देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* बाढ़ ने चौपट किया पशुपालन कारोबार
Photo Courtesy: Louis Copt (www.kgs.ku.edu) |
उफनाई नदियों के पानी से भयभीत ग्रामीणजन अपनी जान बचाने की मुसीबत में कई-कई दिनों तक घरों की छतों पर फंसे रहे, तो पशुओं को दाना-पानी कौन दे? इस कारण सैंकड़ों मवेशी कई दिनों तक भंूखे-प्यासे तब तक खूंटे पर बंधे रहे जब तक बाढ़ की भयावह दशा नहीं हुई। लेकिन पानी का आतंक जैसे ही बिकराल स्थिति में पहुंचा तो सैंकड़ों पालतू पशु अपनी जीवन रक्षा में खूंटे तोड़कर इधर-उधर भाग गए। जिसमें से सैकड़ों भैंसें एवं गायें जो अपने को बाढ़ से नहीं बचा पाये वह नदियों की तेज धार में बहकर न जाने कहां चले गए, और इसमें से भी तमाम पालतू पशु असमय काल के गाल में समा गए। बाढ़ के प्रकोप और भूख से लड़कर जो पालतू पशु जीत भी गये हैं, अब उनके सामने चारा की समस्या मुंह फैलाये खड़ी है। क्योंकि ग्रामीणांचल के क्षेत्रों में कहीं भी पशुओं के लिए चारा नहीं बचा है और न ही उनके चरने के लिए उचित स्थान ही रह गया है। बाढ़ की भीषण त्रासदी झेल रहे किसानों की आर्थिक स्थिति भी इतनी कमजोर हो चुकी है जिसमें उनके लिए अपना पेट भरना ही दुरूह कार्य बन गया है। ऐसे में पशुओं को बाजार से खरीदकर चारा खिला सके यह बात वह सपने में भी नहीं सोंच सकते हैं। इससे भी अलग हटकर देखा जाये तो जहां कहीं भी कुछ उंची जगहों पर घास आदि का चारा बचा भी है तो वह बाढ़ के पानी के साथ आई गंदगी, मिट्टी व अन्य विषैले पदार्थों से विषैला होकर पशुओं के खाने योग्य नहीं रह गया है।
बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में पशुओं के चारे की विकट समस्या उत्पन्न होने से पशुपालकों के समक्ष गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गयी है। क्योंकि भूंखे-प्यासे व्यक्ति को तो इंसानियत के नाते पास-पड़ोसी एवं भाई-बंद भी सहारा दे देते हैं, किन्तु पशुओं का पेट भरने के लिए चारा कोई नहीं देता है। इस विषम स्थिति में पशुपालकों की मजबूरी के कारण उनका पशुधन भूख से बेवश होकर बाढ़ खत्म होने के बाद भी दम तोड़ने पर मजबूर हो रहा है। दूसरी तरफ बाढ़ घटने के बाद पशुओं में प्रदूषित पानी से विषाणु जनित तमाम प्रकार की संक्रामक बीमारियां भी तेजी से पांव पसारने लगी हैं। जिनका उपचार कराना भी पशु-स्वामियों के समक्ष एक विकट चुनौती भरा कार्य बन गया है। पशुओं की दवाई तो ऐन-केन-प्रकारेण करवा ही ली जायेगी। किन्तु केवल दवा से पशुओं का पेट भरने वाला नहीं है। पशुओं का पेट भरने के लिये आवश्यक तो है चारा। जिसके अभाव में आगे भी न जाने कितने पालतू पशु अकाल मौत का शिकार बन जाएगें। जिससे सैकड़ों किसान अपने प्रमुख पशुधन से विहीन हो जाएगें। इस तरह उनके दूध का कारोबार करने वाले किसानों का एक यह भी कमाई का जरिया समाप्त हो जाएगा। किसानों की आर्थिक स्थिति को कृषि उपज व पशुपालन कारोबार मजबूती प्रदान करता है साथ ही ग्रामीणांचल के यह दोनों व्यवसाय भारतीय अर्थव्यवस्था की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान भी रखते हैं। लेकिन इस साल की भीषण बाढ़ द्वारा मचाई गई बर्वादी और विनाशलीला के कहर ने कृषि उपजों के साथ पशुपालन कारोबार को लगभग पूरी तरह से तबाही की कगार पर खड़ा कर दिया है। इसका निकट भविष्य में दुष्प्रभाव यह भी पड़ेगा कि पशुपालन में कमी आने के कारण दूध उत्पादन के भी प्रभावित होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। जिसके कारण खासकर शहरवासियों को दूध की भारी किल्लत का सामना करना पड़ेगा। जबकि दूध की कमी और उसकी बढ़ती मांग का फायदा उठाने के लिए सिनथेटिक दूध का अवैध कारोबार करने वाले लोग भी सक्रिय हो जाएगें। इनसे निपटने के लिए समय रहते शासन-प्रशासन द्वारा मुकम्मल व्यवस्थाएं न की गई तो मानव का जीवन भी खतरे में पड़ सकता है।
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र (लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार है, लखीमपुर खीरी जनपद के पलिया कस्बे में निवास, वन्य जीवन पर लेखन व उनके सरंक्षण में प्रयासरत हैं। इनसे dpmishra7@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता हैं।)
जब मनुष्य इतिहास और नदियो के जलभराव क्षेत्र को नजरान्दाज कर ऐसे क्षेत्रो मे बस जाता है तब इस विनाशलीला का सामना तो महज वक्त की बात होती है आधुनिक युग मे तो इस विनाश को बहुत हद तक सीमित कर लिया गया है पहले तो पूरी की पूरी सभ्यताए ही विलुप्त हो जाती थी ।
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