उत्तर भारत में जारी है परिन्दों का व्यापार
शाहजहाँपुर में सड़कों पर खुलेआम बेची जा रही हैं लाल मुनिया
स्ट्राबेरी फ़िंच (रेड अवादवात)
अमन्डवा अमन्डवा (फ़ैमिली-एस्ट्रीडिडी) इस सुन्दर चिड़िया को स्ट्रावेरी फ़िन्च भी कहते है। यह आकार में तकरीबन १० से.मी. है, इस चिड़िया की प्राकृतिक मौजूदगी दक्षिण एशिया और मलेशिया में है।
आई०य़ू० सी०एन० की रेड लिस्ट में यह पक्षी कम से कम प्रासंगिकता के स्तर पर रखा गया हैं, चूंकि यह सामन्यत: पाया जाने वाला पक्षी है, इसलिए इसकी संख्या का निर्धारण नही किया गया। जैसे गौरैया की सामन्यत: स्थानीय स्तर पर मौजूदगी ने लोगों को उसके बारे में सोचने की आवश्यकता नही महसूस की, और अचानक एक दिन जब वह हमारे बीच से गायब होने लगी तब हम विचलित हो गये और वह सारी कवायदे कर डालने का प्रयास भी करने लगे की आखिर यह चिड़िया कैसे बचाई जाए?
यह स्ट्राबेरी फ़िंच (लाल मुनिया, रेड अवादवात) जिसको यह नाम स्ट्राबेरी के रंग की तरह होने के कारण मिला है, और इसके शरीर पर रंगीन धब्बे इसकी खूबसरती को और बढ़ा देते हैं और इसी खूबसूरती को कैद कर लेने की चाहत ने इन परिन्दों के वजूद पर सवालिया निशान लगा दिया हैं। कभी उत्तर भारत में खेतों, झड़ियों में सामन्यत: दिखाई दे जाने वाली यह चिड़िया अब गायब हो चुकी है, और जहाँ जहाँ यह मौजूद है वहाँ-वहाँ बहेलियों के जाल बिछे हुए हैं, चूकिं यह परिन्दा अभी गिद्धों या गौरैया की तरह दुर्गति को प्राप्त नही हुई है, इस लिए हमारा कथित वैज्ञानिक समाज इस पर विचार करना जरूरी नही समझता !
शाहजहाँपुर, खीरी, बहराइच, पीलीभीत, सीतापुर आदि जनपदों में धड़ल्ले से इस खूबसूरत परिन्दों का व्यापार किया जा रहा हैं। जीवों के प्रति मानव समाज की यह क्रूरता उनके अस्तित्त्व को मिटा रही है, यदि जल्द ही हमने अपने आस-पास की चीजों पर बारीकी से गौर नही किया तो तमाम तबाह होती चीजों को हम नज़रन्दाज करते जाएगे, जो जीव-जन्तुओं की विलुप्ति की दर को और रफ़्तार दे देगा।
शाहजहाँपुर में सड़कों पर खुलेआम बेची जा रही हैं लाल मुनिया
स्ट्राबेरी फ़िंच (रेड अवादवात)
अमन्डवा अमन्डवा (फ़ैमिली-एस्ट्रीडिडी) इस सुन्दर चिड़िया को स्ट्रावेरी फ़िन्च भी कहते है। यह आकार में तकरीबन १० से.मी. है, इस चिड़िया की प्राकृतिक मौजूदगी दक्षिण एशिया और मलेशिया में है।
आई०य़ू० सी०एन० की रेड लिस्ट में यह पक्षी कम से कम प्रासंगिकता के स्तर पर रखा गया हैं, चूंकि यह सामन्यत: पाया जाने वाला पक्षी है, इसलिए इसकी संख्या का निर्धारण नही किया गया। जैसे गौरैया की सामन्यत: स्थानीय स्तर पर मौजूदगी ने लोगों को उसके बारे में सोचने की आवश्यकता नही महसूस की, और अचानक एक दिन जब वह हमारे बीच से गायब होने लगी तब हम विचलित हो गये और वह सारी कवायदे कर डालने का प्रयास भी करने लगे की आखिर यह चिड़िया कैसे बचाई जाए?
लाल मुनिया(स्ट्राबेरी फ़िंच) को वैक्सबिल भी कहते है क्योंकि इसकी चोच का रंग गहरा लाल पुरानी सील की तरह होता है, पुरानी दुनिया के उष्ण कटिबन्धीय पक्षियों की शंक्वाकार चोंच का गहरा लाल रंग का होने के कारण ही इन्हे वैक्सबिल कहा गया। जोकि पुराने जबाने में इस्तेमाल की जाने वाली सील (मोम और तारपीन तेल को रंग में मिश्रित कर बनाया जाता है) के रंग की तरह होता है, के कारण इन पक्षियों को वैक्सबिल कहा जाता हैं। केवल इसी वैक्सबिल पक्षी के नर में यह खूबी होती है कि वह प्रजनन के समय और उसके बाद में अपने पूर्व रंग को प्राप्त कर लेता है। नर स्ट्राबेरी फ़िंच का सिर, शरीर का पृष्ठ भाग, पंख गहरे भूरे लाल रंग के होते है, और पूंछ काले रंग की एंव बचा हुआ शेष शरीर चमकीले व सफ़ेद रंग के गोलाकार धब्बों से आच्छादित होता है। नर स्ट्राबेरी फ़िंच प्रजनन काल व्यतीत हो जाने के बाद मादा की तरह रंग-रूप में समान दिखाई देता है। प्रजनन काल के अतरिक्त समय में ये पक्षी गहरे भूरे रंग के हो जाते है, पूंछ का निचला व ऊपरी हिस्सा गहरा लाल, और मादा के शरीर पर भी सफ़ेद रंग के धब्बे मौजूद होते है।
यह स्ट्राबेरी फ़िंच (लाल मुनिया, रेड अवादवात) जिसको यह नाम स्ट्राबेरी के रंग की तरह होने के कारण मिला है, और इसके शरीर पर रंगीन धब्बे इसकी खूबसरती को और बढ़ा देते हैं और इसी खूबसूरती को कैद कर लेने की चाहत ने इन परिन्दों के वजूद पर सवालिया निशान लगा दिया हैं। कभी उत्तर भारत में खेतों, झड़ियों में सामन्यत: दिखाई दे जाने वाली यह चिड़िया अब गायब हो चुकी है, और जहाँ जहाँ यह मौजूद है वहाँ-वहाँ बहेलियों के जाल बिछे हुए हैं, चूकिं यह परिन्दा अभी गिद्धों या गौरैया की तरह दुर्गति को प्राप्त नही हुई है, इस लिए हमारा कथित वैज्ञानिक समाज इस पर विचार करना जरूरी नही समझता !
शाहजहाँपुर, खीरी, बहराइच, पीलीभीत, सीतापुर आदि जनपदों में धड़ल्ले से इस खूबसूरत परिन्दों का व्यापार किया जा रहा हैं। जीवों के प्रति मानव समाज की यह क्रूरता उनके अस्तित्त्व को मिटा रही है, यदि जल्द ही हमने अपने आस-पास की चीजों पर बारीकी से गौर नही किया तो तमाम तबाह होती चीजों को हम नज़रन्दाज करते जाएगे, जो जीव-जन्तुओं की विलुप्ति की दर को और रफ़्तार दे देगा।
संपादक की कलम से...
दुधवा लाइव डेस्क
हम लानत मिलने की हद तक लापरवाह हैं। जब तक सब कुछ लुट पिट नहीं जाता। हम बेचैन नहीं होते हैं। यही नाबे चैनी नुकसान की जनक है। आपका प्रयास सराहनीय है, आखिर कुछ तो टूटेगा। जागृति तो आएगी ही, पर समय पर आये तो बेहतर रहेगा।
ReplyDeleteबाजार में बिकने के लिए कैद इन नन्हें खूबसूरत पक्षियों को देखती हूं तो मन उदास हो जाता है। आपने इनके खत्म होते जाने की बात कह कर और अधिक दुखित कर दिया है। आप इन्हें बचाने के लिए आवाज उठा रहे हैं यह बात दूर- दूर तक पंहुचनी चाहिए। क्योंकि ऐसे खूबसूरत हजारों पक्षी भारत के हर कोने में हैं और अब कम नजर आते हैं। आपकी खोज और प्रयास को सलाम.
ReplyDelete-डॉ. रत्ना वर्मा