फोटो: © राजा पुरोहित |
डा० प्रमोद पाटिल* "ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सेंक्चुरी महाराष्ट्र का युक्तीकरण- बस्टर्ड सरंक्षण में एक महत्वपूर्ण योजना"
निर्देशांक- 18°21′00″N 75°11′38″E
स्थापना वर्ष- 1979
क्षेत्रफ़ल- 849,644 हेक्टेयर (3,280.49 वर्ग मील)
प्रस्तावित क्षेत्र- 1222 वर्ग कि०मी०
मौसम- शुष्क, ठण्ड में सौम्यता, गर्म मौसम में तापमान- (40 °C to 43°C )
तापमान- 13 °C to 42 °C
स्थलाकृति- ऊंची-नीची भूमि, कही कहीं पर विशाल टीले
वासस्थल- 6A/01 दक्षिणी उष्णकटिबंधीय कर्णपाती वन (चैम्पियन एंव सेठ 1968)
जैव-भौगोलिक क्षेत्र- डेक्कन प्रायद्वीप
प्रजनन काल- जुलाई से अक्टूबर (मानसून)
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard) की संख्या (बस्टर्ड गणना 2009)- कुल संख्या 21 ( नर- 08, मादा- 13)
दुनिया का सबसे विशाल वन्य जीव विहार अब अपना यह स्टेटस खो रहा है!, क्योंकि यह बस्टर्ड सरंक्षण के लिए जरूरी हो गया है! कभी आंकड़ों को पूरा करने के चक्कर में राज्य सरकार ने, एक बड़े इलाके को चिन्हित कर उसे "ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सेंक्चुरी" घोषित कर दिया था, जबकि इस इलाके में बड़ी-बड़ी मानव आबादियां, रेलवे ट्रैक, हाई-वे, बिल्डिंग्स, उद्योगिक इकाईयां मौजूद है, इस कारण कई सरकारी विभागों व प्राइवेट संस्थाओं से वन-विभाग के मध्य कानूनी विवाद उत्पन्न होते रहते है, और इन इन्सानी बस्तियों और उद्योगिक क्षेत्रों व प्राइवेट फ़ार्म जो कथित तौर पर कागजी दस्तावेजों में बस्टर्ड के आवास है! से इस खतरे में पड़ी प्रजाति को कोई लाभ नही पहुंचता। यदि इन कथित बस्टर्ड हैविटेट्स को अलाहिदा कर नये तरीके से सेंक्चुरी का गठन किया जायेगा, जिसमें उन्ही इलाको को चिन्हित किया जाए जहाँ प्राकृतिक रूप से बस्टर्ड के आवास स्थल है, तो इससे इस संरक्षित इलाके का दायरा तो कम होगा, किन्तु बस्टर्ड और वहाँ रह रहे स्थानीय समुदायों दोनो को फ़ायदा पहुंचेगा....!!! ...चलिए देखते है आखिर किस्सा क्या है!
"सोलापुर महाराष्ट्र में स्थित "ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सेंक्चुरी" बस्टर्ड का अद्वितीय वास स्थल है, जहाँ इस खूबसूरत परिन्दे को आसानी से देखा जा सकता है। यहाँ पर अधिकांशत: पर्यटक व शोधार्थी बारिश के मौसम में आते हैं, और इस पक्षी विहार के कोर एरिया में पक्षियों की यह खतरे में पड़ी प्रजाति को देखते हैं।
इस वन्य जीव विहार में दो बाते गौरतलब है, एक यह कि यह दुनिया का सबसे विशाल वन्य जीव विहार है! इसका क्षेत्रफ़ल तकरीबन 8,500 वर्ग कि०मी० है। दूसरा परिप्रेक्ष्य यह है कि इस सेंक्चुरी की सीमाओं के अन्तर्गत रेललाइन, हवाई अड्डा, सड़कें, औद्योगिक ईकाइयां, विभिन्न संस्थान व निजी फ़ार्म मौजूद हैं।
अब सवाल यह है, कि आखिर क्यों, इस विशाल सेंक्चुरी की सीमायें खींचते वक्त यह गौर नही किया गया कि यह सीमा रेखायें अपने भीतर मानव आबादी व मानव द्वारा बनाये गयी तमाम व्यवस्थाओं को समेंटे हुए है? वजह साफ़ थी कि जब शासन ने सभी राज्यों के लिए यह अनिवार्य नियम पारित किया कि सभी राज्य अपने वनों के क्षेत्रफ़लों का चार फ़ीसदी हिस्सा आरक्षित क्षेत्रफ़ल के रूप में चिन्हित कर उनका सरंक्षण करेंगे, नतीजतन आनन-फ़ानन में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के सरंक्षण के लिए राज्य सरकार ने उस "अनिवार्य शर्त" को अंजाम देने के लिए तमाम नियम कानूनों को दरकिनार करते हुए एक बड़े इलाके को ग्रेट ईंडियन बस्टर्ड सेंक्चुरी के रूप में चिन्हित कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप जो तस्वीर हमारे सामने उभरी वह बहुत ही कुरूपता लिए हुए है, एक वन्य जीव विहार जिसमे आदमी की रिहाइश गाह के साथ-साथ रेलवे, सड़के, विशाल इमारते वगैरह सभी कुछ मौजूद है! यही वजह है, कि अतीत की उस गलती का परिणाम यह पक्षी और सेंक्चुरी की सीमा के भीतर बसने वाले लोग, दोनों भुगत रहे हैं। अब तो आप जान ही गये होंगे कि कागज़ पर मौजूद इतनी विशाल सेंक्चुरी में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षी का सरंक्षण व संवर्धन किस प्रकार हो रहा होगा!
हांलाकि इतने बड़े क्षेत्रफ़ल में जो इलाके मानव गतिविधियों से रहित है, वहाँ अवश्य इस पक्षी को सरंक्षण मिल रहा है, किन्तु ज्यादातर इलाकों में मानव द्वारा जनित प्रदूषण, अनियन्त्रित आवा-जाही व जानवरों की चराई से सेंक्चुरी के काफ़ी हिस्से प्रभावित है, जो बस्टर्ड के हैविटेट को अव्यवस्थित कर चुके हैं।
वन्य जीव विहार में कानून का हवाला देते हुए किसी तरह डेवेलपमेन्ट पर सोलापुर व अहमदनगर जनपदों सेंक्चुरी की हद में आने वाले रिहाइशी इलाकों के लोगों पर जो प्रतिबन्ध लगाये गये, उसके परिणाम में यहाँ के लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, इन जगहों पर रहने वालें लोगों से अब सामुदायिक सरंक्षण की उम्मीद नही की जा सकती। क्योंकि सरकारी कारगुजारियों से यह तबका असंतुष्ट हो चुका है, और इसके चलते अब इन लोगों में बस्टर्ड पक्षी व उसके आवास के प्रति कोई संवेदना नही बची है, इस लिए इन इलाकों में सामुदायिक पक्षी सरंक्षण जैसे कार्यक्रमों की सफ़लता संदिग्ध हो जाती है।
जबकि यह साबित हो चुका है, कि जीव-जन्तु सरंक्षण में सामुदायिक सहभागिता ही सबसे बेहतर विकल्प है।
यदि जंगल में या इसके आस-पास रहने वाले समुदायों को बे-वजह सरकारी नियमों का हवाला देकर परेशान किया जाता रहा, तो सामुदायिक सरंक्षण की सारी संभावनायें समाप्त हो जाती है। जबकि पारंपरिक सरंक्षण द्वारा कई खतरे में पड़ी प्रजातियों को समुदायों द्वारा सफ़लता पूर्वक सरंक्षित कर लेने के तमाम उदाहरण हमारे बीच मौजूद है। इसलिए बस्टर्ड सेंक्चुरी का युक्तीकरण नितान्त जरूरी है। वैसे तो युक्तीकरण को डी-नोटीफ़िकेशन या सरंक्षित क्षेत्र को सीमित करना होता है, जिसमें सेंक्चुरी का क्षेत्रफ़ल सिकुड़ जायेगा, जो कि बस्टर्ड का आवास है! जबकि यहाँ स्थिति बिल्कुल अलग है, जब इस संरक्षित क्षेत्र से मानव आबादी, विशाल इमारतें, औद्योगिक क्षेत्र, इलाकों को हटा दिया जायेगा, जो कि सिर्फ़ कथित रूप से बस्टर्ड के आवास है, तो बस्टर्ड और स्थानीय निवासियों दोनों को लाभ होगा, क्योंकि फ़िर बस्टर्ड के आवास और स्थानीय लोगों के मध्य किसी तरह का संघर्ष नही बचेगा। ऐसा करने से वहाँ रहने वाले लोगों को ही लाभ नही पहुंचेगा, बल्कि बस्टर्ड भी उससे लाभान्वित होगी।
इस तरह सेंक्चुरी के युक्तीकरण से बस्टर्ड सरंक्षण में दो लाभ होगें- एक यह कि जब सेंक्चुरी का क्षेत्रफ़ल कम हो जायेगा, और वह रिहाइशी इलाके इससे अलग हो जायेंगे, जिनमें रहने वाले लोगों और वन-विभाग के मध्य टकराव की स्थिति बनी रहती थी, और उनके पक्षी सरंक्षण में कोई रूचि नही थी, उन लोगों में सरंक्षण की दोबारा संभावनायें जागृत होंगी। दूसरा ये कि सेंक्चुरी प्रशासन को इस छोटे इलाके का संचालन करने व नई योजनायें लागू करने में आसानी हो जायेगी। रेवन्यू व वन-विभाग के बीच कानूनी दांव-पेच भी समाप्त हो जायेंगे।
प्रस्तावित क्षेत्रफ़ल 1222 वर्ग कि०मी० के क्षेत्रों का अधिग्रहण कर उनमें बस्टर्ड हैविटेट का विकास करने की प्रक्रिया जल्द शुरू करने की आवश्यकता है, क्योंकि तमाम औद्योगिक घराने यहाँ की भूमि पर अपनी नजरे गड़ाये हुए है, उनकी पहल से पहले प्रस्तावित भूमि को चिन्हित कर नयी प्रबन्ध योजना बनाई जाय, एंव प्रशिक्षित लोगों की भर्ती, नंनज जैसे महत्वपूर्ण बस्टर्ड के आदर्श आवासों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, यह कोर एरिया बस्टर्ड का बेहतर प्रजनन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाय, साथ ही बफ़र जोन बस्टर्ड और क्षेत्रीय मानव आबादी द्वारा भी प्रयोग में लायी जा सकेगी। सेंक्चुरी की सीमाओं से सटी घनी आबादी वाले इलाकें में संचार व आवागमन के बेहतर माध्यमों की व्यवस्था की जाय।
स्थानीय समुदायों में जागरूकता अभियान चलाकर उनमें सामुदायिक वन्य जीव सरंक्षण की समझ विकसित की जाय। इस खूबसूरत पक्षी के वास स्थल को और इसकी प्रजाति को उपरोक्त प्रयासों का सफ़ल कार्यान्वन करने पर ही बचाया जा सकता हैं।"
डा० प्रमोद पाटिल (लेखक पेशे से चिकित्सक है, वन्य जीवन के जानकार, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के सरंक्षण में पिछले एक दशक से संघर्षरत हैं। इनसे gibpramod@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)
डी-नोटीफ़ाई होने के बाद क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि सैंक्चुरी के नाम पर जो जगह बचेगी वह इस खूबसूरत पक्षी का सुरक्षित ठिकाना बन पायेगा, या यहाँ भी झाड़झंखाड़ में अनुचित मानव गतिविधियां और वन-विभाग की अरुचि पूर्ण बे-मतलब की कथित गतिवधियां ही कागजों पर रेंगती व फ़िसलती रहेंगी।
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