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Oct 8, 2010

कछुओं से गुम हुए जीवन का पता पूछते हैं !

रद कोकास*
एक प्राचीन जीव के महत्व को दर्शाती कवि कोकास की कविता:
photo credit: newswise.com
कछुआ एक सामान्य सा दिखाई देने वाला असामान्य जीव है । यह मनुष्य से भी अधिक पुराना है और इसे उम्र भी मनुष्य से ज़्यादा मिली हुई है । पुरातत्ववेत्ताओं और जीव वैज्ञानिकों ने यह खोज की है और कछुए को एक महत्वपूर्ण जीव बताया है । 
पुरातत्व की एक शाखा मैरीन आर्कियालॉजी के अंतर्गत पुरातत्ववेता जब समुद्र के भीतर डूबी हुए बस्तियों और जहाज़ों की तलाश करते हैं तब उस स्थान पर पाये जाने वाले कछुए और मछलियाँ उनकी खोज में उनकी सहायक होती है। उत्खनन स्थल पर प्राप्त इन जीवों की हड्डियों का कार्बन 14 पद्धति से परीक्षण करने के पश्चात उस स्थान की प्राचीनता ज्ञात की जा सकती है। पुरातत्ववेत्ताओं को विभिन्न गुफाओं के शैलचित्रों में भी कछुए के चित्र मिले हैं जो कछुए के उनके जीवन में उपस्थिति को दर्शाते हैं ।
हमारे पौराणिक ग्रंथों मे " कूर्म वाहिनी यमुना " अर्थात यमुना के वाहन के रूप में कछुए का उल्लेख तो है ही लेकिन विश्व के अन्य भागों के साहित्य में भी इसका उल्लेख प्राप्त होता है। इस तरह यह जीव अपने जीते जी तो मनुष्य के काम आते ही हैं लेकिन उनकी मृत्यु के पश्चात  उनके अवशेष भी मनुष्य की और सभ्यताओं की प्राचीनता सिद्ध करने के काम आते हैं । कछुओं की विशेष प्रजाति से यह भी ज्ञात होता है कि उस स्थान पर कितने हज़ार वर्ष पूर्व धरती रही होगी । इस कविता में कछुए की लम्बी उम्र के बिम्ब  इस्तेमाल एक बिम्ब के रूप में किया गया है । इसलिये कि कछुए उस गुम हो चुकी सभ्यता के मूक गवाह हो सकते हैं ।  
( शरद कोकास की लम्बी कविता " पुरातत्ववेत्ता " से एक अंश )

Photo credit: Childzy (wikipedia.com)
सिर्फ़ रेत और हवा के बीच नहीं उपस्थित होता समय
समुद्र तल में जहाँ रेत की परत के नीचे
कल्पना तक असंभव जीवन की
शैवाल चट्टान सीप घोंघों और मछलियों के बीच
चमकता है अचानक एक विलुप्त सभ्यता का मोती
पीठ पर ऑक्सीजन सिलेण्डर और देह पर अजीब
गोताखोरी की पोशाक पहने पुरातत्ववेत्ता
कछुओं से गुम हुए जीवन का पता पूछते हैं

मछलियों की आँख से आँख मिलाती है
उनके कैमरे की आँख
उसमें एक जाल की दहशत आती है नज़र
सपनों का महल झिलमिलाता है नारियल के कोटर में
झोपड़ी की बगल में खुशियों की राह मचलती है
शायद यही है वह रास्ता कि जिस पर चलकर
हज़ारों- हज़ार साल पहले
अफ्रीका से आई थी हमारी आदिमाता
और चट्टानों के करवट बदलने से जो रास्ता
अपना रास्ता बदलकर समुद्र में चला गया था
यहीं कहीं था जीवन की भाफ से भरा वह द्वीप
जो समुद्र की सलामती के लिए
प्रार्थनायें करते हुए
खुद डूब गया था अपने अभिशाप में॥


शरद कोकास  (लेखक साहित्यकार हैं, कविता संग्रह, कहानियां, एंव ब्लॉग लेखन में हिन्दी जगत में विशिष्ठ स्थान। इनकी चर्चित  कृतियों में कविता संग्रह "गुनगुनी धूप के सायें में" कहानी पुस्तिकाओं में "प्रेतनी की बेटी,  राधा की सूझ, पसीने की कमाई, एंव चिठ्ठियों पर किताब "कोकास परिवार की चिठ्ठियां" हैं, प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेखन। छत्तीसगढ़ दुर्ग में निवास, इनसे sharadkokas.60@gmail.com पर कर सकते हैं। इनका इतिहास बोध पर आधारित ब्लॉग "पुरातत्ववेत्ता" इतिहास ज्ञान का बेहतरीन स्रोत हैं। )

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