सुरेश चंद शर्मा*
चलो कहीं जंगल में यारों, आओ अपनी कुटी बनायें।
नष्ट हो गया अबतक जीवन, बचे-खुचे को सही बनायें।चलो कहीं जंगल में यारों, आओ अपनी कुटी बनाये।
बहुत हो गई आपा-धापी, दौड़-धूप व धक्कम-धक्का ।
सीना-जोरी, लूट-मार व बेमतलब की भग्गम-भग्गा ।
'गर आजादी इन से चाहो, इन से अपना पिंड छुडाएं ।
चलो कहीं जंगल में यारों, आओ अपनी कुटी बनायें ॥
पढ़े अगर अख़बार तो उसमें भरा हुआ है खून खराबा ।
और अगर सड़को पर जायें वहां से उड़ता शोर शराबा।
बट पीपल शीशम के नीचे चिडियों का कलरव सुन आयें ।
चलो कहीं जंगल में यारों आओ अपनी कुटी बनायें ॥
हवा प्रदूषित पानी दूषित खाना दूषित पीना दूषित ।
रहन सहन की शैली दूषित, रिश्ते दूषित, बातें दूषित॥
पत्तों की थाली पर रखकर कंदमूल से भूख मिटायें ।
चलो कहीं जंगल में यारों आओ अपनी कुटी बनायें ॥
आंखों में पैसों का थैला, मन-बुद्धि में लालच मैला।
घर घर में विघटन है फैला, अंहकार का नाग विषैला।
वन देवी के चरण छूकर मन-बुद्धि को साफ बनायें ।
चलों कहीं जंगल में यारों आओ अपनी कुटी बनायें ॥
चातक, पीलक, कोयल, फुदकी, दरजिन, तोते, हरियल, चुटकी,
मोर, पपीहे, हुदहुद; जल में - मुर्गाबी, बत्तख की दुबकी ।
घास-फूस का बना बिछौना, वहीँ झील के पास बिछाएं ।
चलो कहीं जंगल में यारों आओ अपनी कुटी बनायें ॥
सुरेश चंद शर्मा (लेखक पक्षीविद व वन्य जीवन के जानकार हैं, पंजाब यूनीवर्सिटी से ग्रेजुएट है, करीब 40 वर्षों से पक्षियों के अध्ययन व सरंक्षण में रत, बर्ड वाचिंग व वाइल्डलाइफ़ फ़ोटोग्राफ़ी में विशेषज्ञता, भारत गणराज्य की केन्द्र सरकार में कार्यरत हैं। इनसे sureshcsharma@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)
very very very nice...(i think those are Bard headed geese....)
ReplyDeletevery nice i had this thought my self more then once
ReplyDelete.. चलो कहीं जंगल में यारों आओ अपनी कुटी बनायें.
ReplyDeleteबहुत खूब काश ऐसा हो पाता. सभी ऐसा कर पाते.
जंगली लोग कवितायें भी लिखते है!, और वह भी गजब की वाह.....
ReplyDeletenaveen singh rathore
ReplyDeletenaveensenator@gmail.com
excellent..excellent..excellent....:-)