शहर के नज़दीक पहुंचा गजराज
........अब ये विशाल जानवर कहाँ जाए!
(२९ नवम्बर २०१०, लखीमपुर खीरी) सिकुड़ते जंगल और अन्धाधुन्ध वन कटान भारत में जंगली हाथियो के लिए मुसीबत बनते जा रहे है, ताजा मामला लखीमपुर खीरी जिले के शरदानगर वन-रेन्ज गौरतारा गाँव एंव नऊवापुरवा गाँव का है, शारदा नदी से निकली हुई शारदा सहायक पोषक नहर के किनारे-किनारे ये जंगली हाथी लखीमपुर शहर के नज़दीक इन गांवों में आ पहुंचे, यहां आकर इस हाथी के झुण्ड ने फसलों को नुकसान पहुचाना शुरू कर दिया। अपने जंगली व्यवहार के चलते हाथी तो अपना मौलिक व्यवहार ही कर रहा था, पर गांव वालों का व्यवहार हाथी के प्रति जो था वो भी कही से भी सामान्य नही कहा जा सकता। हाथी अपने व्यवहार के मुताबिक ही गन्ने की फसल को खा रहा था। पर गांव वाले मजा लेने को उस बेजुबान पर पत्थर बरसा रहे थे। कुछ तो अपनी दिलेरी दिखाने को वहां कच्ची के नसे मे पत्थर फेंक रहे थे। हाथी तो ठहरा हाथी वो भी लोगों को अपनी ताकत और हिम्मत का बखूबी परिचय दे रहा था। कभी वो अपनी सूढ उठाकर अपनी ऊपर ईंटे फेंक रहे लोगों का विरोध जताता, पर लोग कहां मानने वाले वो तो हाथी के पीछे ही पड गए थे। ये सिलसिला देर शाम तक चलता रहा, करीब तीस बीघे का गन्ने का वो खेत हाथी के छुपने के लिए पर्याप्त था, ग्रामीणों द्वारा गन्ने के खेत में ईंट-पत्थर फ़ेके जाने व शोर मचाने पर हाथी कभी गन्ने के खेत से अचानक निकल कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता था, लेकिन लोगों के शोर मचाने पर वो फ़िर गन्ने के खेत में छुप जाता था, जंगली हाथी को देखकर लोगों की उत्सुकता भी इस कदर थी कुछ लोग शीशम व नीम के पेड़ों पर चढ़कर हाथी को लोकेट कर रहे थे, मामला शहर के नज़दीक का था, तो मीडियाकर्मी भी कहां पीछे रहने वाले थे, हाथी और ग्रामीणों का यह द्वन्द इलेक्ट्रानिक मीडिया के भाईयों के लिए चलती फ़िरती टी०आर०पी० का खेल था, वही प्रिन्ट मीडिया के कुछ क्षेत्रीय संवाददाता अपने-अपने फ़्लैश चमकाते हुए, कभी भागते हुए लोगों की तो कभी जंगली हाथी की तस्वीरे ले रहे थें। कुछ उत्साही युवक इस मनोरंजक क्षण को गवाना नही चाहते थे, आस-पास में खबर फ़ैलते ही वहां सैकड़ो की भीड़ इस अजूबे को देखने के लिए उमड़ पड़ी थी। मुझे जहां तक पता है, हाथी एक बेहद सीधा व अनुशासित जानवर माना जाता है, पर हाथी और लोगों के बीच का द्वन्द यह मैं अपनी आंखों से पहली बार देख रहा था, गन्ने के खेत अन्दर जाकर हाथी, लगभग विलुप्त सा हो रहा था, केवल उसकी थोड़ी सी पीठ कभी-कभी दिख रही थी, लेकिन जब वह सूढ उठाकर हवा में इधर उधर घुमाता था, तो मानो ऐसा लगता था, जैसे किसी निर्जन स्थान पर मोबाइल का सिग्नल चला जाता है, तो आदमी हवा में मोबाइल को ऊंचा उठाकर सिग्नल तलाश करता है, वैसे ही हाथी अपनी सूढ को उठाकर आस-पास के खतरे को भापने का प्रयास करता दिखाई पड़ता था।
खबर वन विभाग वालों तक भी पहुंच चुकी थी, सो वह भी अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थे, बन्दूको और रायफ़लो से लैस थे, कभी कभार दुस्साहसी गांव वालों को हड़का भी रहे थे, और समझा भी, सुबह से शुरू हुआ, हाथी और लोगों का यह द्वन्द देर शाम तक यूं ही चलता रहा, हाथी कई बार गन्ने के खेत से निकल निकल कर लोगों को घुड़की देता रहा, लेकिन उसकी आंखों में अपने झुण्ड से विछड़ने का दर्द और गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था, पर इस दर्द और गुस्से को पढ़ने वाला वहा कोई नही था, गांव के कुछ बुजर्ग हाथी को देखकर युवाओं को हाथी की पुरानी कहानियां सुना रहे थे, कोई कह रहा था, कि हाथी सबसे तेज दौड लेता है, और गुस्से में आ जाए तो उससे खतरनाक भी कोई नही होता, पर इस सब के बीच वन विभाग के अफ़सरो का मानना था, कि ये हाथी, नेपाल के प्रवासी हाथियों से विछुड़ कर दुधवा नेशनल पार्क होते हुए यहां तक पहुंच गया है, इन हाथियों की सख्या तीन बताई जा रही है, जो अलग अलग जगहो पर होने का अन्देशा है, फ़ूलबेहड़ क्षेत्र से लेकर नकहा इलाके तक इन हाथियों के आने की खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल चुकी है।
........अब ये विशाल जानवर कहाँ जाए!
(२९ नवम्बर २०१०, लखीमपुर खीरी) सिकुड़ते जंगल और अन्धाधुन्ध वन कटान भारत में जंगली हाथियो के लिए मुसीबत बनते जा रहे है, ताजा मामला लखीमपुर खीरी जिले के शरदानगर वन-रेन्ज गौरतारा गाँव एंव नऊवापुरवा गाँव का है, शारदा नदी से निकली हुई शारदा सहायक पोषक नहर के किनारे-किनारे ये जंगली हाथी लखीमपुर शहर के नज़दीक इन गांवों में आ पहुंचे, यहां आकर इस हाथी के झुण्ड ने फसलों को नुकसान पहुचाना शुरू कर दिया। अपने जंगली व्यवहार के चलते हाथी तो अपना मौलिक व्यवहार ही कर रहा था, पर गांव वालों का व्यवहार हाथी के प्रति जो था वो भी कही से भी सामान्य नही कहा जा सकता। हाथी अपने व्यवहार के मुताबिक ही गन्ने की फसल को खा रहा था। पर गांव वाले मजा लेने को उस बेजुबान पर पत्थर बरसा रहे थे। कुछ तो अपनी दिलेरी दिखाने को वहां कच्ची के नसे मे पत्थर फेंक रहे थे। हाथी तो ठहरा हाथी वो भी लोगों को अपनी ताकत और हिम्मत का बखूबी परिचय दे रहा था। कभी वो अपनी सूढ उठाकर अपनी ऊपर ईंटे फेंक रहे लोगों का विरोध जताता, पर लोग कहां मानने वाले वो तो हाथी के पीछे ही पड गए थे। ये सिलसिला देर शाम तक चलता रहा, करीब तीस बीघे का गन्ने का वो खेत हाथी के छुपने के लिए पर्याप्त था, ग्रामीणों द्वारा गन्ने के खेत में ईंट-पत्थर फ़ेके जाने व शोर मचाने पर हाथी कभी गन्ने के खेत से अचानक निकल कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता था, लेकिन लोगों के शोर मचाने पर वो फ़िर गन्ने के खेत में छुप जाता था, जंगली हाथी को देखकर लोगों की उत्सुकता भी इस कदर थी कुछ लोग शीशम व नीम के पेड़ों पर चढ़कर हाथी को लोकेट कर रहे थे, मामला शहर के नज़दीक का था, तो मीडियाकर्मी भी कहां पीछे रहने वाले थे, हाथी और ग्रामीणों का यह द्वन्द इलेक्ट्रानिक मीडिया के भाईयों के लिए चलती फ़िरती टी०आर०पी० का खेल था, वही प्रिन्ट मीडिया के कुछ क्षेत्रीय संवाददाता अपने-अपने फ़्लैश चमकाते हुए, कभी भागते हुए लोगों की तो कभी जंगली हाथी की तस्वीरे ले रहे थें। कुछ उत्साही युवक इस मनोरंजक क्षण को गवाना नही चाहते थे, आस-पास में खबर फ़ैलते ही वहां सैकड़ो की भीड़ इस अजूबे को देखने के लिए उमड़ पड़ी थी। मुझे जहां तक पता है, हाथी एक बेहद सीधा व अनुशासित जानवर माना जाता है, पर हाथी और लोगों के बीच का द्वन्द यह मैं अपनी आंखों से पहली बार देख रहा था, गन्ने के खेत अन्दर जाकर हाथी, लगभग विलुप्त सा हो रहा था, केवल उसकी थोड़ी सी पीठ कभी-कभी दिख रही थी, लेकिन जब वह सूढ उठाकर हवा में इधर उधर घुमाता था, तो मानो ऐसा लगता था, जैसे किसी निर्जन स्थान पर मोबाइल का सिग्नल चला जाता है, तो आदमी हवा में मोबाइल को ऊंचा उठाकर सिग्नल तलाश करता है, वैसे ही हाथी अपनी सूढ को उठाकर आस-पास के खतरे को भापने का प्रयास करता दिखाई पड़ता था।
खबर वन विभाग वालों तक भी पहुंच चुकी थी, सो वह भी अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थे, बन्दूको और रायफ़लो से लैस थे, कभी कभार दुस्साहसी गांव वालों को हड़का भी रहे थे, और समझा भी, सुबह से शुरू हुआ, हाथी और लोगों का यह द्वन्द देर शाम तक यूं ही चलता रहा, हाथी कई बार गन्ने के खेत से निकल निकल कर लोगों को घुड़की देता रहा, लेकिन उसकी आंखों में अपने झुण्ड से विछड़ने का दर्द और गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था, पर इस दर्द और गुस्से को पढ़ने वाला वहा कोई नही था, गांव के कुछ बुजर्ग हाथी को देखकर युवाओं को हाथी की पुरानी कहानियां सुना रहे थे, कोई कह रहा था, कि हाथी सबसे तेज दौड लेता है, और गुस्से में आ जाए तो उससे खतरनाक भी कोई नही होता, पर इस सब के बीच वन विभाग के अफ़सरो का मानना था, कि ये हाथी, नेपाल के प्रवासी हाथियों से विछुड़ कर दुधवा नेशनल पार्क होते हुए यहां तक पहुंच गया है, इन हाथियों की सख्या तीन बताई जा रही है, जो अलग अलग जगहो पर होने का अन्देशा है, फ़ूलबेहड़ क्षेत्र से लेकर नकहा इलाके तक इन हाथियों के आने की खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल चुकी है।
हांलाकि अभी हाथी रिहाईसी इलाके में ही है, अब रात में न जाने क्या हालात होगे, भय और रोमांच के बीच, हाथी और लोगो के बीच ये द्वन्द की परिणति कही खतरनाक न हो जाए, वन विभाग ने इसके लिए, लोगों को रात में सुरक्षित रहने और आग जलाने का फ़रमान जारी कर दिया है!
जंगलों से ये हाथी रिहाईशी बस्तियों मे क्यो आ रहे है, ये हमें और आप सभी को ही सोचना होगा।
प्रशान्त "पीयुष" (लेखक पत्रकार है, लखीमपुर खीरी में निवास, वन्य जीवन व उसके सरंक्षण में अभिरूचि। इनसे prashantyankee.lmp@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं।)
जंगलों से ये हाथी रिहाईशी बस्तियों मे क्यो आ रहे है, ये हमें और आप सभी को ही सोचना होगा।
प्रशान्त "पीयुष" (लेखक पत्रकार है, लखीमपुर खीरी में निवास, वन्य जीवन व उसके सरंक्षण में अभिरूचि। इनसे prashantyankee.lmp@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं।)
तस्वीर में इस खूबसूरत जानवर के जिस्म पर लगे निशनात को जरा गौर से देखें, आदमियों के जंगल में फ़ंसे होने का यह घातक परिणाम तो नही?, कृपया स्थानीय वन विभाग और इन्तजामिया को जल्द कोई सकारात्मक कार्यवाही के लिए उत्साहित! करे नही तो इस जीव का हस्र भी वही होगा जैसा कि इन दिनों आदमियों के जंगल में किसी वन-प्राणी का होता आ रहा है!
ReplyDeleteऐसी घटनाएं तो होंगी हीं. हमने उनके क्षेत्र में घुसपैंठ किया है. आपके आलेख से कुछ तो जागृति आये. सुन्दर प्रस्तुति.
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