दुधवा का घायल तेंदुआ कहीं आदमखोर न बन जाए!
जुलाई में शिकारियों के फ़न्दे में फ़ंसे तेन्दुए को ग्रामीणों की मदद से वन विभाग ने बचा लिया था, किन्तु खुड़के में फ़ंसे पैर के घायल हो जाने और उसका उचित इलाज किए जाने से पहले ही उसे जंगल में रिलीज कर दिया गया, संभवानाये बरकार थी की प्राकृतिक आवास और अपनी इंस्टिंक्ट के बल बूते यह जानवर अपने को ठीक कर पायेगा, पर अधिक खराब हालात में ऐसा नही हो पाता। अभी तक जो खबरे आ रही हैं, उनके मुताबिक ये तेन्दुआ लगड़ाता हुआ देखा गया। शारीरिक अक्षमता के चलते यह निश्चित ही अपना प्राकृतिक शिकार नही पकड़ पायेगा, नतीजतन गाँवों की तरफ़ इसका रूख होगा, और फ़िर इस पर भी आदमखोर होने की तोहमत मढ़ दी जायेगी। ...मॉडरेटर
दुधवा पार्के के अधिकारियो और W.T.I. की लापवाही से एक तेदुआ आदमखोर बनाने की ओर कदम बढ़ा चुका है | ३१-०७-१० को शिकारियो के लगाये खुटके में फसे तेंदुवे को शिकारियो से तो तो बचा लिया था लेकिन पैर से गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद कुल १० घंटे में ही जंगल में दुबारा छोड़ दिया था सही इलाज न होपने के कारण से वो जंगल में शिकार नही कर पा रहा है | अब तन्दुवा निकल कर २ बार महराजनगर गांव घुस चुका है | लेकिन लोगो के जाग जाने से वो सफल न हो सका , तेदुआ की शिकार करने की शैली के कारण से वो अधिक देर तक असफल नहीं होगा | वन्य जीव- विशेषज्ञ तेदुआ को टाइगर से बेहतर शिकारी मानते है, क्योकि ये घात लगा कर , लुक छिपकर , पेड़ो पर चढ़ कर वार करता है ।
दुधवा पार्क के अधिकारियों और डब्ल्यू टी आई ने इस तेदुआ को समय रहते न पकड़ कर इलाज किया तो ये आदमखोर बन जायगा , फिर उसको हाथियों की मदद से भी पकड़ना आसान न होगा । इस सदी के प्रारम्भिक वर्षों में कुमाऊ में हुई घटना में १ आदमखोर तेदुआ ने अकेले ५०० लोगो मार कर खाया , ये सब बद्रीनाथ -केदारनाथ को निकले तीर्थ यात्री थे |दुधवा पार्के के अधिकारियो और डव्लू. टी.आई . की लापवाही से ये घटना दुधवा में न हो जाये ।
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मनोज शर्मा ( लेखक लाइव इंडिया में लखीमपुर के जिला सवांददाता है, किशनपुर वन्य जीव विहार के निकट मैलानी में निवास, इनसे manojliveindia@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं।)
आपकी बात अपनी जगह बिलकुल ठीक है की घायल तेंदुआ आबादी की तरफ रूख कर आसान शिकार की तलाश करेगा. जब यह कुछ मवेशियों और इंसान पर हमला करेगा तो उसे आदमखोर का तमगा देकर मार दिया जाएगा. अब वन विभाग और w t i उसे रख कर भी क्या करते इनसे कभी कोई वन्यजीव ठीक हुए भी हैं?
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