अरूणेश सी दवे* विश्व बाघ दिवस- एक और कवायद? अपने राष्ट्रीय पशु को बचाने की!
आज २६ दिसम्बर को विश्व बाघ दिवस के अवसर पर मैं उन सभी बाघो को और उनके वंशजो को जो कि कभी पैदा ही नही हो पाये अश्रुपूरित श्रद्धांजली अर्पित करना चाहता हूँ । १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में कहा जाता रहा है, कि इस देश में एक लाख बाघ थे, हालांकि यह संख्या एक अनुमान पर आधारित है, लेकिन फ़िर भी यदि इसे सत्य मान लिया जाय तो आज हम इसकी महज एक प्रतिशत आबादी को ही बचा पाये है! आइये इस हालत की कुछ विवेचना करे ।
इस देश मे अंग्रेजों के आगमन के साथ ही बाघो का अंतिम काल शुरू हो गया था । आज उपलब्ध तत्कालीन पुस्तकों पर नजर डाले तो तकरीबन उस दौर की हर किताब मे जिनका शीर्षक अक्सर " Indian game and sports " हुआ करता था उन्होने जो सबसे बड़ा कारण या बहाना बाघों के शिकार का दिया था, वह यह था कि बाघ भारतीयो के जीवन और पशुओं के लिये गंभीर खतरा थे। उन्होंने बाघों का शिकार करके भारतीयों पर एहसान किया था ।
मेरा ऐसा खयाल है, कि अधिकांश भारतीय तो छोड़िये अधिकांश बाघ प्रेमी भी इस बात से अंजान होंगे की उस समय बाघों के शिकार के लिये अंग्रेज सरकार पैसे भी देती थी और साइमन ने उस समय अपनी किताब "MY DAYS AS WILD SPORTS AGENT IN INDIA " मे लिखा है, कि यदि आप भारत शिकार मे आने पर हिचकिचा रहे है, तो मै आपको बता दूं कि आपके खर्चे का आधा सरकार देगी ।
इसके अलावा आप आज ये विश्वास भी नही कर सकते की इसी भारत की सरजमी पर एक " TIGER SLAYER CLUB " था और एक किताब भी छ्पी है " TOP TIGER SLAYERS OF INDIA " और इस खिताब के विजेता थे महाराजा सरगुजा ( सरगुजा छ्त्तीसगढ़ मे है ) जिन्होंने अपने जीवन काल मे १५०० बाघो का शिकार किया था और यह संख्या प्रमाणित है क्योंकि तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय कॊ उनकी कुछ खालें भेट की गई थी ।
इसके अलावा आजादी के बाद भी जो होता आया है वह भी आपके सामने ही है। सबसे बड़ी बात यह है ,कि बाघों को बचाने से मतलब यह नही है, कि हम एहसान कर रहे हैं, बल्कि हमारा अस्तित्व भी उनसे जुड़ा हुआ है मेरे अनेक मित्र मुझसे पूछते हैं, कि भाई हमारा और बाघ का सिवाय एक प्रतीक के क्या संबंध है, और कुछ कहते हैं, कि भाई जीवों का आना जाना तो लगा ही रहता है । बात भी ठीक है और आज हम देश की आम जनता को बाघ और वन का महत्व और पर्यावरण से उनके अस्तित्व का संबंध समझाने मे असमर्थ रहे है, और हम खुद भी उन बाघो के प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने के बाद उनको बचाने के अजीब से आंदोलन मे जुटे हुए है । हम से मेरा तात्पर्य उन सब भाई बहनों से है, जो तन मन धन से इस कार्य मे लगे हुये है, लेकिन सिवाय कुछ छोटी लड़ाइयों के अधिकांशतः हमारी हार ही हुई है ।
आज हमारी हालत इस मामले में पाकिस्तान की तरह है जहां हर एक एजेंसी काम कर रही है पर पूरा देश असफ़ल है ।
आज देश मे केवल 1400 बाघ बचे हुए हैं! और इसका एकमात्र कारण शिकार नही है, मूल कारण यह है, कि उनकी भोजन श्रंखला मे आयी भारी कमी। यह कमी इसलिये आयी कि जहां एक ओर प्राकृतिक वन को इमारती लकड़ी के वनों में बदल दिया गया वहीं दूसरी ओर वनवासियों की प्राकृतिक जीवन शैली को भी बदल दिया गया है । देखिये बाघों एवं अन्य वन्यप्राणियों का और वनवासियों और उनकी जीवन शैली तथा वनस्पतियों का विकास लाखो वर्षों के विकासक्रम मे एक साथ हुआ था। इसमें से किसी एक घटक के साथ की गयी छेड़छाड़ का नतीजा तो बाकियों पर भी पड़ना निश्चित था फ़िर हमने तो सभी घटको के साथ जो किया है, उसके कुछ परिणाम तो सामने है कुछ आने अभी बाकी है ।
आज बाघों के चंद बचे पर्यावासों पर भी लौह माफ़ियाओं की नजर गड़ी हुई है, ऐसे में सिवाय उनको श्रद्धांजली देने कोई और चारा नजर नही आता है । और ऐसे में हमारे बेहद ईमानदार और कर्मठ वनाधिकारी भी प्रतिदिन भगवान से यही दुआ मांगते हैं, कि हे प्रभु और हमारे चोर-शिकारियों को इतनी शक्ति दो, कि जल्द से जल्द बाघों की इस बची खुची आबादी को भी निपटा दें, क्योंकि जब तक एक भी बाघ जीवित रहेगा ये शेहला मसूद जैसे वन्यजीव कार्यकर्ता हमारा जीना हराम करते रहेंगे ।
फोटो साभार: सीज़र सेनगुप्त |
इस देश मे अंग्रेजों के आगमन के साथ ही बाघो का अंतिम काल शुरू हो गया था । आज उपलब्ध तत्कालीन पुस्तकों पर नजर डाले तो तकरीबन उस दौर की हर किताब मे जिनका शीर्षक अक्सर " Indian game and sports " हुआ करता था उन्होने जो सबसे बड़ा कारण या बहाना बाघों के शिकार का दिया था, वह यह था कि बाघ भारतीयो के जीवन और पशुओं के लिये गंभीर खतरा थे। उन्होंने बाघों का शिकार करके भारतीयों पर एहसान किया था ।
मेरा ऐसा खयाल है, कि अधिकांश भारतीय तो छोड़िये अधिकांश बाघ प्रेमी भी इस बात से अंजान होंगे की उस समय बाघों के शिकार के लिये अंग्रेज सरकार पैसे भी देती थी और साइमन ने उस समय अपनी किताब "MY DAYS AS WILD SPORTS AGENT IN INDIA " मे लिखा है, कि यदि आप भारत शिकार मे आने पर हिचकिचा रहे है, तो मै आपको बता दूं कि आपके खर्चे का आधा सरकार देगी ।
इसके अलावा आप आज ये विश्वास भी नही कर सकते की इसी भारत की सरजमी पर एक " TIGER SLAYER CLUB " था और एक किताब भी छ्पी है " TOP TIGER SLAYERS OF INDIA " और इस खिताब के विजेता थे महाराजा सरगुजा ( सरगुजा छ्त्तीसगढ़ मे है ) जिन्होंने अपने जीवन काल मे १५०० बाघो का शिकार किया था और यह संख्या प्रमाणित है क्योंकि तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय कॊ उनकी कुछ खालें भेट की गई थी ।
इसके अलावा आजादी के बाद भी जो होता आया है वह भी आपके सामने ही है। सबसे बड़ी बात यह है ,कि बाघों को बचाने से मतलब यह नही है, कि हम एहसान कर रहे हैं, बल्कि हमारा अस्तित्व भी उनसे जुड़ा हुआ है मेरे अनेक मित्र मुझसे पूछते हैं, कि भाई हमारा और बाघ का सिवाय एक प्रतीक के क्या संबंध है, और कुछ कहते हैं, कि भाई जीवों का आना जाना तो लगा ही रहता है । बात भी ठीक है और आज हम देश की आम जनता को बाघ और वन का महत्व और पर्यावरण से उनके अस्तित्व का संबंध समझाने मे असमर्थ रहे है, और हम खुद भी उन बाघो के प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने के बाद उनको बचाने के अजीब से आंदोलन मे जुटे हुए है । हम से मेरा तात्पर्य उन सब भाई बहनों से है, जो तन मन धन से इस कार्य मे लगे हुये है, लेकिन सिवाय कुछ छोटी लड़ाइयों के अधिकांशतः हमारी हार ही हुई है ।
आज हमारी हालत इस मामले में पाकिस्तान की तरह है जहां हर एक एजेंसी काम कर रही है पर पूरा देश असफ़ल है ।
आज देश मे केवल 1400 बाघ बचे हुए हैं! और इसका एकमात्र कारण शिकार नही है, मूल कारण यह है, कि उनकी भोजन श्रंखला मे आयी भारी कमी। यह कमी इसलिये आयी कि जहां एक ओर प्राकृतिक वन को इमारती लकड़ी के वनों में बदल दिया गया वहीं दूसरी ओर वनवासियों की प्राकृतिक जीवन शैली को भी बदल दिया गया है । देखिये बाघों एवं अन्य वन्यप्राणियों का और वनवासियों और उनकी जीवन शैली तथा वनस्पतियों का विकास लाखो वर्षों के विकासक्रम मे एक साथ हुआ था। इसमें से किसी एक घटक के साथ की गयी छेड़छाड़ का नतीजा तो बाकियों पर भी पड़ना निश्चित था फ़िर हमने तो सभी घटको के साथ जो किया है, उसके कुछ परिणाम तो सामने है कुछ आने अभी बाकी है ।
आज बाघों के चंद बचे पर्यावासों पर भी लौह माफ़ियाओं की नजर गड़ी हुई है, ऐसे में सिवाय उनको श्रद्धांजली देने कोई और चारा नजर नही आता है । और ऐसे में हमारे बेहद ईमानदार और कर्मठ वनाधिकारी भी प्रतिदिन भगवान से यही दुआ मांगते हैं, कि हे प्रभु और हमारे चोर-शिकारियों को इतनी शक्ति दो, कि जल्द से जल्द बाघों की इस बची खुची आबादी को भी निपटा दें, क्योंकि जब तक एक भी बाघ जीवित रहेगा ये शेहला मसूद जैसे वन्यजीव कार्यकर्ता हमारा जीना हराम करते रहेंगे ।
अरुणेश सी दवे* (लेखक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहते है, पेशे से प्लाईवुड व्यवसायी है, प्लाई वुड टेक्नालोजी में इंडियन रिसर्च इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा। जंगलवासियों की संस्कृति का दस्तावेज तैयार करने की अनूठी पहल, वन्य् जीवों व जंगलों से लगाव है, स्वतंत्रता सेनानी परिवार से ताल्लुक, मूलत: गाँधी और जिन्ना की सरजमीं से संबध रखते हैं। सामाजिक सरोकार के प्रति सजगता, इनसे aruneshd3@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)
yea...
ReplyDeleteevery single on a tiger"s life counts...
not only one day...(international day...)
ash ji
good words keep spreading info...
there are many ways to help the tiger cause!!
words are good guns!!!
no matter if still are deaf people...
I appreciate your article. But if we are really worried about it then why we give that much honor to the BLOODY SHIKARIES like Jym Corbett :-(
ReplyDeleteवन्यजीव संरक्षण के लिए किए जा रहे आपके प्रयास सराहनीय हैं...आभार
ReplyDeleteअब लोगों को सीधे सीधे यह समझाना ज़रूरी है कि बाघ हैं तो हम हैं ।
ReplyDeleteThe same Sarguhja family younger son is a land mafia in Bhopal. He is ruining the environment and the greenery of the city.
ReplyDeleteSave the tiger, we all must do the something to save them, No tiger then No Men... Simple!!
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