दुधवालाइव डेस्क* शनिवार २२ मई २०१० की शाम सात पैतालिस व रविवार २३ मई २०१० की सुबह सवा नौ बजे, भारत की सार्वजनिक क्षेत्र के रेडियो चैनल आकाशवाणी के मशहूर कार्यक्रम विविध भारती में दुधवा लाइव ई-पत्रिका के एक लेख का जिक्र किया गया। यह लेख था "विश्व प्रवासी पक्षी दिवस- एक अदभुत यात्रा की दुखद कहानियां!"
विविध भारती के उदघोषक श्री यूनुस ने बड़े विस्तार से इस लेख को उदघोषित किया, यकीनन इस कार्यक्रम के माध्यम से दुधवा लाइव पत्रिका की पर्यावरण और वन्य-जीव सरंक्षण की मुहिम को ताकत हासिल हुई है। क्योंकि आज भी रेडियों प्रसार का ऐसा माध्यम है जिसकी पहुंच जन-जन में है, या यूं कह ले कि समाज के हाशियें पर मौजूद उन लोगों तक जो आज भी महरूम है, अखबारों, सिनेमा, पत्रिकाओं, इन्टरनेट, टी०वी० चैनलों की रंग-बिरंगी दुनिया से! और यही वह वर्ग है जो आखिरी छोर पर बसता है, जीव-जन्तुओं के साथ, प्रकृति के बीच रहता आया यह वर्ग जिसने सदियों से प्रकृति से उतना ही लिया जितनी उसकी आवश्यकता थी, किन्तु अफ़सोस, कथित विकास की बलि-वेदी पर उस हाशिए के आदमी का भी प्रकृति के साथ सन्तुलन वाली प्रवृत्ति भी भेंट चढ़ गयी, अब बस वह व्यपार की भाषा जानता है, जाहिर है कि उसे अपना और अपने परिवार की भूख जो मिटानी है, साथ ही वह जरूरते भी पूरी करनी है जो फ़ैशन के दौर में जरूरी हो गयी हैं, नतीजतन अब प्रकृति से उसका भावानात्मक रिस्ता तार-तार हो चुका है, या कर दिया गया है, नतीजा यह हुआ कि आवश्यकताओं और लालच ने उस आदमी से प्रकृति का विनाश करवाना शुरू कर दिया, (हांलाकि इस विनाश की बागडोर एसी मे बैठे उन्ही लोगों के हाथ में है, जो पालिशी बनाते हैं, और इस बात का दम भरते है कि वो किसी मुल्क और वहां बसने वाले लोगों के मुकद्दर के निर्माता हैं!) और अब यही हाशिए का आदमी इस प्रकृति की रक्षा कर सकता है, क्योंकि ये प्रकृति के बीच रहता है और प्रकृति इसके आँगन, दुआरे से लेकर खेतों तक लहलहाती है, और यही वह जगह है, जहाँ , बगीचे, झाड़ियां, झुरमुट, खेत, तालाब, नदियां और उनमे बसते परिन्दें, तितलियां, अन्य तमाम जीव-जन्तु। और हाँ इस आदमी के पास अखबार, टी०वी०, इन्टरनेट भले न हो रेडियो जरूर होता है, ऐसे में यदि हम अपनी कोई कायदे की बात उस तक पहुंचाना चाहें तो यकीनन वह आवाज उस तक पहुंचती है और वह शख्स उस आवाज का हमनवाज़ भी बनता हैं, क्योंकि वह आखिरी छोर का आदमी अभी भी डिप्लोमेसी की परिभाषा से वाकिफ़ नही है।
विविध भारती में दुधवा लाइव को सुनने के लिए इस माइक पर क्लिक करे-
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कभी बापू ने इसी रेडियों को अपना ताकतवर हथियार बनाया था, इसी के माध्यम से उन्होंने तैतीस करोड़ हिन्दुस्तानियों को बरतानियां हुकूमत के खिलाफ़ खड़ा कर दिया, यहां दिलचस्प बात यह है, कि वह रेडियों भी उन्ही का था जिनके खिलाफ़ हम खड़े थे!
प्रसार के इस बेहतरीन माध्यम का आज भी बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है, और हो भी रहा है! हम उन लोगों को अपनी बात सुना सकते हैं, जो सुनते ही नही उस पर अमल भी करते हैं!
पर्यावरण, और वन्य-जीव सरंक्षण में रेडियों सर्वोत्तम भूमिका निभा सकता है, बजाय किसी अन्य माध्यम के, ऐसे में प्रकृति के किस्सॊं को आकाशवाणी के माध्यम से करॊड़ों लोगो के जहन को रश्क-ए-जिनां कर देना एक सुन्दर व सफ़ल प्रयास है।
दुधवा लाइव अपने गौरैया बचाओ जन-अभियान में पहली बार आकाशवाणी गोरखपुर से ब्राडकास्ट हुआ, यह तारीख थी २० मार्च २०१० और वक्त था सुबह का सात बजकर बीस मिनट।
आकाशवाणी गोरखपुर में दुधवा लाइव को सुनने के लिए इस तस्वीर पर क्लिक करे-
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दुधवालाइव डाट काम दुनिया भर की तमाम पत्र-पत्रिकाओं, टेलीविजन, इन्टरनेट और रेडियों से होता हुआ लोगों के दिलों तक पहुंचना चाहता है, ताकि हम सब एक बेहतर इरादे के साथ एक जगह पर इकठ्ठा हो सके।
साथ ही हम उन सभी प्रतिष्ठित पत्रों, पत्रिकाओं, टी०वी० चैनलों व आकाशवाणी के प्रति कृतज्ञ हैं, जिनका स्नेह हमारें इस मिशन को प्राप्त हुआ।
रेडियों मे दुधवा लाइव के जिक्र को वेबसाइट के मुख्य पृष्ठ पर मौजूद प्लेयर द्वारा रिकार्डिंग को सुना जा सकता है।
"विविध भारती की शुरूवात ३ अक्टूबर सन १९५७ को हुई, शुरूवाती दौर में इसका प्रसारण बम्बई और मद्रास से होता था, किन्तु लोकप्रियता बढ़ने से आकाशवाणी के अन्य केन्द्र भी इस कार्यक्रम का प्रसारण करने लगे। वैसे तो भारत मे रेडियों प्रसारण की शुरूवात २३ जुलाई सन १९२७ को हुई, लेकिन विविध भारती के माध्यम से रेडियों जन-जन की पसन्द बना।"
"विविध भारती की शुरूवात ३ अक्टूबर सन १९५७ को हुई, शुरूवाती दौर में इसका प्रसारण बम्बई और मद्रास से होता था, किन्तु लोकप्रियता बढ़ने से आकाशवाणी के अन्य केन्द्र भी इस कार्यक्रम का प्रसारण करने लगे। वैसे तो भारत मे रेडियों प्रसारण की शुरूवात २३ जुलाई सन १९२७ को हुई, लेकिन विविध भारती के माध्यम से रेडियों जन-जन की पसन्द बना।"
yea good post! the radio!
ReplyDeleteu dont have to read ...
no language problems ..
everybody can have one.
connected all the time .. no matter where you are,
jungle, mountain, beach .. city ... village ... in the air ..
real time ..