दुधवा की लाइफ़ लाइन ही खतरे में:
पलियाकलां (खीरी)। दुधवा नेशनल पार्क के मध्य तथा किनारे प्रवाहित होने वाली सुहेली नदी कभी अपने समीपवर्ती वन्यजीवों को पानी देकर उनकी प्राणदायिनी होती थी। लेकिन सिलटिंग और प्राकृतिक परिवर्तन के चलते अब उनके विनाश का कारण बनती जा रही है। इसके अतिरिक्त नदी से सटा ग्रामीणांचल भी इसमें बार-बार आने वाली बाढ़ की त्रासदी झेलकर बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है।
अरण्य के साथ साथ तबाह हो रही हैं सड़कें:
उल्लेखनीय है कि नेपाल से निकली सुहेली नदी वर्षा में पानी के साथ मिट्टी- बालू साथ लाती है। इसका जमाव (सिलटिंग) होने के कारण नदी के गहराई कम हो गई, तथा आसपास के निचले भू-भागों में भी सिलटिंग होने से उनकी उंचाई भी बढ़ गई है। इसके कारण कभी समीपवर्ती नकउहा नाला का पानी सुहेली नदी में आता था किन्तु उपरोक्त परिवर्तन के साथ-साथ सड़क पुल के ही सामने बने रेलवे पुल में पानी निकास के अधिकांश द्वार सिलटिंग से बन्द हो गए हैं, इससे सुहेली नदी का पानी उसमें से निर्वाध रूप से नहीं निकल पा रहा है। परिणाम स्वरूप नदी ने नया चैनल पीपी नाला बना दिया है, साथ ही प्रेम पुलिया नाला से नकउहा नाला का जो पानी सुहेली नदी में जाता था उसकी भी अब वापसी होने लगी है। इस तरह नकउहा पुल से सुहेली पुल तक पीडब्लूडी रोड के दोनों तरफ से सुहेली नदी का पानी पीपी नाला से नकउहा नाला में तेज गति से आ रहा है। इसके कारण पीपी नाला द्वारा किए जाने वाले कटान की चपेट में जहां जंगल आ रहा है वहीं पीडब्लूडी की दुधवा रोड के दोनों किनारों का कटान भी हो रहा है। इससे कई स्थानों पर पीपी नाला के कटान का खतरा सड़क पर बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन पीडब्लूडी द्वारा कटान की रोकथाम के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। कटान का दायरा बढ़ता गया तो निकट भविष्य में दुधवा रोड का नामोनिशान खत्म हो जाएगा तब नेपाल सहित आदिवासी जाति थारू क्षेत्र के 45 गांवों समेत दुधवा के अधिकांश जंगल का सम्पर्क कट सकता है।
जंगल में बाढ़ कारण बनती हैं वन्य-जीवों के शिकार का!
और डूबती हैं थारू जनजाति की फ़सलें!
गौरतलब यह भी है कि सुहेली नदी में हुए इस प्राकृतिक परिवर्तन का दुष्प्रभाव समीपवर्ती ग्रामीणांचल पर भी पड़ने लगता है। थोड़ी वर्षा होते ही उफनाई सुहेली नदी का पानी आसपास के गांवों एवं खेतों में भर जाता है जिसमें सर्वाधिक नुकसान फसलों को को होता है। तथा ग्रामीण भी बार-बार आने वाली बाढ़ की त्रासदी झेलने को विवश हो जाते हैं। इसको अगर नजरअंदाज भी कर दिया जाए तो सुहेली नदी अब वन्यजीवों की दुश्मन बन गई है। इससे होने वाली सिलटिंग से सैकड़ों एकड़ हरा भरा जंगल सूख गया है तथा निचले भागों के चारागाह सिमट गए है। इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव बारहसिंघों के जीवन चक्र पर पड़ने लगा है। जबकि अन्य वन्यजीव उंचे स्थानों की तलाश में गांवों की ओर आते हैं जहां उनका अवैध शिकार करने से ग्रामीण परहेज नहीं करते है। इससे वन्यजीवों की संख्या में लगातार गिरावट आने लगी है। यद्यापि शासन प्रशासन द्वारा सुहेली नदी की सफाई खुदाई करोड़ों रूपया खर्च किया जा चुका है लेकिन नतीजा शून्य ही निकला है। परिणाम स्वरूप सुहेली नदी अब समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्र जंगल एवं वन्यजीवों के विनाश का कारण बनने लगी है।
जानकारी का आभार .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteEven the sharda seems to be flooded.Isnt the forest deptt doing anything about the heavy silting in the river.THis makes the path of the river unpredictable every time.
ReplyDeleteरूपा जी बड़ी कायदे की बात कही आप ने, शारदा खीरी, पीलीभीत के जंगलों को नुकसान पहुंचाती है, बरसात के मौसम में, लेकिन गर्मियों में जल-विहीन होकर भी नुकसान पहुंचता वन और वन्य जीवन को। वजह साफ़ है शारदा की गाद (सिल्ट) जिसे शायद आजाद भारत में करीने से साफ़ ही नही किया गया! इरीगेशन एक्ट नही पढ़ पाया, आप को मालूम हो तो बताईयेगा, कि क्या व्यवस्था है, और क्या ये अफ़सर कर रहे हैं, नदियां मरती जा रही है, और इन्ही के साथ नष्ट हो रही हओं प्रकृति!
ReplyDeleteदुधवा टाइगर रिजर्व के अन्तर्गत आने वाला झादी ताल तबाह हो रहा है शारदा की बाढ़ से, पिछले कुछ वर्षों में करोड़ो का वजट आया, कुछ चलताऊ काम किया गया, पर नतीजा सिफ़ड़ है! इन सभी मुद्दों पेर मुहाबिसें होनी चाहिए, और नतीजे भी निकलने चाहिये!
आप को बता दूं झादी ताल बारहसिंहा के विशाल समूह का हैविटेट है, जो किशनपुर सेंक्चुरी के अन्तर्गत स्थित है, शारदा का पानी इसे डुबा ही नही रहा है, बल्कि इस ताल का वजूद मिटा कर अपनी जल धारा में शामिल कर रही है शारदा।
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