विदेशी पर्यटकों को लुभाने में असफल रहा दुधवा नेशनल पार्क
विश्व पर्यटन मानचित्र पर स्थापित उत्तर प्रदेश का एकमात्र विख्यात दुधवा नेशनल पार्क अपने स्थापित काल से लेकर अबतक 33 साल के इतिहास में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने में असफल रहा है। हालांकि दुधवा नेशनल पार्क में भ्रमण के लिए आने वाले स्वदेशी पर्यटकों की संख्या में इजाफा होता रहा है। लेकिन विदेशी पर्यटक लगातार घटते रहे हैं। इसके प्रमुख कारण क्या रहे हैं? इस बात पर अभी तक सूबे के वन विभाग के आला अफसरों ने गौर क्यों नहीं किया, यह स्वयं में विचारणीय प्रश्न है। ऊपरी तौर पर अगर यह माना जाए तो महानगरों से यातायात के उचित साधनों का न होना तथा दुधवा की कम सुविधाएं ही इसकी प्रमुख वजह रही हैं। इसके बाद भी दुधवा आने वाले पर्यटकों को दी जाने वाली सुविधाओं को तो नहीं बढ़ाया गया वरन् इस पर्यटन सत्र से प्रवेश कर सहित आवासीय किराए में भारी बृद्धि कर दी गई है। इसके कारण अब स्वदेशी पर्यटकों की संख्या में भी कमी आने की सम्भावनायें और बढ़ गई है।
दुधवा नेशनल पार्क के जंगल में नेपाल से आए गजदल, बाघ, तेंदुआ, दुर्लभ प्रजाति के कई वयंजीवों को करीब से स्वछंद विचरण करते हुए देखकर पर्यटक खासे रोमांचित होते हैं। प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण दुधवा नेशनल पार्क के मनोहरी दृश्य देखने के साथ ही पशु-पक्षियों को कलरव को सुनकर पर्यटकों के लिए रोमांचकारी होता है। लेकिन अब प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण नयनाभिराम नजारों सहित दुर्लभ प्रजाति के वयंजीव-जंतुओ को स्वच्छंद विचरण करता हुआ देखने के लिए भ्रमण हेतु आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए 15 नवम्बर 2010 से दुधवा दर्शन और काफी महंगा हो गया है। दुधवा नेशनल पार्क में पर्यटकों को ठहरने के लिए जंगल के भीतर वन विश्राम भवन बने हैं तथा हाथी से वन भ्रमण की सुविधा उपलब्ध रहती है। इसके अतिरिक्त गाड़ियों से भी दुधवा के जंगल का भ्रमण किया जा सकता है। विख्यात दुधवा नेशनल पार्क में चल रही विश्व की एकमात्र अद्वितीय गैंडा पुर्नवास परियोजना पर्यटकों को आकर्षित करती रही है। वर्तमान में तीस सदस्यीय गैंडा परिवार के सदस्यों को दक्षिण सोनारीपुर रेंज के तहत ऊर्जा बाड़ से सरक्षित वन क्षेत्र में स्वछंद विचरण करते हुए देखना पर्यटकों की पहली पसंद रहती है। लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते अक्सर होने वाली दुर्घटनाओं के कारण पार्क प्रशासन के अफसरों ने गैण्डा परिक्षेत्र में विदेशी एवं स्वदेशी पर्यटकों के भ्रमण पर अघोषित पावंदी लगा रखी है। इसके अतिरिक्त दुधवा पर्यटन परिसर के वन विश्राम भवन एवं थारू हट तथा कैंटीन आदि की सुविधाओं को नजन्दाज कर दिया जाए तो वन क्षेत्र के अन्दर बने अन्य वन विश्राम भवनों में रुकने के अलावा अन्य कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। यहां तक इन वन विश्राम भवनों में न भोजन की समुचित व्यवस्था उपलब्ध है और न ही स्वच्छ पेयजल पर्यटकों को नसीब होता है। छोटी-मोटी जरूरतों के लिए पर्यटकों को इधर उधर भटकना पड़ता है। ऊपर से प्रोजेक्ट टाइगर एवं नेशनल पार्क के नाम पर इतने ज्यादा कानून-कायदे थोप दिए जाते हैं जिनके बीच पर्यटक अपने को बंधा व असहाय सा महसूस करता है। जबकि पैसा खर्च करने वाला पर्यटक चाहे विदेशी हो या स्वदेशी वह खुले वातावरण में भरपूर इनज्यॉय करना चाहता है, जो उसे दुधवा भ्रमण में नहीं मिल पाता है। यह बात अलग है कि केन्द्र व प्रदेश सरकार के राजनेता अथवा शासन के उच्चाधिकारी दुधवा भ्रमण पर आते हैं तो तथाकथित पावंदी लगाने वाले यहां के अफसर ही उनको शान से गैण्डा परिक्षेत्र का भ्रमण कराने ले जाते हैं और पार्क के नियमों व कानूनों को ताख पर रखकर वीआईपी का भरपूर स्वागत सत्कार भी करते हैं। मजे की बात यह है कि ‘वीआईपी‘ से भुगतान भी नाममात्र का लिया जाता है। ऐसी स्थिति को देखकर दुधवा भ्रमण के लिए पैसा खर्च करने वाला पर्यटक अपने साथ होने वाले इस सौतेले व्यवहार को देखकर ठगा सा महसूस करके मन मसोस कर रह जाता है। शायद अब तक यही कारण रहे हैं कि इतना सब कुछ होते हुए भी दुधवा नेशनल पार्क विदेशी पर्यटकों को लुभाने में कामयाबी हासिल नहीं कर पा रहा है।
विश्व पर्यटन मानचित्र पर स्थापित उत्तर प्रदेश का एकमात्र विख्यात दुधवा नेशनल पार्क अपने स्थापित काल से लेकर अबतक 33 साल के इतिहास में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने में असफल रहा है। हालांकि दुधवा नेशनल पार्क में भ्रमण के लिए आने वाले स्वदेशी पर्यटकों की संख्या में इजाफा होता रहा है। लेकिन विदेशी पर्यटक लगातार घटते रहे हैं। इसके प्रमुख कारण क्या रहे हैं? इस बात पर अभी तक सूबे के वन विभाग के आला अफसरों ने गौर क्यों नहीं किया, यह स्वयं में विचारणीय प्रश्न है। ऊपरी तौर पर अगर यह माना जाए तो महानगरों से यातायात के उचित साधनों का न होना तथा दुधवा की कम सुविधाएं ही इसकी प्रमुख वजह रही हैं। इसके बाद भी दुधवा आने वाले पर्यटकों को दी जाने वाली सुविधाओं को तो नहीं बढ़ाया गया वरन् इस पर्यटन सत्र से प्रवेश कर सहित आवासीय किराए में भारी बृद्धि कर दी गई है। इसके कारण अब स्वदेशी पर्यटकों की संख्या में भी कमी आने की सम्भावनायें और बढ़ गई है।
दुधवा नेशनल पार्क के जंगल में नेपाल से आए गजदल, बाघ, तेंदुआ, दुर्लभ प्रजाति के कई वयंजीवों को करीब से स्वछंद विचरण करते हुए देखकर पर्यटक खासे रोमांचित होते हैं। प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण दुधवा नेशनल पार्क के मनोहरी दृश्य देखने के साथ ही पशु-पक्षियों को कलरव को सुनकर पर्यटकों के लिए रोमांचकारी होता है। लेकिन अब प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण नयनाभिराम नजारों सहित दुर्लभ प्रजाति के वयंजीव-जंतुओ को स्वच्छंद विचरण करता हुआ देखने के लिए भ्रमण हेतु आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए 15 नवम्बर 2010 से दुधवा दर्शन और काफी महंगा हो गया है। दुधवा नेशनल पार्क में पर्यटकों को ठहरने के लिए जंगल के भीतर वन विश्राम भवन बने हैं तथा हाथी से वन भ्रमण की सुविधा उपलब्ध रहती है। इसके अतिरिक्त गाड़ियों से भी दुधवा के जंगल का भ्रमण किया जा सकता है। विख्यात दुधवा नेशनल पार्क में चल रही विश्व की एकमात्र अद्वितीय गैंडा पुर्नवास परियोजना पर्यटकों को आकर्षित करती रही है। वर्तमान में तीस सदस्यीय गैंडा परिवार के सदस्यों को दक्षिण सोनारीपुर रेंज के तहत ऊर्जा बाड़ से सरक्षित वन क्षेत्र में स्वछंद विचरण करते हुए देखना पर्यटकों की पहली पसंद रहती है। लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते अक्सर होने वाली दुर्घटनाओं के कारण पार्क प्रशासन के अफसरों ने गैण्डा परिक्षेत्र में विदेशी एवं स्वदेशी पर्यटकों के भ्रमण पर अघोषित पावंदी लगा रखी है। इसके अतिरिक्त दुधवा पर्यटन परिसर के वन विश्राम भवन एवं थारू हट तथा कैंटीन आदि की सुविधाओं को नजन्दाज कर दिया जाए तो वन क्षेत्र के अन्दर बने अन्य वन विश्राम भवनों में रुकने के अलावा अन्य कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। यहां तक इन वन विश्राम भवनों में न भोजन की समुचित व्यवस्था उपलब्ध है और न ही स्वच्छ पेयजल पर्यटकों को नसीब होता है। छोटी-मोटी जरूरतों के लिए पर्यटकों को इधर उधर भटकना पड़ता है। ऊपर से प्रोजेक्ट टाइगर एवं नेशनल पार्क के नाम पर इतने ज्यादा कानून-कायदे थोप दिए जाते हैं जिनके बीच पर्यटक अपने को बंधा व असहाय सा महसूस करता है। जबकि पैसा खर्च करने वाला पर्यटक चाहे विदेशी हो या स्वदेशी वह खुले वातावरण में भरपूर इनज्यॉय करना चाहता है, जो उसे दुधवा भ्रमण में नहीं मिल पाता है। यह बात अलग है कि केन्द्र व प्रदेश सरकार के राजनेता अथवा शासन के उच्चाधिकारी दुधवा भ्रमण पर आते हैं तो तथाकथित पावंदी लगाने वाले यहां के अफसर ही उनको शान से गैण्डा परिक्षेत्र का भ्रमण कराने ले जाते हैं और पार्क के नियमों व कानूनों को ताख पर रखकर वीआईपी का भरपूर स्वागत सत्कार भी करते हैं। मजे की बात यह है कि ‘वीआईपी‘ से भुगतान भी नाममात्र का लिया जाता है। ऐसी स्थिति को देखकर दुधवा भ्रमण के लिए पैसा खर्च करने वाला पर्यटक अपने साथ होने वाले इस सौतेले व्यवहार को देखकर ठगा सा महसूस करके मन मसोस कर रह जाता है। शायद अब तक यही कारण रहे हैं कि इतना सब कुछ होते हुए भी दुधवा नेशनल पार्क विदेशी पर्यटकों को लुभाने में कामयाबी हासिल नहीं कर पा रहा है।
दुधवा नेशनल पार्क में आने वाले स्वदेशी पर्यटकों की संख्या में इजाफा जरूर हुआ है। परन्तु पिछले चार साल में अजब-गजब स्थिति यह भी रही कि पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होने के बाद भी उनसे प्राप्त धनराशि यानी सरकार को राजस्व कम मिला है। दुधवा नेशनल पार्क के आंकड़ों के अनुसार पर्यटन सत्र 2006-07 में पर्यटकों की कुल संख्या 6260 रही और राजस्व मिला था 11,81,672 रूपए। जबकि पर्यटन सत्र 2009-10 में कुल 9944 पर्यटक आए जिनसे राजस्व मिला 11,39,829 रूपए। इसी प्रकार सन् 2007-08 के पर्यटन सत्र में 8104 पर्यटकों से 10,66,020 रूपए का राजस्व मिला था, और सन् 2008-09 के पर्यटन सत्र में आने वाले कुल 6728 पर्यटकों से 9,36,595 रूपए राजस्व प्राप्त हुआ था। यद्यपि उपरोक्त के सालों में विदेशी पर्यटकों की संख्या में कमी रही जबकि स्वदेशी पर्यटक तो बढ़ गए लेकिन राजस्व घट गया। यह स्थिति क्यों रही इस पर बिचार करने के बजाए पार्क प्रशासन अपनी कमियों पर पर्दा डालने के लिए दलील दे रहा है कि दुधवा में पर्यटकों को जंगल घुमाने वाले हाथी विगत के सालों में पर्यटन सत्र के दौरान जंगल से बाहर आने वाले बाघों की तलाश में पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखनऊ, फैजाबाद, किशनपुर आदि स्थानों पर चले गए। इससे हाथियों के द्वारा जंगल घूमने पर पर्यटकों से प्राप्त होने वाली धनराशि घट जाने के कारण पर्यटकों के बढ़ने के बाद भी राजस्व में कमी आई है।
दुधवा नेशनल पार्क में सन् 2005-06 के पर्यटन सत्र में आने वाले स्वदेशी पर्यटकों की संख्या 5517 रही और सन् 2006-07 में बढ़कर जहां 6224 हो गयी, वहीं सन् 2007-08 में यह संख्या बढ़कर 8059 तक पहुंची तो सन् 2008-09 में स्वदेशी पर्यटक कम होकर 6714 रह गए। जबकि सन् 2009-10 में इनकी संख्या बढ़कर 9922 तक पहुंच गयी। इस तरह स्वदेशी पर्यटकों की संख्या में तो बृद्धि हुई, किन्तु दुधवा नेशनल पार्क भ्रमण हेतु आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या पर गौर किया जाए तो सन् 2005-06 में 99 विदेशी पर्यटक आए थे। सन् 2006-07 में इनकी संख्या घटकर 36 रह गई। इसके बाद सन् 2007-08 में 45 विदेशी पर्यटक आए किन्तु सन् 2008-09 में इनकी संख्या घटकर मात्र 14 ही रह गयी। सन् 2009-10 के पर्यटन सत्र में 22 विदेशी पर्यटकों ने ही दुधवा का भ्रमण किया था। जबकि पड़ोस के ही प्रदेश उत्तरांचल के जिम कार्बेट नेशनल पार्क में विदेशी पर्यटकों का पूरे सीजन जमवाड़ा लगा रहता है। विदेशी पर्यटक दुधवा नेशनल पार्क की ओर क्यों आकर्षित नहीं हो रहें हैं। इस ओर न सरकार ध्यान दे रही है और न ही वन विभाग के उच्चाधिकारी ही उन कारणों को तलाश करने में दिलचस्पी ले रहे हैं। जबकि वह यह कहकर अपनी कमियों को छिपाने का प्रयास करते हैं कि महानगरों से यातायात के समुचित साधनों के न होने से ही विदेशी पर्यटक दुधवा नेशनल पार्क में आने से कतराते हैं। देखा जाए तो दुधवा नेशनल पार्क से छह किलोमीटर की दूरी पर मुंजहा में वर्षो पूर्व सरकार द्वारा बनवाई गई ‘हवाई पट्टी‘ निष्प्रयोज्य पड़ी है, जिसका उपयोग दुधवा नेशनल पार्क भ्रमण के लिए अबतक मात्र सूबे के राज्यपाल, कबीना मंत्री, राजनेता तथा केंद्र व प्रदेश के वीआईपी उच्चाधिकारी ही करते रहे हैं। सूबे की सरकार अगर प्रयास करके इस ‘हवाई पट्टी‘ को महानगरों से जोड़कर एयरबसों का संचालन शुरू करादे, अगर यह संभव न हो तो केवल लखनऊ से ही यहां के लिए हवाई सेवा उपलव्ध हो जाए साथ ही दुधवा नेशनल पार्क में ‘पर्यटन‘ को व्यावसायिक रूप दे दिया जाए। इससे दुधवा नेशनल पार्क में विदेशी पर्यटकों समेत स्वदेशी पर्यटकों की संख्या में स्वतः ही भारी इजाफा हो सकता है। पर्यटकों के बढ़ने से यहां के बेरोजगार युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और क्षेत्र की आर्थिक उन्नति के भी नए रास्ते खुल सकते हैं। इसके अतिरिक्त सरकार का राजस्व भी बढ़ जाएगा।
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, अमर उजाला से काफ़ी समय तक जुड़े रहे है, वन्य-जीव संरक्षण के लिए प्रयासरत, दुधवा टाइगर रिजर्व के निकट पलिया में रहते हैं। आप इनसे dpmishra7@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)
Nowadays our countries.( I say our because India and also my country,Brasil,are..)
ReplyDeletefacing many challenges,
big work on progress countries !!!!!
among long list,
health ,food ,home, education,.should be government priorities,,...
protect the world were living in,our natural resources..our animals ,heritage....so many golden goals....
many bills to pay.everybody needs money...
TOURISM, regarding wild life protection, heritage and the forests, must be viewed as business as a industry..why not??
we cannot act as naives...money...yes its a good sin...
one good quality about tourism,in my point of view,is that it can provide organized development !!!!
Everybody now is aware of the noum..ecologically correct...
luckily its not a dream..it can be true!!great efforts,NGOS,villagers,politicians, ,unfortunately ..indira gandhi is not there...but u have great minister now.jairam...
hope for the best!
ye sahi baat hai
ReplyDeletebut there is no facility,no promotion,no hotel etc..
first we need to improve our facilities and then situation will improve..