फोटो साभार: शारिक़ खान |
दुघर्टना नही साजिशन दी गई बेजुबान को मौत
- किशनपुर सेंक्चुरी में कांबिंग पर उठे सवाल
आखिरकार साल २०१० जाते जाते वन्यजन्तु प्रेमियों को निराश और बाघों के लिए संरक्षित दुधवा नेशनल पार्क के माथे पर बदनामी का एक और दाग दे गया। इसे किशनपुर सेंक्चुरी अधिकारियों की नाकामी नहीं तो और क्या कहेंगे कि पार्क एरिया में घुसकर हष्ठपुष्ठ तेंदुए को कातिलों ने आखिरकार बेजुबान की जान ले ली। किशनपुर सेंक्चुरी अधिकारी इस कत्ल पर लोगों और पार्क अधिकारियों को गुमराह कर अपना दामन बचाने में लगे हुए हैं। साफ हो चुका है कि तेंदुए की मौत किसी झाड़ में फंसने से नहीं बल्कि शिकारियों के लगाए गए लोहे के तार के फंदे में फंसकर हुई है। इस फंदें में फंस कर यह बेजुबां जानवर तड़प-तड़प कर मर गया मगर शिकारियों के गढ़ किशनपुर मे अलर्ट का दावा करने वाले अफसरानों को कानों कान इसकी भनक भी न लगी। महकमा तब जागा जब चरवाहों ने इसकी जानकारी दी। लापरवाही की यह दास्तां किशनपुर में अब आम हो चुकी है।
दुधवा नेशनल पार्क के किशनपुर में ये पहला हादसा नही है, इससे पहले किशनपुर में कई हादसे हो चुके हैं। इस बार भी तेंदुआ लोहे के तार के शिकंजे में फंसा हुआ था और उसके कमर के हिस्से से बुरी तरह खून भी बह रहा था। किशनपुर सेंक्चुरी शिकारियों का गढ़ मानी जाती है,यहां शिकारी आए दिन किसी न किसी घटना को अंजाम देते रहते हैं।
काहे का अलर्ट, काहे की चौकसी
किशनपुर सेंक्चुरी में अधिकारी अलर्ट का दावा भी करते हैं, लेकिन यह अलर्ट सिर्फ कागजी ही है जो इस घटना से साबित भी हो चुका है। अगर अलर्ट कागजों की बजाए अमली होता तो इस बेजुबां तेंदुए की जान बच सकती थी।
अब्दुल सलीम खान (लेखक एक प्रतिष्ठित अखबार में संवाददाता हैं, मौजूदा हालात में मानवीय मूल्यों पर दमदार रिपोर्टिंग, वन्य-जीवन के प्रति प्रेम, लखीमपुर खीरी के गुलरिया कस्बे में निवास, इनसे salimreporter. lmp@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)
bahut badhiya
ReplyDeletejangal ke ped katva kar becne fursat mile
ReplyDeleteto janvar bchay jay na
Will the forest officers of Kishanpur santuary still wake up ?
ReplyDeleteThanks Mr. Abdul for highlighting this sad incident.
Ravindra Yadav