देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* सात हाथियों की मौत पर केन्द्र सरकार को गजराज की सुध आयी
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पश्चिम बंगाल में बनेरहाट स्टेशन के पास मालगाड़ी की तेज टक्कर से रेल पटरियों पर हुई सात हाथियों की मौत के बाद वन एवं पर्यावरण मंत्रालय पुनः सक्रिय हो गया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने रेल मंत्रालय से इस संबध में पत्र लिखने एवं वार्ता करने की बात कही है। इससे पूर्व उत्तरांचल के जिम कार्बेट नेशनल पार्क तथा राजाजी नेशनल पार्क में जहां रेलगाड़ियों से टकराकर रेल पटरियों पर दर्जनों हाथियों की मौते हो चुकी है। वहीं उत्तर प्रदेश के एकमात्र दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगल के बीच से निकली रेल लाइन पर ट्रेनों की टक्कर से पिछले डेढ़ दशक में आधा दर्जन हाथी, चार बाघ, भालू, मगरमच्छ, फिसिंग कैट, दर्जनों चीतल, पाढ़ा आदि प्रजाति के हिरनों के साथ दुलर्भ प्रजाति के तमाम विलुप्तप्राय वन्यजीव-जन्तु असमय काल कवलित हो चुके हैं। इसके कारण दुधवा नेशनल पार्क के जंगल से निकली रेल लाइन एक्सीडेंट जोन बनी हुई है। रेल लाइन पर वन्यजीवों की होने वाली असमायिक मौतों को रोकने के लिए दुधवा टाइगर रिजर्व तथा सूबे के वन विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा रेलवे विभाग को जंगल के भीतर सीमित गति से ट्रेनों का संचालन किए जाने की बावत तमाम पत्र विगत के वर्षो में भेजे गए हैं। लेकिन जंगल के बीच से निकलने वाली ट्रेनों की रफ्तार में कोई कमी नहीं आई है वह उसी गति से दौड़ रही हैं। इससे वन्यजीवों के ऊपर हरवक्त मौत का खतरा मंडराता रहता है।
उल्लेखनीय है कि दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में सुहेली नदी के पास एक जून 2003 को रेल लाइन को पार करते समय सवारी गाड़ी की लगी तेज टक्कर से दो नर जंगली हाथियों के साथ एक बच्चे की असमय दर्दनाक मौत हुई थी तथा एक युवा नर हाथी घायल हो गया था। दुधवा टाइगर रिजर्व के उप प्रभागीय बनाधिकारी द्वारा लखनउ मण्डल के पूर्वोत्तर रेल प्रबंधक, स्टेशन मास्टर समेत रेलगाड़ी चालक के खिलाफ दुधवा रेंज कार्यालय में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत अभियोग भी दर्ज कराया गया था। इसी दौरान जंगल के भीतर सीमित गति से रेलगाड़ियों का संचालन किए जाने के पत्र भी तत्कालीन दुधवा टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक पीपी सिंह द्वारा रेलवे विभाग के अधिकारियों को भेजे गए। रेलवे विभाग ने भी जांच के आदेश दिए थे। किंतु समय व्यतीत होने के साथ सब कुछ इतिहास बन गया। दुधवा रेंज में दर्ज अभियोग का क्या हुआ? रेलवे विभाग ने क्या जांच की? यह आजतक कोई नहीं जान सका और न ही ट्रेनों की रफ्तार में कमी आई। धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य गति से चलने लगा। विगत दिवस पश्चिम बंगाल के बनेरहाट स्टेशन के पास मालगाड़ी की लगी तेज टक्कर से सात हाथियों की मौत हो गई। इस पर एकबार फिर रेल लाइनों पर होने वाली हाथियों की मौत का मुद्दा राष्टीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। दर्घटना के बाद विदेश के दौरे पर होने के वावजूद केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए रेल मंत्रालय के खराब रिकार्ड पर अप्रसन्नता भी व्यक्त की, साथ ही कहा है, कि टास्क फोर्स द्वारा हाल में पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में हाथी को राष्ट्रीय पशु धरोहर का दर्जा देने तथा राष्ट्रीय संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना के लिए कदम उठाने तथा एक जंगल से दूसरे जंगल में उनके आने-जाने वाले रास्तों की रक्षा करने के लिए कदम उठाने की सिफारिश की गई है। इसके लिए रेलवे से वनक्षेत्रों में ट्रेनों की गति धीमी करने जैसे विशेष कदम उठाने को कहा गया है। देखना यह है कि टास्क फोर्स द्वारा की गई सिफारिशों को लागू किया जाता है? या फिर हमेशा की तरह कुछ दिनों तक मुद्दा सुर्खियों में रहने के बाद गायब होकर फिर अलमारियों की कैद में पहुंच जाएगा।
गोंड़ा से मैलानी को जाने वाली एक सौ किमी से उपर रेल लाइन यूपी के एकमात्र दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में शामिल मैलानी के जंगल के साथ किशनपुर वन्य-जीव विहार से लेकर दुधवा नेशनल पार्क होकर बहराइच के कतरनिया घाट वन्यजीव प्रभाग के जंगल के बीच से निकली है। जिसपर अक्सर ट्रेनों से टकराकर अथवा कटकर दुर्लभ प्रजाति के विलुप्तप्राय वन्यजीव-जन्तुओं की असमय मौते होती रहती है। दुधवा नेशनल पार्क क्षेत्र में पंद्रह जनवरी 1998 को सुहेली नदी पुल के पास ट्रेन की टक्कर से एक नर हाथी (टस्कर) की मौत हो गई थी। जबकि 5 जून 1997 को इसी पुल के निकट रेल लाइन पार करते समय एक बाघिन की मौत भी ट्रेन से कटकर हुई थी। कतरनिया घाट वन्यजीव प्रभाग के वनक्षेत्र मे 22 मार्च 2006 को बिछिया-निशानगाड़ा स्टेशन के बीच उरई पुल के पास ट्रेन की टक्कर से एक बाघ की मारा गया था। दुधवा नेशनल पार्क में जंगल के बीचो-बीच सोनारीपुर स्टेशन के पास 29 मई 2005 को टेªन की टक्कर से घायल हुए एक बाघ शावक की भी बाद में अकाल मौत हो गई थी। जबकि दुधवा स्टेशन के पास ट्रेन की लगी टक्कर से 15 अप्रैल 2006 को एक युवा बाघिन काल के गाल में समा गई थी। इसके अतिरिक्त पिछले डेढ़ दशक में दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र के जंगल में तीन दर्जन से ऊपर चीतल, पाढ़ा प्रजाति के हिरन, भालू, मगरमच्छ, फिसिंग कैट समेत दुर्लभ प्रजाति के तमाम वन्यजीव रेलगाड़ियों की चपेट में आने से असमायिक मौत का शिकार बन चुके हैं। विडंबना यह है कि देश के किसी भी प्रदेश में रेल ट्रैक पर ट्रेन की टक्कर से जब कोई दुर्लभ प्रजाति का लुप्तप्राय वन्य-जीव मारा जाता है तो राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर जोर-शोर से चर्चा होती है, और घटना की सुर्खियां भी मीडिया में तीन चार दिन जोर शोर से उछाली जाती है। इसके बाद व्यतीत होते समय के साथ सबकुछ भुला दिया जाता है।
दुधवा टाइगर रिजर्व के वनक्षेत्र में रेल की पटरियों पर दुर्लभ प्रजाति के लुप्तप्राय वन्य-जीवों की होने वाली मौतों की रोकथाम के लिए केन्द्र सरकार की पूर्व वन एवं पर्यावरण मंत्री व वन्य-जीव जंतुओं की हितैषी मेनका गांधी ने वन्य-जीवों के संरक्षण के देखते हुए दुधवा नेशनल पार्क के जंगल से रेल लाइन को हटाकर उसे बाहरी क्षेत्र में बनाए जाने की जोरदार वकालत की थी। इसपर रेल मंत्रालय ने क्षेत्र में सर्वे का थोड़ा बहुत कार्य भी किया था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे यह कार्ययोजना ठंडे बस्ते में पहुंच गई। सन् 2003 में वन्यजीव संरक्षण में संवेदनशीलता का परिचय देते हुए प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने भी दुधवा नेशनल पार्क के मध्य से रेल लाइन को हटवाने के लिए रेल मंत्रालय भारत सरकार को पत्र भेजकर सार्थक पहल की थी। इसके बाद भी रेल मंत्रालय ने कोई भी कार्यवाही आज तक नहीं की है। दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र के जंगल के बीच से दो दर्जन से उपर सवारी, एक्सप्रेस व मालवाहक ट्रेनें तेज गति से निकलती हैं, उनके हार्न की चीखती आवाज से वन्य-जीवों के सामान्य जीवन में भारी खलल पैदा होता है। इसकी रोकथाम एवं दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सबसे बेहतर है कि सुरक्षित वन क्षेत्र के बीच से रेल लाइन को हटा दिया जाए। इससे वन्य-जीवों पर असमायिक मौत का मंडराने वाला खतरा भी समाप्त हो जाएगा। यह मानकर दुधवा टाइगर रिजर्व प्रशासन के साथ ही प्रदेश के वनाधिकारियों द्वारा विगत के सालों में रेल लाइन को पलिया से नौंगावां, मझगईं, निघासन होकर बेलरायां या तिकुनियां तक शिफ्ट किए जाने का प्रयोजल तमाम बार केंद्रीय रेल मंत्रालय के साथ ही लखनउ मण्डल के रेल प्रबंधक को भेजे जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त जबतक रेल लाइन नहीं हटाई जाती है तबतक वन्यजीवों की सुरक्षा को देखते हुए दुधवा टाइगर रिजर्व में जंगल के भीतर सीमित गति से ट्रेनों का संचालन किए जाने के पत्र भी लगातार वन विभाग के अधिकारी समय-समय पर रेलवे के अधिकारियों को भेजते रहे हैं। परन्तु केन्द्रीय रेल मंत्रालय अथवा लखनउ के मंडलीय रेल अफसरों ने उनपर कोई कार्यवाही करने के बजाय उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है। सबसे बड़ी विडंबना यह भी है कि यूपी में एकमात्र दुधवा नेशनल पार्क होने के बाद भी सूबे की सरकार जंगल से रेल लाइन को शिफ्ट करवाने या ट्रेनों की गति को सीमित कराने के लिए केन्द्रीय रेल मंत्रालय पर दबाव नहीं बना रही है। परिणाम दुधवा टाइगर रिजर्व समेत देश के विभिन्न हिस्सों में रेल लाइनों पर दुर्लभ प्रजाति के विलुप्तप्राय वन्यजीव-जन्तुओं की होने वाली मौतों में इजाफा होता जा रहा है। देखना यह है कि पश्चिम बंगाल में ट्रेन से कटकर हुई सात हाथियों की मौत के बाद केन्द्र सरकार कोई सार्थक कदम उठाती है कि नहीं? (यह लेख २८-०९-२०१० को डेली न्युज एक्टीविस्ट के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित हो चुका है)
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पश्चिम बंगाल में बनेरहाट स्टेशन के पास मालगाड़ी की तेज टक्कर से रेल पटरियों पर हुई सात हाथियों की मौत के बाद वन एवं पर्यावरण मंत्रालय पुनः सक्रिय हो गया है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने रेल मंत्रालय से इस संबध में पत्र लिखने एवं वार्ता करने की बात कही है। इससे पूर्व उत्तरांचल के जिम कार्बेट नेशनल पार्क तथा राजाजी नेशनल पार्क में जहां रेलगाड़ियों से टकराकर रेल पटरियों पर दर्जनों हाथियों की मौते हो चुकी है। वहीं उत्तर प्रदेश के एकमात्र दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगल के बीच से निकली रेल लाइन पर ट्रेनों की टक्कर से पिछले डेढ़ दशक में आधा दर्जन हाथी, चार बाघ, भालू, मगरमच्छ, फिसिंग कैट, दर्जनों चीतल, पाढ़ा आदि प्रजाति के हिरनों के साथ दुलर्भ प्रजाति के तमाम विलुप्तप्राय वन्यजीव-जन्तु असमय काल कवलित हो चुके हैं। इसके कारण दुधवा नेशनल पार्क के जंगल से निकली रेल लाइन एक्सीडेंट जोन बनी हुई है। रेल लाइन पर वन्यजीवों की होने वाली असमायिक मौतों को रोकने के लिए दुधवा टाइगर रिजर्व तथा सूबे के वन विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा रेलवे विभाग को जंगल के भीतर सीमित गति से ट्रेनों का संचालन किए जाने की बावत तमाम पत्र विगत के वर्षो में भेजे गए हैं। लेकिन जंगल के बीच से निकलने वाली ट्रेनों की रफ्तार में कोई कमी नहीं आई है वह उसी गति से दौड़ रही हैं। इससे वन्यजीवों के ऊपर हरवक्त मौत का खतरा मंडराता रहता है।
उल्लेखनीय है कि दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में सुहेली नदी के पास एक जून 2003 को रेल लाइन को पार करते समय सवारी गाड़ी की लगी तेज टक्कर से दो नर जंगली हाथियों के साथ एक बच्चे की असमय दर्दनाक मौत हुई थी तथा एक युवा नर हाथी घायल हो गया था। दुधवा टाइगर रिजर्व के उप प्रभागीय बनाधिकारी द्वारा लखनउ मण्डल के पूर्वोत्तर रेल प्रबंधक, स्टेशन मास्टर समेत रेलगाड़ी चालक के खिलाफ दुधवा रेंज कार्यालय में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत अभियोग भी दर्ज कराया गया था। इसी दौरान जंगल के भीतर सीमित गति से रेलगाड़ियों का संचालन किए जाने के पत्र भी तत्कालीन दुधवा टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक पीपी सिंह द्वारा रेलवे विभाग के अधिकारियों को भेजे गए। रेलवे विभाग ने भी जांच के आदेश दिए थे। किंतु समय व्यतीत होने के साथ सब कुछ इतिहास बन गया। दुधवा रेंज में दर्ज अभियोग का क्या हुआ? रेलवे विभाग ने क्या जांच की? यह आजतक कोई नहीं जान सका और न ही ट्रेनों की रफ्तार में कमी आई। धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य गति से चलने लगा। विगत दिवस पश्चिम बंगाल के बनेरहाट स्टेशन के पास मालगाड़ी की लगी तेज टक्कर से सात हाथियों की मौत हो गई। इस पर एकबार फिर रेल लाइनों पर होने वाली हाथियों की मौत का मुद्दा राष्टीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। दर्घटना के बाद विदेश के दौरे पर होने के वावजूद केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए रेल मंत्रालय के खराब रिकार्ड पर अप्रसन्नता भी व्यक्त की, साथ ही कहा है, कि टास्क फोर्स द्वारा हाल में पर्यावरण मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में हाथी को राष्ट्रीय पशु धरोहर का दर्जा देने तथा राष्ट्रीय संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना के लिए कदम उठाने तथा एक जंगल से दूसरे जंगल में उनके आने-जाने वाले रास्तों की रक्षा करने के लिए कदम उठाने की सिफारिश की गई है। इसके लिए रेलवे से वनक्षेत्रों में ट्रेनों की गति धीमी करने जैसे विशेष कदम उठाने को कहा गया है। देखना यह है कि टास्क फोर्स द्वारा की गई सिफारिशों को लागू किया जाता है? या फिर हमेशा की तरह कुछ दिनों तक मुद्दा सुर्खियों में रहने के बाद गायब होकर फिर अलमारियों की कैद में पहुंच जाएगा।
गोंड़ा से मैलानी को जाने वाली एक सौ किमी से उपर रेल लाइन यूपी के एकमात्र दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र में शामिल मैलानी के जंगल के साथ किशनपुर वन्य-जीव विहार से लेकर दुधवा नेशनल पार्क होकर बहराइच के कतरनिया घाट वन्यजीव प्रभाग के जंगल के बीच से निकली है। जिसपर अक्सर ट्रेनों से टकराकर अथवा कटकर दुर्लभ प्रजाति के विलुप्तप्राय वन्यजीव-जन्तुओं की असमय मौते होती रहती है। दुधवा नेशनल पार्क क्षेत्र में पंद्रह जनवरी 1998 को सुहेली नदी पुल के पास ट्रेन की टक्कर से एक नर हाथी (टस्कर) की मौत हो गई थी। जबकि 5 जून 1997 को इसी पुल के निकट रेल लाइन पार करते समय एक बाघिन की मौत भी ट्रेन से कटकर हुई थी। कतरनिया घाट वन्यजीव प्रभाग के वनक्षेत्र मे 22 मार्च 2006 को बिछिया-निशानगाड़ा स्टेशन के बीच उरई पुल के पास ट्रेन की टक्कर से एक बाघ की मारा गया था। दुधवा नेशनल पार्क में जंगल के बीचो-बीच सोनारीपुर स्टेशन के पास 29 मई 2005 को टेªन की टक्कर से घायल हुए एक बाघ शावक की भी बाद में अकाल मौत हो गई थी। जबकि दुधवा स्टेशन के पास ट्रेन की लगी टक्कर से 15 अप्रैल 2006 को एक युवा बाघिन काल के गाल में समा गई थी। इसके अतिरिक्त पिछले डेढ़ दशक में दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र के जंगल में तीन दर्जन से ऊपर चीतल, पाढ़ा प्रजाति के हिरन, भालू, मगरमच्छ, फिसिंग कैट समेत दुर्लभ प्रजाति के तमाम वन्यजीव रेलगाड़ियों की चपेट में आने से असमायिक मौत का शिकार बन चुके हैं। विडंबना यह है कि देश के किसी भी प्रदेश में रेल ट्रैक पर ट्रेन की टक्कर से जब कोई दुर्लभ प्रजाति का लुप्तप्राय वन्य-जीव मारा जाता है तो राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर जोर-शोर से चर्चा होती है, और घटना की सुर्खियां भी मीडिया में तीन चार दिन जोर शोर से उछाली जाती है। इसके बाद व्यतीत होते समय के साथ सबकुछ भुला दिया जाता है।
दुधवा टाइगर रिजर्व के वनक्षेत्र में रेल की पटरियों पर दुर्लभ प्रजाति के लुप्तप्राय वन्य-जीवों की होने वाली मौतों की रोकथाम के लिए केन्द्र सरकार की पूर्व वन एवं पर्यावरण मंत्री व वन्य-जीव जंतुओं की हितैषी मेनका गांधी ने वन्य-जीवों के संरक्षण के देखते हुए दुधवा नेशनल पार्क के जंगल से रेल लाइन को हटाकर उसे बाहरी क्षेत्र में बनाए जाने की जोरदार वकालत की थी। इसपर रेल मंत्रालय ने क्षेत्र में सर्वे का थोड़ा बहुत कार्य भी किया था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे यह कार्ययोजना ठंडे बस्ते में पहुंच गई। सन् 2003 में वन्यजीव संरक्षण में संवेदनशीलता का परिचय देते हुए प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने भी दुधवा नेशनल पार्क के मध्य से रेल लाइन को हटवाने के लिए रेल मंत्रालय भारत सरकार को पत्र भेजकर सार्थक पहल की थी। इसके बाद भी रेल मंत्रालय ने कोई भी कार्यवाही आज तक नहीं की है। दुधवा टाइगर रिजर्व क्षेत्र के जंगल के बीच से दो दर्जन से उपर सवारी, एक्सप्रेस व मालवाहक ट्रेनें तेज गति से निकलती हैं, उनके हार्न की चीखती आवाज से वन्य-जीवों के सामान्य जीवन में भारी खलल पैदा होता है। इसकी रोकथाम एवं दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सबसे बेहतर है कि सुरक्षित वन क्षेत्र के बीच से रेल लाइन को हटा दिया जाए। इससे वन्य-जीवों पर असमायिक मौत का मंडराने वाला खतरा भी समाप्त हो जाएगा। यह मानकर दुधवा टाइगर रिजर्व प्रशासन के साथ ही प्रदेश के वनाधिकारियों द्वारा विगत के सालों में रेल लाइन को पलिया से नौंगावां, मझगईं, निघासन होकर बेलरायां या तिकुनियां तक शिफ्ट किए जाने का प्रयोजल तमाम बार केंद्रीय रेल मंत्रालय के साथ ही लखनउ मण्डल के रेल प्रबंधक को भेजे जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त जबतक रेल लाइन नहीं हटाई जाती है तबतक वन्यजीवों की सुरक्षा को देखते हुए दुधवा टाइगर रिजर्व में जंगल के भीतर सीमित गति से ट्रेनों का संचालन किए जाने के पत्र भी लगातार वन विभाग के अधिकारी समय-समय पर रेलवे के अधिकारियों को भेजते रहे हैं। परन्तु केन्द्रीय रेल मंत्रालय अथवा लखनउ के मंडलीय रेल अफसरों ने उनपर कोई कार्यवाही करने के बजाय उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है। सबसे बड़ी विडंबना यह भी है कि यूपी में एकमात्र दुधवा नेशनल पार्क होने के बाद भी सूबे की सरकार जंगल से रेल लाइन को शिफ्ट करवाने या ट्रेनों की गति को सीमित कराने के लिए केन्द्रीय रेल मंत्रालय पर दबाव नहीं बना रही है। परिणाम दुधवा टाइगर रिजर्व समेत देश के विभिन्न हिस्सों में रेल लाइनों पर दुर्लभ प्रजाति के विलुप्तप्राय वन्यजीव-जन्तुओं की होने वाली मौतों में इजाफा होता जा रहा है। देखना यह है कि पश्चिम बंगाल में ट्रेन से कटकर हुई सात हाथियों की मौत के बाद केन्द्र सरकार कोई सार्थक कदम उठाती है कि नहीं? (यह लेख २८-०९-२०१० को डेली न्युज एक्टीविस्ट के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित हो चुका है)
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र (लेखक वाइल्ड लाइफर/पत्रकार है, दुधवा नेशनल पार्क के निकट पलिया में निवास, एक प्रतिष्ठित अखबार में पत्रकारिता, इनसे dpmishra7@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं।)
इसका आसान सा उपाय है कि रेल लाइन चाहे जितनी भी लम्बी हो उसके दोनो ओर बाड़ लगाई जाए । हाँलाकि इससे समस्या का हल नही होगा । रेल का शोर जानवरों के लिये घातक है । इसलिये इसे यहाँ से शिफ्त करना ज़रूरी है ।
ReplyDeleteबाड़ लगाने का विचार काम कर सकता है साथ ही बीच बीच मे उचा पुल बना कर रास्ता छोड़ा जा सकता है । साथ ही हाथियो की चेतावनी वाली आवाज को भी हार्न के रूप मे इस्तेमाल करने से भी टक्कर से बचा जा सकता है ।
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