वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Jun 28, 2010

औलाद के बदले औलाद!

दुधवालाइव डेस्क* बेटे के कातिल के बच्चों का किया अपहरण:-बात पिछले शुक्रवार यानी २५ जून की है, जब
लखीमपुर खीरी से उत्तर कुछ ही दूर पर स्थित परसिया गाँव के एक व्यक्ति ने पाँच मगरमच्छ (Crocodile) के बच्चों का अपहरण कर अपने घर ले  आया। दरसल ये अपहरण बड़ा ही अजीब और मार्मिकता की कहानी कहता है,  यह व्यक्ति जिसका नाम ओमप्रकाश है,

इसका बेटा गाँव के पास ही बह रही चौका नदी में २८ अप्रैल २०१० को नहाने गया था, वही किसी मगर ने इसे अपना निवाला बना लिया, पुत्र शोक में ओमप्रकाश रोज उस नदी के किनारे जाता और वही पर घण्टों बैठा रहता, इसका यह क्रम निरन्तर जारी था, तभी एक दिन अचानक चौका नदी से सटे एक खेत मे इसे मगरमच्छ और उसके १५ बच्चे दिखाई दिए, बदले के भावों ने उसे अधीर और आक्रोशित कर दिया, उसने झपट कर पाँच मगर के बच्चों को उठाया, और अपने तौलिये में लपेट कर चल दिया। घर आकर ओमप्रकाश ने उन नन्हे बच्चों को एक पानी भरे तसले में रख दिया, ताकि वो जिन्दा रहे! और वह उन्हे निहारता रहा, हैं !न अजीब बात कातिल के बच्चों को अदावत में उठा तो लाया वह शख्स पर उसके पिता होने की वृत्ति और बेटे को खो देने का दुख, उसे इन मगर के बच्चों को मार डालने से रोक रहा था। बदले की भावना ने उससे यह कृत्य तो करवा दिया, पर ओमप्रकाश का अन्तर्मन दुविधा में था, कही बेटे का गम, तो कही किसी के बच्चों को उसकी माँ से अलग कर देने का मलाल! 
 
आधी रात को मगरमच्छों ने गाँव पर बोला हमला:-
जिस रोज से मगर के बच्चे गायब हुए, उस दिन से ही मगरों ने खेतों और रास्तों पर घात लगाना शुरू कर दिया, हद तब हो गयी,  जब २६ जून को गौधूलि के वक्त बाजार से लौटती एक महिलाओं की टोली पर मगरमच्छों ने हमला बोला। महिलाओं का शोर सुन कर ग्रामीण लाठी-डण्डा पीटते और चिल्लाते हुए आये, तब जाकर यह हमला रूका!

अभी औलादों के लिए जंग थमी नही थी, इसी शाम परसिया गाँव के निवासी सुरेश के घर रात १२ बजे दो मगरमच्छ दाखिल हुए, गनीमत यह थी, कि सुरेश नींद से जाग गया था, उसने शोर मचाना शुरू किया, घर में भगदड़ मची, पड़ोसियों ने आकर लाठियों से मगरमच्छों को भगाने की कोशिश की, उन हमलावरों को भगाने में एक घंटे से ज्यादा का समय लग गया।
ओमप्रकाश बेटे के शोक में इतना गाफ़िल था कि पूछने पर बार-बार वह यही कहता कि यही मगर मेरे   बेटे का कातिल है, और वह इसी लिए इसके बच्चों को उठा लाया।
इन्सानी जज्बातों की यह कहानी बहुत अजीब है, कातिल के बेटों को उठाकर शायद उसे कुछ तसल्ली जरूर हुई होगी, लेकिन उसे देखकर यह भी लगता था, कि वह इस जानवर के बच्चों को उनकी माँ से छीन लाया है, उसे यह अपराध बोध भी था! शायद ये इन्सानी जज्बातों और प्रकृति प्रदत्त प्रेम व करुणा की प्रवृत्ति ही थी जो वह इन बच्चों को बड़ी हिफ़ाजत से एक पानी भरे तसले में रख कर उन्हे निहार रहा था! कुछ ऐसा उन जानवरों में भी होगा, जिनके किस्से हम सुनते आये कि कही कोई जानवर किसी आदम के बच्चे को उठा ले गया, और बाद में उसे न मारकर उसे अपने समुदाय का हिस्सा बनाया! रूडियार्ड किपलिंग का मोंगली इसकी एक मिसाल है!
फ़िलहाल दक्षिण खीरी वन प्रभाग की शारदा नगर रेन्ज के कर्मचारियों ने इन बच्चों को शारदा नदी में छोड़ दिया है, वहाँ की परिस्थितियों में ये जिन्दा रह पायेंगे यह एक सवाल है। चूंकि गाँव के समीप वाली नदी में जहाँ ये मगर अच्छी तादाद में रहते है, उस जगह पर इन्हे छुड़वाने का भयभीत ग्रामीणों ने विरोध किया, ताकि इनकी सख्या और न बढ़े! खीरी जनपद की लगभग हर छोटी बड़ी नदी में ये पानी वाली छिपकली यानी मगरमच्छ (रेप्टाइल्स) पाया जाता है।
जानवर किसी इन्सान को अपनी भूख मिटाने या खतरे का आभास होने की स्थिति में ही अपना शिकार बनाता है, और यही प्रकृति ने धरती के सभी जीवों को सिखाया है। मनुष्य को भी! लेकिन यह तो मानना होगा कि उनमें मातृत्व व सामुदायिक व्यवस्था बहुत सदृढ़ होती है, कभी मनुष्य ने उनसे बहुत कुछ सीखा होगा, और सीखता चला आ रहा है। वे (जानवर) प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्ति के विपरीत तब तक नही जाते जब तक उन्हे अनुकूल परिस्थियां मिलती है, नही तो जिन्दा रहने के लिए मानव न जाने क्या क्या करता है, हाँ मनुष्य जरूर अपने लाभ व लालच के लिए इरादतन इन जानवरों का कत्ल करता आया हैं। यह एक सत्य है!
हाँ चौका नदी में इन दुर्लभ रेप्टाइल्स की रिहाइशगाह को सुरक्षित रखने के इन्तजाम जरूरी है, और ग्रामीणों को जागरूक करने की, ताकि दोबारा इन दो प्रजातियों में ऐसी अदावत न हो!
मगर (Crocodile) और आदमी के मध्य अपनी सन्तानों को लेकर छिड़ी यह जंग, वन्य जीवन के व्यवहार की एक नई कड़ी जोड़ती है, जो अध्ययन का विषय बन सकता है। 

औलाद के बदले औलाद!

7 comments:

  1. रोचक और मार्मिक वृत्तांत

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  2. yese hi lekhe aane chahiye dudhwalive per

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  3. again.. jabrdast story ki hai apne. keep it up!

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  4. good story...yr site is making new strides..keep it up.

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  5. अच्छी खबर है लिखी भी बड़े ढंग से गयी हैं....

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