ऐसे ही बनते हैं आदमखोर!
यदि ये तेन्दुआ मवेशियों और इन्सानों को मारना शुरू करता है तो इसका जिम्मेदार कौन?
सुनील निगम* 31 जुलाई 2010 को दुधवा नेशनल पार्क के किशनपुर वन्यजीव विहार से निकलकर गन्ने के खेत की ओर विचरण पर जा रहा जो तेन्दुआ शिकारियों द्वारा लगाये गये खुड़के में फँसकर गंभीर रूप से घायल हो गया था, उसे बगैर पूर्ण स्वस्थ हुए बिना जंगल में ले जाकर मुक्त कर देने से वन्यजीव विहार वनक्षेत्र के समीपवर्ती गाँवों के लिए गम्भीर खतरा बन गया है।
इसका उदाहरण उस वक्त मिला जब तीन सप्ताह पूर्व यह घायल तेन्दुआ लँगड़ाता हुआ महराजनगर गाँव के निवासी राधेश्याम के घर की दलान में आ गया। यह गनीमत रही कि ग्रामीणों द्वारा शोर मचाने पर वह अगले पैर से लँगड़ाता हुआ जंगल में वापस चला गया। अब सवाल यह है कि घायलावस्था में फन्दे से मुक्त कराये गये तेन्दुए को बगैर पूर्ण स्वस्थ हुए किया जंगल में छोड़ देना कहाँ तक उचित था ? इस बावत पार्क प्रशासन का दावा है कि जिस वक्त तेन्दुए को जंगल में मध्य रात्रि छोड़ा गया, वह स्वस्थ और पैर से ठीक चल रहा था। लेकिन यह बात समझ से परे है कि जिस तेन्दुए के पंजे को खुड़के से बमुश्किल मुक्त कराया गया और वह घाव से कराह रहा था, क्या वह मात्र 10-12 घन्टों में ही स्वस्थ हो गया होगा?
अगर यह घायल तेन्दुआ आसान वन्यजीव शिकार कर पाने में भी कभी अक्षम हुआ तो फिर कभी वह मानव को अपना निवाला बनाने की कोशिश भी कर सकता है। क्योंकि तेन्दुआ यदि जिस किसी को अपना लक्ष्य बना ले उसे हर कीमत पर निवाला बनाकर ही दम लेता है। कहने का तात्पर्य यह है कि घायल तेन्दुए को जंगल में छोड़ना एक प्रकार से आदमखोर बनने का विकल्प देने के समान है।
इसका उदाहरण उस वक्त मिला जब तीन सप्ताह पूर्व यह घायल तेन्दुआ लँगड़ाता हुआ महराजनगर गाँव के निवासी राधेश्याम के घर की दलान में आ गया। यह गनीमत रही कि ग्रामीणों द्वारा शोर मचाने पर वह अगले पैर से लँगड़ाता हुआ जंगल में वापस चला गया। अब सवाल यह है कि घायलावस्था में फन्दे से मुक्त कराये गये तेन्दुए को बगैर पूर्ण स्वस्थ हुए किया जंगल में छोड़ देना कहाँ तक उचित था ? इस बावत पार्क प्रशासन का दावा है कि जिस वक्त तेन्दुए को जंगल में मध्य रात्रि छोड़ा गया, वह स्वस्थ और पैर से ठीक चल रहा था। लेकिन यह बात समझ से परे है कि जिस तेन्दुए के पंजे को खुड़के से बमुश्किल मुक्त कराया गया और वह घाव से कराह रहा था, क्या वह मात्र 10-12 घन्टों में ही स्वस्थ हो गया होगा?
अगर यह घायल तेन्दुआ आसान वन्यजीव शिकार कर पाने में भी कभी अक्षम हुआ तो फिर कभी वह मानव को अपना निवाला बनाने की कोशिश भी कर सकता है। क्योंकि तेन्दुआ यदि जिस किसी को अपना लक्ष्य बना ले उसे हर कीमत पर निवाला बनाकर ही दम लेता है। कहने का तात्पर्य यह है कि घायल तेन्दुए को जंगल में छोड़ना एक प्रकार से आदमखोर बनने का विकल्प देने के समान है।
(सुनील निगम दैनिक जागरण बरेली के मैलानी क्षेत्र के संवादाता हैं, लखीमपुर खीरी जनपद के मैलानी कस्बे (निकट किशनपुर वन्य जीव विहार) में रहते है, जो चारो तरफ़ से शाखू के जंगलों से घिरा हुआ है, यह जगह ब्रिटिश इंडिया में रेलवे व टिम्बर व्यवसाय में प्रमुख स्थान रखती थी, और इस नगर से शाहंजहांपुर, पीली्भीत जनपदों की सरहदे लहराती हुई स्पर्श करती हैं। इनसे suniljagran100@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)
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