी यह सिस्टम का फ़ायदा उठा सकता था यहां तक कि सरकार ने इसके उद्योग मे किसी भी अफ़सर को जाने से मना कर दिया था कि यह खूब पैसा कमाये और चुपचाप बैठे पर यह आदतन अपराधी है बाज नही आता और लिखना बंद नही करता पर अब यह नही बचेगा । मैं आपको एक संशोधित दोहा सुनाता हूं इससे आपको समझ मे आ जायेगा ।

सुनु मनुष्य कहउँ पन रोपी । बिमुख सिस्टम त्राता नहिं कोपी ॥
संकर सहस बिष्नु अज तोही । सकहिं न राखि सिस्टम कर द्रोही ॥


आप इसे आज छोड़ देंगे लेकिन सिस्टम नही छोड़ेगा सच्चे/झूठे सबूत जुटा कर देर सवेर इसे काल कॊठरी मे जाना ही है और नही तो इसकी सुपारी भी दी जा सकती  है । इसलिये हे न्याय शिरोमणी इसे सजा दीजिये । लेकिन जज के कंधे झुके हुये थे उसने कहा नही इसके छोटे छोटे बच्चे हैं मै यह पाप नही कर सकता । अगर जज होने पर मुझे बेगुनाह परिवारो को तकलीफ़ देनी पड़े तो इससे तो अच्छा मैं कोई और काम करके जीवन यापन कर लूंगा । मै अपने ही देशवासी  के साथ अन्याय नही कर सकता ।


अवसाद और शोक से ग्रस्त जज को देखकर वकील ने कहा हे न्यायप्रिय लो मैं तुम्हे दिव्यद्रुष्टी प्रदान करता हूं । देखो मुझे मैं स्वयं सिस्टम हुं । मैं ही घूस खाकर शरीफ़ बना फ़िरता  प्रधानमंत्री भी हू और और फ़ाईल सरकाने वाला चपरासी भी मैं ही   । चापलूसी कर बना राष्ट्रपति भी मैं हूं और मै ही सिस्टम से बाहर जाकर आरोप लगाने पर माफ़ी मांगता नेता प्रतिपक्ष हूं । मैं ही जमीने बेचता कलेक्टर भी हूं और मैं ही जमीने नापता  पटवारी भी ।मै ही घटिया  निर्माण करवाने वाला अभिंयंता भी हूं और मै ही करने वाला ठेकेदार भी । मैं ही सड़क पर खड़ा पैसा खाता हवलदार भी हूं और  स्विस बैंको मे पैसा जमा कराता सेनाध्यक्ष भी । मै ही पेड न्यूज छापते अखबार का मलिक  हूं  और  आफ़िस आफ़िस घूम कर चंदा मांगता पत्रकार भी मैं ही हूं । मैं ही घूस खाने वाला राजा भी हुं और खिलाने वाली प्रजा भी । भ्रष्टाचार करता अधिकारी भी मै हूं और उसकी जांच करने वाला अफ़सर भी मैं हूं । लोकतंत्र , तानाशाही हो या कम्युनिस्म काम मै ही करता हूं । जो मेरी सीमा मे रहता है उसका कॊई  बाल भी बांका नही कर सकता । इस कलिकाल मे मै ही राम हूं और मै ही महादेव भी मैं ही हूं  इसलिये प्रिय सुनो



सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं जजः ।

अहं त्वा सर्व पापेभ्यो मोक्षिष्यामी मा शुचः ।


भगवान सिस्टम के उस दिव्य रूप को देख और दिव्य वाणी कॊ सुन भय जनित श्रद्धा से युक्त जज ने तुरंत मुझे आजीवन कारावास की सजा सुना दी ।


सजा सुनते ही मैं बेहोश होकर  गिर गया आंखे खुली तो देखा बिस्तर के नीचे पड़ा था सामने पत्नी का चेहरा था एक दम अष्टमी की दुर्गा की तरह कपाल खप्पर लिये बोल रही थी दिन मे तो चैन से जीने नही देते रात मे भी आदिवासी जज भगवान वकील बड़बड़ा रहें हैं है जरूर किसी आदिवासी लड़की से टांका फ़िट हो गया है हे भगवान इस आदमी से शादी कर के मेरी जिंदगी झटक गयी है । हालांकि मैं आपसे सहमत हूं कि ऐसा लेखन ठीक नही पर क्या करूं राष्ट्रगान सुनते ही बिना लिखे रुका नही जाता ।



 अरूणेश दवे (लेखक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहते है, पेशे से प्लाईवुड व्यवसायी है, प्लाई वुड टेक्नालोजी में इंडियन रिसर्च इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा।वन्य् जीवों व जंगलों से लगाव है, स्वतंत्रता सेनानी परिवार से ताल्लुक, मूलत: गाँधी और जिन्ना की सरजमीं से संबध रखते हैं। सामाजिक सरोकार के प्रति सजगता,  इनसे aruneshd3@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। इनका मशहूर ब्लाग अष्टावक्र है।) 

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