फोटो साभार: सतपाल सिंह |
सूत्रों के मुताबिक यह सुन्दर व विशाल नर बाघ है, और इसने जंगल के भीतर ही इन्सान को मारा, मानव शरीर के खाने के कोई पुख्ता सबूत नही हैं। यदि इस बाघ को उसके प्राकृतिक आवास में खदेड़ दिया जाए जहां इसका प्राकृतिक भोजन मौजूद हैं, तो इस एक बाघ का जीवन सुरक्षित हो सकता है। और इसके द्वारा खीरी-पीलीभीत के जंगलों में बाघों की प्रजाति में बढ़ोत्तरी की संभावनाओं से नकारा नही जा सकता।
खीरी-पीलीभीत के मध्य मौजूद बचे हुए छोटे-छोटे जंगल शाकाहारी व मांसाहारी जीवों से विहीन हो चुके हैं नतीजतन इस बाघ को मानव आबादी के निकट मवेशियों से अपने भोजन की पूर्ति करना संभावित व जरूरी हो जाता है। फ़िर बाघ के लिए घास के मैदान व गन्ने के खेतो में कोई फ़र्क नही।
वन्य जीव प्रेमियों, व संस्थाओं को इन इलाकों में जागरूकता अभियान चलाकर बाघ के महत्व व उसके द्वारा मारे गये मवेशियों के लिए मुवाबजे आदि के सन्दर्भ में सूचित करना चाहिए, ताकि बाघ अपने द्वारा मारे गये शिकार से भोजन प्राप्त कर सके। यदि ग्रामीण उसे बार बार उसके शिकार से खदेड़ते है तो यकीनन वह जल्द ही दूसरा शिकार करेगा!
फ़ोटो साभार: सतपाल सिंह |
इस बाघ की निगरानी व इसकी मौजूदगी वाले इलाके में लोगों को जागरूक कर इसे एक मौका दिया जा सकता है, ताकि यह जंगल में दाखिल हो सके! अन्यथा इसे पकड़ न पाने की स्थिति में और राजनैतिक दबाओं के चलते इसे शूट करने का आदेश निर्गत होने में देर नही होगी। यदि इसे पकड़ने में सफ़लता मिल भी गयी तो ये किसी नुमाइशघर का एक आइटम बन कर रह जायेगा।
अफसोस यह है कि हमारे यहाँ ऐसी कोई ठोस योजना नहीं बनी है कि ऐसे बाघों के साथ क्या किया जाए । इन्हे मार देना तो कोई हल है ही नही और पकड- कर पिंजरे मे कैद कर देना भी नही । जंगल मे भेजना हल हो सकता है लेकिन उसके लिये कोई कार्यनीति तो चाहिये ।और सबसे बड़ी बात है यह बुद्धि कि इन्हे बचाना क्यों ज़रूरी है ।
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