सृष्टि कन्जर्वेशन एण्ड वेलफेयर सोसाइटी ने शिकारियों और भ्रष्ट प्रशासन के विरूद्ध छेड़ी मुहिम
"खीरी में एक और तेन्दुए की मौत"
दुधवा लाइव डेस्क* जंगल के समीपवर्ती खेतों के किनारे लगाए जाने वाले करंटयुक्त बिजली के तारों में फंसकर २० फ़रवरी को भीरा परिक्षेत्र (छैराती कम्पार्टमेन्ट-दक्षिण खीरी वन प्रभाग) में तेंदुआ मारने की कोई पहली घटना नहीं है......!।
इससे पूर्व लगभग बीस साल पीछे परसपुर परिक्षेत्र में बिजली के करंट से एक बाघिन मरी थी। तब से लेकर अब तक वन विभाग द्वारा ऐसे कोई सार्थक उपाय नहीं किए जा सके हैं जिससे खेतों में लगाए जाने वाले करंट वाले बिजली के तारों में फंसकर कोई वन पशु न मर सके। यह स्थिति वन विभाग की अर्कमण्यता की पोल भी खोलती है।
इससे पूर्व लगभग बीस साल पीछे परसपुर परिक्षेत्र में बिजली के करंट से एक बाघिन मरी थी। तब से लेकर अब तक वन विभाग द्वारा ऐसे कोई सार्थक उपाय नहीं किए जा सके हैं जिससे खेतों में लगाए जाने वाले करंट वाले बिजली के तारों में फंसकर कोई वन पशु न मर सके। यह स्थिति वन विभाग की अर्कमण्यता की पोल भी खोलती है।
मालूम हो कि नार्थ खीरी फारेस्ट डिवीजन की पलिया रेंज के तहत परसपुर परिक्षेत्र में दो फरवरी 1992 को एक बाघिन का शव पाया गया था, यह बाघिन खेत के किनारे लगाए गए करंटयुक्त बिजली के तारों में फंसकर मरी थी। यद्यपि इस घटना के बाद वन विभाग द्वारा यह प्रयास किए गए थे कि जंगल के समीपवर्ती खेतों के किनारे लोग बिजली के तार न लगा सके। किन्तु समय व्यतीत होने के साथ ही प्रयास भी गायब हो गए। जबकि समस्या ज्यों कि त्यों बनी रही क्योंकि जंगल के वनपशु फसलों को नुकसान न पहुंचाने पाए इसीलिए लोग अभी भी खेतों के किनारे बिजली के तारों को लगाने से परहेज नहीं करते है। यह स्थिति क्यों है इसका भी प्रमुख कारण है कि जंगल में नर्म व मुलायम चारा की कमी के कारण वनपशु जंगल की खुली सीमा को लांघकर समीपवर्ती खेतों में आ जाते हैं। यह वनपशु फसल को नुकसान न पहुंचा सकें इसकी रोकथाम के लिए गरीब किसान तो अपने खेतों के किनारे रस्सी आदि बांधने के साथ ही बांस आदि लगा देते हैं किन्तु उच्च वर्ग के किसान अथवा फार्मर जिनके खेतों में ट्यूबवेल हैं और वह बिजली के मोटरों से पानी निकालकर खेतों की सिंचाई करते हैं वह फसलों की सुरक्षा के लिए बिजली तार खेतों के किनारे लगा देते हैं और उन तारों में निकटवर्ती विद्युतपोल अथवा ट्यूबवेल के पंप हाउस से उसमें करंट दौड़ा देते हैं परिणाम यह होता है कि इन तारों की चपेट में आने से तमाम वनपशु असमय काल के गाल में समा जाते हैं। जिनकी किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होती है वह भी इसीलिए क्योंकि इसमें अधिकांश सुअर, हिरन, चीतल, पाढ़ा आदि वनपशु ही अपनी जान गंवाते हैं जो मरने के बाद मांसाहारियों के लिए आसान शिकार भी होते हैं। किन्तु जब कोई लुप्तप्राय प्राणी यानी बाघ या तेंदुआ तारों की चपेट में आकर मरता है तब इस बात का भी खुलाशा हो जाता है कि खेतों में बिजली वाले तारों के लगाने का सिलसिला निर्वाध रूप से जारी है।
उल्लेखनीय है कि विगत साल नार्थ खीरी फारेस्ट डिवीजन की परसपुर परिक्षेत्र में करंटयुक्त बिजली के तारों में फंसकर बाघ मारा गया था। इसके बाद 26 दिसम्बर 2010 को दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में शामिल किशनपुर वनपशु विहार के जंगल से सटे कटैया ग्राम के पास बिजली के तारों में फंसकर एक तेंदुआ मर गया था। अपने बचाव में लोगों ने तेंदुआ के शव को दूसरी जगह पहुंचाकर असलियत पर पर्दा डालने का प्रयास किया जिसमें यूं सफल भी हुए क्योंकि पार्क प्रशासन ने तथाकथित अभियुक्तों को पकड़कर जेल भेजकर अपनी पीठ थपथपा ली लेकिन यह पता लगाने का प्रयास नहीं किया कि आखिर तेंदुआ कहां पर बिजली के तारों की चपेट में आया? इस घटना को लोग भूल भी नहीं पाए थे कि बीती 20 फरवरी को साउथ खीरी फारेस्ट डिवीजन की भीरा वनरेंज क्षेत्र में एक मादा तेंदुआ बिजली के तारों में फंसकर असमय काल कवलित हो गई। अपने बचाव में एक बार फिर से तेंदुआ के शव को लोगों ने दूसरी जगह पहुंचा दिया ताकि यह पता न लग पाए कि मादा तेंदुआ कहां पर बिजली के तारों में फंसी थी। लगभग बीस साल के बाद भी वन विभाग कोई ऐसी पुख्ता व्यवस्था नहीं कर पाया है कि जिससे वनपशु जंगल के बाहर आकर समीपवर्ती खेतों में न जा सकें? यह स्वयं में एक विचारणीय प्रश्न है ही साथ में यह स्थिति वन विभाग की अकर्मण्यता को भी उजागर करती है।
सृष्टि कनजरवेशन एण्ड वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष अनूप गुप्ता, महामंत्री डीपी मिश्र आदि पदाधिकारियों समेत क्षेत्र के वन्यजीव प्रेमियों ने जंगल के किनारे खेतों में करंटयुक्त बिजली के तार लगाने वालों की पहचान कर उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही किए जाने तथा वनपशु जंगल के बाहर न आ सके इसकी रोकथाम के लिए जंगल के किनारे सुरक्षा खाई बनाए जाने की मांग वन विभाग के उच्चाधिकारियों से की है।
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