जहाँ मनुष्य और बाघ एक साथ रहते थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद लेफ़्टीनेंट बिली अर्जन सिंह खीरी जनपद में खेती करने के उद्देश्य से सन १९४६ में आये। खीरी के जंगलों से वह पूर्व परिचित थे कभी विजय नगर के राजा के साथ वह यहाँ शिकार खेलने आया करते थे। वर्तमान दुधवा नेशनल पार्क जो उस वक्त खीरी वन विभाग का उत्तरी-पश्चिमी वन प्रभाग हुआ करता था में पलिया कस्बे के निकट एक कृषि-भूमि क्रय की, और अपने पिता के नाम पर इस कृशि फ़ार्म का नाम "जस्वीर नगर" रखा। खीरी के जंगलों में भ्रमण करते वक्त सन १९५९ में सुहेली और नेवरा नदी के जंक्शन पर इन्होंने वह भूमि देखी जहाँ आज टाइगर हैवन स्थित हैं। इस सुरम्य स्थल को वन्य जीवन की प्रयोगशाला बनाकर बिली अर्जन सिंह ने ५० वर्ष से अधिक वन व वन्य जीव सरंक्षण में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते रहे।
सन १९७२ में श्रीमती इन्दिरा गाँधी के टाइगर हैवन आने की संभावना पर बिली अर्जन सिंह नें इस भवन को दोमंजिला बनाया कुछ इस तरह जैसे ग्रेट ब्रिटेन में महारानी के वहाँ जाने पर उस भवन में ऊपरी मंजिल को एक खूबसूरत शक्ल देकर एक अलग हिस्से का निर्माण किया जाता था।
टाइगर हैवन में निवास कर रहे बाघ व तेन्दुओं पर कई अन्तर्राष्ट्रीय फ़िल्म निर्माताओं ने डॉक्युमेन्ट्री फ़िल्मों का निर्माण किया। इन फ़िल्मों के माध्यम से टाइगर हैवन को विश्व में ख्याति अर्जित हुई।
तारा नाम की बाघिन, जूलिएट व हैरियट तथा प्रिन्स नाम के तेन्दुओं का दुधवा के जंगलों में पुनर्वासन कार्यक्रम।
प्रसिद्ध बाघ सरंक्षक बिलिंडा राइट की माँ श्रीमती एन राइट ने बिली अर्जन सिंह को तेन्दुए का शावक भेंट किया, जो बिहार में अपनी माँ से बिछड़ गया था। बिली ने इसका नाम प्रिन्स रखा, यह तेन्दुआ वयस्क होकर खीरी जनपद के जंगलों में अपनी प्रजाति से घुल-मिल गया था।
टाइगर हैवन के इन सफ़ल प्रयोगों पर बिली द्वारा दुधवा के बाघों में आनुवंशिक प्रदूषण फ़ैलाने के आरोप भी लगे। तारा बाघिन जो इंग्लैड से लाकर दुधवा में पुनर्वासित हुई वह साइबेरियन व रायल बंगाल की शंकर नस्ल साबित हुई। बाघ की कोई उप-जाति नही होती हैं, वह विभिन्न भौगोलिक स्थितियों में रहते हैं, था इसके अनुरूप उनका शारीरिक विकास होता है, यह रेसेज में विभिन्न माने जाते हैं, जैसे होमो-सैपियन्स, चाहे वह अफ़्र्रेकन हो या भारतीय, इनके आपस में प्रजनन करने से किसी प्रकार की आनुवशिंक प्रदूषण की आंशका नही होती। विभिन्न आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार इससे इन-ब्रीडिंग की समस्या समप्त होती हैं, और नस्ले और अधिक संमृद्ध व विकसित होती हैं।
टाइगर हैवन में बाघों पर हुए प्रयोगों के परिणाम स्वरूप दुधवा के जंगलों में रायल बंगाल-साइबेरियन (साइबेरियन-बंगाल टाइगर की संकर नस्ल वाली तारा बाघिन के दुधवा के रायल बंगाल टाइगर्स के मध्य प्रजनन के कारण) नस्ल के बाघों की उपस्थिति दर्ज हुई हैं, कई वैज्ञानिक सम्स्थानों ने डी०एन०ए० की जाँच के उपरान्त यह आंशकां व्यक्त की हैं, कि बिली के बाघ पुनर्वासन से दुधवा व खीरी जनपद के वनों में द्वि-नस्ली बाघ उत्पन्न हुए।
टाइगर हैवन के बाघ व तेन्दुओं के जंगली बाघों व तेन्दुओं के संपर्क में आने के पश्चात जंगल के बाघों व तेन्दुओं की आमद टाइगर हैवन में बढ़ गयी। जिस कारण वहाँ कई मानव भक्षण की घटनायें हुई। कहा जाता है कि टाइगर हैवन की बाघिन तारा नर-भक्षी हो गयी थी और उसने ५० से अधिक मानव-भक्षण की घटनायें की। किन्तु टाइगर हैवन के मालिक अर्जन सिंह यह नही मानते थे। उनके अनुसार ये घटनाएं दुधवा के बाघों द्वारा की जा रही थी।
वर्तमान में बिली के उपरान्त टाइगर हैवन इस वर्ष आई बाढ़ में क्षतिग्रस्त हो गया। और अब यहाँ वन्य-जीव सरंक्षण से संबधित कोई कार्य नही किया जाता। टाइगर हैवन की कृषि-भूमि पर की फ़सले उगाई जाती है।
A good article by young writer on the oldest and greatest symbol of tiger conservation in India; Mr. Billy Arjan Singh.
ReplyDeleteHis single handed effort made Dudhwa a tiger reserve & protected tigers of Dudhwa & Barahsingha.
I suggest Dudhwa T.R. should be renamed Billy Arjan Singh tiger reserve in his memory.
RAVINDRA YADAV