-लखनियापुरवा के मौलाना अब्दुल कय्यूम के बेटे अब्दुल वहाब की पहल
-नीम के पेड़ की आजादी की शुरू कर दी है इस छह साल के बच्चे ने लड़ाई लखनियापुरवा। (खीरी) बुधई ने नीम का जो पौधा अपने घर के दरवाजे पर लगाया था और बड़ा होकर पेड़ हो गया था, उसे तो शायद टीवी देखने वाला कोई शख्स भूला नहीं होगा। लखनियापुरवा के मौलाना अब्दुल कय्यूम के बेटे अब्दुल वहाब ने भी नीम का एक पौधा अपने घर के दरवाजे के बाहर करीब दस दिन पहले ही रोपा है। भरी दोपहरी थी, धूप से जमीन तप रही थी। मौलाना के घर के बाहर खाली पड़ी जमीन पर छांव के लिए कोई विकल्प नहीं था। ऐसे में उनके तीन बेटों में दूसरे नंबर के अब्दुल वहाब को सूझा कि अगर यहां एक नीम का पौधा रोप दिया जाए तो कम से कम घर के बाहर छांव के लिए कुछ तो हो जाएगा।
अब्दुल वहाब की उम्र यही कोई छह साल की होगी। उसने नीम का पेड़ की कहानी या टीवी पर कभी आने वाले सीरियल को नहीं देखा...लेकिन बुधई की तरह वह सोचता जरूर है। इसीलिए तो उसने नीम का पौधा तो रोपा ही साथ ही उसकी सुरक्षा के लिए ईंट लगाकर ट्रीगार्ड भी तैयार किया। दोनों हाथों से ढाई किलो की ईंट उठा पाने में उसे मुश्किल हो रही थी...लेकिन वह लगा हुआ था एक पौधे को जवान बनाकर पेड़ बनाने की जुगत में।
-नीम के पेड़ की आजादी की शुरू कर दी है इस छह साल के बच्चे ने लड़ाई लखनियापुरवा। (खीरी) बुधई ने नीम का जो पौधा अपने घर के दरवाजे पर लगाया था और बड़ा होकर पेड़ हो गया था, उसे तो शायद टीवी देखने वाला कोई शख्स भूला नहीं होगा। लखनियापुरवा के मौलाना अब्दुल कय्यूम के बेटे अब्दुल वहाब ने भी नीम का एक पौधा अपने घर के दरवाजे के बाहर करीब दस दिन पहले ही रोपा है। भरी दोपहरी थी, धूप से जमीन तप रही थी। मौलाना के घर के बाहर खाली पड़ी जमीन पर छांव के लिए कोई विकल्प नहीं था। ऐसे में उनके तीन बेटों में दूसरे नंबर के अब्दुल वहाब को सूझा कि अगर यहां एक नीम का पौधा रोप दिया जाए तो कम से कम घर के बाहर छांव के लिए कुछ तो हो जाएगा।
अब्दुल वहाब की उम्र यही कोई छह साल की होगी। उसने नीम का पेड़ की कहानी या टीवी पर कभी आने वाले सीरियल को नहीं देखा...लेकिन बुधई की तरह वह सोचता जरूर है। इसीलिए तो उसने नीम का पौधा तो रोपा ही साथ ही उसकी सुरक्षा के लिए ईंट लगाकर ट्रीगार्ड भी तैयार किया। दोनों हाथों से ढाई किलो की ईंट उठा पाने में उसे मुश्किल हो रही थी...लेकिन वह लगा हुआ था एक पौधे को जवान बनाकर पेड़ बनाने की जुगत में।
ऐसा अक्सर होता होगा जब आप अपने गांव जाते होंगे। सुबह उठते ही न जाने कितने लोगों को टूथपेस्ट की जगह नीम की दतून से दांत साफ करते हुए देखते होंगे। आप भी एक छोटी सी दतून तोड़ते होंगे। होंगे इसलिए लिख रहा हूं कि...नीम का पेड़ भी अब गांवों में बड़े ही मुश्किल से दिखता है। इसलिए कि नीम के पेड़ पर लकड़कट्टों की बुरी नजर है। लखनियापुरवा धौरहरा इलाके में है। इस इलाके में हाल के सालों में भारी पेड़ कटान हुआ है। ऐसे में अगर अब्दुल वहाब जैसे बच्चे बुधई बन नीम का पेड़ लगाकर पर्यावरण की आजादी की लड़ाई शुरू कर रहे हैं, तो वाकई बड़ी बात है। आगे चल कर क्या पता....लकड़कटटों से नीम को और गरीबी से अब्दुल वहाब को आजादी मिल जाए।
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