सैकड़ों वर्ष पुराना पाकड़ (पकरिया: Ficus virens) का वृक्ष हुआ धराशाही:
पता नहीं चलता है कि हम लोग और हमारी भावनाएं कहां-कहां और किस-किस से जुडी होती हैं। मंगलवार की बात है, सुबह का यही कोई सात बजे का वक्त रहा होगा। लखीमपुर के इमली चौराहे से होकर मैं अपनी बाइक से रोडवेज की ओर जाने का था, जैसे ही इमली चौराहा पार किया तो सामने एक पेड पूरी सडक पर गिरा हुआ था। बिजली के तार नीचे झूल रहे थे। हम एकटक उस पेड को निहारते रहे। बाइक बंद हो गई थी, पता नहीं क्यों पेड का गिरना मेरे दिल को चुभो गया। इसके बाद हम चले गए। लौट कर घर गए तो अपने बडे भाई को इसलिए बताया कि वह दूसरे रस्ते से जाएं। जब उन्होंने यह जाना कि दुखः हरण नाथ मंदिर के पास वाला पाकड़ का पेड़ गिर गया तो उनके भाव गंभीर हो गए। पता नहीं क्या था उस में पेड में जिसके गिर जाने का सब अफसोस कर रहे थे। खैर, धीरे-धीरे इस पेड के गिर जाने की खबर आधे लखीमपुर को हो चुकी थी।
जानते हैं इस पेड से लोगों का जुडाव यूं नहीं था। हमें याद आता है कि गर्मी में जब हम इमली चौराहे से आर्यकन्या चौराहे की ओर जाते थे तो इस बात का अहसास रहता था कि अभी दुखः हरण नाथ मंदिर के पास पाकड के नीचे गुजरते वक्त ठंडक मिल जाएगी। अभी तक लगता था कि ऐसा हम ही सोचते थे, लेकिन हमारी तरह से और भी लोग थे। उनको भी इस पेड की ठंडक अच्छी लगती थी। धूप तो धूप यह पेड इतना घना था कि पानी बरसे तो छाते का काम करता था। न जाने कितने ही लोगों की रोजीरोटी इसी पेड के नीचे बैठकर चलती थी।
जानते हैं इस पेड से लोगों का जुडाव यूं नहीं था। हमें याद आता है कि गर्मी में जब हम इमली चौराहे से आर्यकन्या चौराहे की ओर जाते थे तो इस बात का अहसास रहता था कि अभी दुखः हरण नाथ मंदिर के पास पाकड के नीचे गुजरते वक्त ठंडक मिल जाएगी। अभी तक लगता था कि ऐसा हम ही सोचते थे, लेकिन हमारी तरह से और भी लोग थे। उनको भी इस पेड की ठंडक अच्छी लगती थी। धूप तो धूप यह पेड इतना घना था कि पानी बरसे तो छाते का काम करता था। न जाने कितने ही लोगों की रोजीरोटी इसी पेड के नीचे बैठकर चलती थी।
ब्रिटिश भारत में जमीं थी जड़ें:
धार्मिक कार्यों का गवाह था यह वृ्क्ष:
जानते हैं यह पेड आजादी से पहले का था। न जाने कितनी ही यादों को संजोए हुए था यह पेड। जब मेरा विवाह हुआ तो यही पेड था जो गवाह था कुंआ पूजे जाने का। इसी पेड के नीचे एक कुंआ है, जिसकी परिक्रमा की थी। मेरी मां इसी कुंए में पैर डाल कर बैठी थी। याद तो नहीं आता है, वह कौन सी बात होती है विवाह के दौरान जब मां बेटे से वचन लेती है। मैने भी वह वचन अपनी मां को दिया था, तब यही पेड था जो गवाह था उस वचन का।
राजनेताओं ने की पहल
धार्मिक कार्यों का गवाह था यह वृ्क्ष:
जानते हैं यह पेड आजादी से पहले का था। न जाने कितनी ही यादों को संजोए हुए था यह पेड। जब मेरा विवाह हुआ तो यही पेड था जो गवाह था कुंआ पूजे जाने का। इसी पेड के नीचे एक कुंआ है, जिसकी परिक्रमा की थी। मेरी मां इसी कुंए में पैर डाल कर बैठी थी। याद तो नहीं आता है, वह कौन सी बात होती है विवाह के दौरान जब मां बेटे से वचन लेती है। मैने भी वह वचन अपनी मां को दिया था, तब यही पेड था जो गवाह था उस वचन का।
राजनेताओं ने की पहल
जिलाधिकारी से की मुलाकात
इस पेड को लेकर जितना हम भावुक हैं, उतना ही मेरे लखीमपुर के और भी तमाम लोग हैं। इस बात का अंदाजा मुझे तब हुआ जब, शशांक जी ने हमारे साथी गंगेश को फोन किया और इस पेड को लेकर बात करने लगे। गंगेश ने हमें बताया। अच्छा इसलिए लगा कि कोई तो है जो राजनीति के पचडों में पडने के बाद भी उस पेड के बारे में सोच रहा था। शशांक यादव समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष हैं, वह चिंतक हैं, हम तो कहेंगे कि वह एक अच्छे इंसान हैं। सिटी मांटेसरी स्कूल के संचालक विशाल सेठ का फोन आया, बोले विवेक भाई जानते हैं आज दुखः हरण नाथ मंदिर वाला पाकड का पेड गिर गया। हमने उनकी पूरी बता सुनी। विशाल को मेरी तरह ही इस पेड से बेहद लगाव था, यह अलग बात है कि इस लगाव को कभी जाहिर नहीं किया गया। विशाल ने अपने स्कूल के बच्चों के साथ गर्मी की पूरे अवकाश में पर्यावरण संरक्षण को लेकर अभियान चलाया था। स्कूल के बच्चों ने घर-घर जाकर पौधे बांटे थे। एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष रहे आशुतोष तो रास्ते में मिल गए, वही पाकड के पेड की बात करने लगे। आशुतोष तो पेड गिरने से इतना आहत थे कि वह जाकर जिलाधिकारी से मिल आए, उन्होंने तो पाकड के पेड गिरने की जांच कराने की मांग की।
कभी-कभी ऐसा होता है किसी का निधन हो जाता है, तब उसके महत्व के बारे में लोगों को अहसास होता है। वैसा ही इस पेड के साथ था। जब गिरा तो सबको अफसोस हुआ, ठीक वैसे ही जैसे घर के बुजुर्ग का निधन हो जाए तो घर का वजन कम सा लगने लगता है।
इस पेड को लेकर जितना हम भावुक हैं, उतना ही मेरे लखीमपुर के और भी तमाम लोग हैं। इस बात का अंदाजा मुझे तब हुआ जब, शशांक जी ने हमारे साथी गंगेश को फोन किया और इस पेड को लेकर बात करने लगे। गंगेश ने हमें बताया। अच्छा इसलिए लगा कि कोई तो है जो राजनीति के पचडों में पडने के बाद भी उस पेड के बारे में सोच रहा था। शशांक यादव समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष हैं, वह चिंतक हैं, हम तो कहेंगे कि वह एक अच्छे इंसान हैं। सिटी मांटेसरी स्कूल के संचालक विशाल सेठ का फोन आया, बोले विवेक भाई जानते हैं आज दुखः हरण नाथ मंदिर वाला पाकड का पेड गिर गया। हमने उनकी पूरी बता सुनी। विशाल को मेरी तरह ही इस पेड से बेहद लगाव था, यह अलग बात है कि इस लगाव को कभी जाहिर नहीं किया गया। विशाल ने अपने स्कूल के बच्चों के साथ गर्मी की पूरे अवकाश में पर्यावरण संरक्षण को लेकर अभियान चलाया था। स्कूल के बच्चों ने घर-घर जाकर पौधे बांटे थे। एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष रहे आशुतोष तो रास्ते में मिल गए, वही पाकड के पेड की बात करने लगे। आशुतोष तो पेड गिरने से इतना आहत थे कि वह जाकर जिलाधिकारी से मिल आए, उन्होंने तो पाकड के पेड गिरने की जांच कराने की मांग की।
कभी-कभी ऐसा होता है किसी का निधन हो जाता है, तब उसके महत्व के बारे में लोगों को अहसास होता है। वैसा ही इस पेड के साथ था। जब गिरा तो सबको अफसोस हुआ, ठीक वैसे ही जैसे घर के बुजुर्ग का निधन हो जाए तो घर का वजन कम सा लगने लगता है।
हाँ देखकर काफी दुःख हुआ ,,.....पर वहां के लोग तो अपनी अपनी कहानी बता रहे है....अब राम जाने ...पेड़ तो शहीद ही हो गया...!!
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