वह लोग करते हैं जहाजों का अपहरण-
यह करते हैं दूध के जहाज का अपहरण-
वह लेते हैं समुद्र की आड़-
यहां संरक्षण मिलता है नदियों का-
यह करते हैं दूध के जहाज का अपहरण-
वह लेते हैं समुद्र की आड़-
यहां संरक्षण मिलता है नदियों का-
लखीमपुर। अपनी खीरी की धरती पर भी सोमालियाई डाकुओं का जमावड़ा है। काम वही, अपहरण करके फिरौती वसूलना... बस जरा सा अंतर है। सोमालियाई डाकू पानी के जहाज अगवा करते हैं और खीरी के यह डाकू मवेशियों का अपहरण कर फिरौती वसूल करते हैं। जब भी सोमालिया में जहाज का अपहरण होता है तो अखबार और टीबी चैनल पर खबर आती है, लेकिन खीरी के डाकुओं की चर्चा थानों तक में नहीं होती, अखबार या टीवी बहुत दूर की बात है। पानी के जहाज बहुत कीमती माने जाते हैं, लेकिन खीरी के धौरहरा और ईसानगर ब्लॉक के किसानों के लिए उनके दुधारू मवेशियों की कीमत भी पानी वाले जहाज से कम नहीं है। यह मवेशी इनके लिए दूध के जहाज साबित होते हैं। जब इन मवेशियों का अपहरण कर लिया जाता है तो इनके मालिक भी उतना ही परेशान होते हैं, जितना कि पानी के जहाज के मालिक। फिरौती देकर वह पानी का जहाज छुड़वाते हैं और यह अपने मवेशी। पशुओं का व्यापार अब खालिस वस्तु का व्यापार बन चुका लोग इन्हे जीव समझ कर नही खरीदते बेंचते बल्कि इन्हे सामान समझा जाता हैं।
इतना ही नही, जिले में तमाम पशु दलालों द्वारा बूढ़े हो चले मवेशियों को बूचड़ खाना पहुंचा दिया जाता जहां ये जीव लाल गोस्त के टुकड़ों में तब्दील कर दिए जाते हैं।
सबसे पहले एक छोटा सा किस्सा बताते हैं। करीब तीन साल पहले ईसानगर ब्लॉक के गांजव जड़ेरा के रामनाथ हर रात कमरे में नहीं, अपनी दुधारू भैंस के पास खटिया डालकर सोते थे। भैंस के गले में उन्होंने घंटी बांध रखी थी। लोहे की जंजीर अपनी खटिया में लपेट कर तालाडाल लेते थे। वह ऐसा इसलिए करते थे कि भैंस के गले में बंधी घंटी बजती रहेगी तो मालूम होता रहेगा कि भैंस अभी है। जंजीर इसलिए अपनी खटिया से बांधते थे कि चोर कहीं उसे खोल न ले जाएं। लेकिन एक दिन उनकी होशियारी धरी की धरी रह गई... उनकी भैंस का अपहरण हो गया... उन्हें सुबह पता चला कि उनकी प्यारी कलुई भैंस अगवा हो गई। जानते हैं चोरों ने क्या किया... भैंस के गले की घंटी खोलकर एक चोर बजाता रहा, दूसरे ने ताला काट दिया; पहले वाला चोर तब तक घंटी बजाता रहा, जब तक उसका साथी भैंस को गांव के बाहर तक निकाल नहीं ले गया। इसके बाद दूसरा चोर भी भाग गया। करीब पन्द्रह दिन की मगजमारी के बाद तीस हजार रूपए देकर रामनथ अपनी भैंस को छुड़वाकर ला पाए। ऐसे किस्से धौरहरा और ईसानगर ब्लॉक में हर दूसरे या तीसरे गांव में सुनने को मिल जाएंगे। ऐसा केवल खीरी जिले के इलाके में ही नहीं, बल्कि बहराइच के सीमावर्ती गांवों के लोगों के साथ भी हो रहा है।
कितने गैंग करते हैं धंधा
खीरी जिले के धौरहरा और ईसानगर ब्लॉक में कुल पांच गैंग सक्रिय हैं। प्रत्येक गैंग में कम से कम पचास लोग शामिल रहते है। प्रत्येक गैंग की करीब पांच टीम होती हैं। हर गैंग में पांच ही सदस्य रखे जाते हैं। इस तरह से पांच गैगों के ढाई सौ सदस्य मवेशियों के अपहरण और फिरौती वसूलने तक शामिल रहते हैं।
कैसे करते हैं अपहरण
गैंग के लोग हर रात किसी एक गांव को चुनते हैं। ट्रक लेकर जाते हैं और गांव के बाहर उसे खड़ा कर देते हैं। इसके बाद गैंग के लोग गांव में घुसते हैं और कम से कम चार-पांच दुधारू भैंस ले आते हैं। इस दौरान गैंग के लोगों के पास असलहे और धारदार हथियार भी होते हैं।
चोरी और सीना जोरी
मवेशी अपहरण करने वाले गैंग के लोग पहले तो यही कोशिश करते हैं कि भैंस को खोलते वक्त किस किसी को पता न चले। अगर किसी को पता चल भी जाता है तो उसे असलहे दिखाकरचुप करा देते हैं और जानवर को गोली मार देने की वह चेतावनी देते हैं। इस पर भैंस मालिक शांत हो जाता है।
ऊंट पहाड़ के नीचे भी आया
ऐसा तो हमेशा ही होता है कि गैंग के लोग जोर जबरदस्ती कर मवेशी को ले जाते हैं, लेकिन ऐसे भी कई मौके आए हैं, जब गैंग के सदस्यों की लोगों ने जान तक ले ली.... ऐसा तीन साल पहले जेठरा गांव के पास हो चुका है, कई बार गांव वालों ने फायरिंग की, उन पर भी हुई।
नदियां बनती पनाहगाह
दरअसल शारदा और घाघरा नदियां मवेशियों का अपहरण करने वालों के लिए पनाहगाह का काम करती हैं। रात में ही मवेशियों का अपहरण कर उन्हें शारदा या घाघरा नदी पार करा दिया जाता है, अब मालिक लाख तलाश करे... कहां मिलने वाला। किसी को पता भी चला तो नदी पार जाने की हिम्मत नहीं।
रंजीतगंज नाला भी अड्डा
रंजीतगंज पुल से एक नाला बहता है। इस नाले के किनारे दो ऐसे अड्डे हैं, जहां अपहरण करने के बाद मवेशियों को बांध कर रखा जाता है। यहां नौरंगपुर और हसनापुर के पास यह दोनो अड्डे हैं। यहां कम से कम डेढ़ सौ भैंस हमेशा ही लोग बंधी देखते आ रहे हैं।
ऐसे होती है सेटिंग
जिसकी दुधारू भैंस का अपहरण होता है, वह चार-पांच दिन तक उसे तलाश कर थकहार कर जब बैठ जाता है, तब गैंग का ही एक व्यक्ति... जो सम्बंधित इलाके का नहीं होता है, भैंस मालिक के पास जाता है और फिरौती मांगता है। गैंग का आदमी रकम बताता है और मालिक उसे देकर अपनी भैंस छुड़वा लाता है।
कैसे तय होती है फिरौती
अधिकतर दुधारू भैंस की कीमत इस इलाके में तीस से चालिस हजार होती है। ज्यादातर जोड़ा ही अपहरण किया जाता है। इस लिहाज से भैंस के जोड़ की कीमत साठ से अस्सी हजार आंकी जाती है। इस कीमत का आधा ही फिरौती के रूप में लिया जाता है। डांगर पशुओं यानी जो बूढ़े और बीमार हैं, उनकी कीमते कम आंकी जाती हैं, लेकिन इन पशुओं को औने-पौने दामों में खरीद लिया जाता है और गोस्त के वास्ते इनकी कीमत अच्ची मिल जाती है। जिले में ये घृणित कार्य जोरों पर है।
(ये खबर समर्पित है उन सवेंदना से हीन लोगों के लिए जो मवेशियों को जीव न समझ कर वस्तु समझते हैं, और हज़ारों सालों से इन्हे गुलामों की तरह इस्तेमाल करते आ रहे है, आखिर हम इनसे काम लेते है, तो हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम इनके प्रति सहिष्णुता का बर्ताव करे! ये कैसी मानवता है और कैसी है उसकी परिभाषा कि धरती पर मौजूद एक जाति जिसे हम मानव कहते है उसके क्ल्याण के लिए न जाने कितने प्रयास और फ़िर घर आकर किसी जीव के गोस्त को अपने हलक से नीचे उतारते हुए मानवता की बात करते है, या धरती की तमाम प्रजातियां जिनके साथ हम रहते आये है, उनसे काम भी लिया और जब वो इस काबिल नही रहे कि हमारी अय्याशियों का बोझ ढो सके तब उन्हे हम चन्द रूपयों के लिए कसाईयों के सुपर्द कर देते हैं---वाह री मानवता!---माडरेटर)
दुखद!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteखीरी में भी बसते हैं सोमालियाई डाकू विवेक सेंगर जी की यथार्थ परक रपट है बस शीर्षक अतिश्योक्ति पूर्ण है। भैंस चोरों की तुलना सोमालिया के समुद्री लुटेरों से करना निश्चय ही अतिश्योक्ति है। धौरहरा क्षेत्र का आर्थिक सामाजिक पिछड़ापन इसके लिये जिम्मेदार है जिसको दूर करने के लिये धौरहरा सांसद एवं केन्द्रीय राज्यमंत्री जितिन जी प्रयासरत हैं और विवेक जी जितिन जी के विकास कार्यों को अपने अखबार में प्रकाशित करने से भले परहेज करें लेकिन उन कार्यों के परिणाम निश्चित ही यहां के परिवेष में बदलाव करने वाले होंगे। बहरहाल उत्कृष्ट लेख के लिये विवेक जी को बधाई।
ReplyDeleteरामेन्द्र जनवार
जब के के मिश्र ने दुधवा लाइव को जनमंच बनाया था तो पहली दफा हम लोग २० मार्च को गौरया दिवस मनाने के लिए निकले थे !जिस सुबह हम सेमिनार और गोष्ठी में जा रहे थे के के कि मेज पे मैंने एक कार्ड देखा !कोई कवी सम्मलेन का कार्ड था !एक खास विचारधारा के लोग इस कार्यक्रम को करा रहे थे !नीचे गौरया दिवस के बारे में भी लिखा था !सुखद अहसास हुआ !हमारे एक मित्र ने टिप्पड़ी की थी की अब तो गाय का नाम जपने वाले भी गौरैया को याद कर रहे है !अज विवेक के लेख ने मुझे उन्ही लोगो की याद दिला दी !माना कि अब तक परिंदे और गौरया इन लोगो के अजेंडे में नहीं थी लेकिन भाई जी गाय तो थी !वो बेजुबान जानवर तो थे ही ...!खीरी में भी ऐसे लोगो की कमी नहीं है जो गाय और सभ्यता के किस्से सुनते है !आखिर आज तक इन लोगो के मुह से हमने पशुओं के संग हो रही बर्बरता की कहानी क्यों नहीं सुनी जो आज विवेक ने सुनायी है !
ReplyDeleteजाहिर है जब इन्सान के भीतर की संवेदनाएं अपनी जगह छोड़ देती है तो उनको दूसरे इन्सान का दर्द समझ में नहीं आता! ऐसे दौर में विवेक सेंगर उन दुधारू पशुओं और बेजुबानो के खातिर पत्थर के शहर में संवेदना जगाने निकले है !आपका प्रयास सफल हो यही कामना है मेरी !पर मै यहाँ फिर थोडा आपकी लाइन से हटकर(भटककर ) उनसे सवाल दागना चाहता हू,जिनके सियासी एजंडे में गे भी है और पशु भी ..!आखिर वो अब तक किस गुफा में तपस्या कर रहे है !जरा उनसे भी पूछियेगा !यह समय स्यापा और विलाप करने का नहीं है !कुछ बदलने की मंशा का है !विवेक ने उस तस्वीर को शायद यही सोचकर सामने रखा होगा !सुन रहे है गौ माता के झूठे भक्तों!कुछ करिए !हा ,ये मत पूछियेगा कि पशुओं का अपहरण करने वाले किस मजहब के है ! शायद विवेक भी ये जानना नहीं चाह रहे हगे की इन बेरहम किस्म के लोगो का मजहब क्या है !मेरी दुआ है क़ि खीरी के दमन में लगा पशु तस्करी का ये दाग भी धुल जायेगा !
*मयंक वाजपेयी
अमर उजाला
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteअब तो यहाँ घमासान जारी है, मुझे लगता है कि अब तमाम पक्षों को अपनी अपनी भूमिका में आकर मोर्चा संभाल लेना चाहिए---क्योंकि यह विचारों की रन भूमि है!
ReplyDeletevivek ji,
ReplyDeletebahut badiya aur gambhir mudda uthaya hai aapne, ye sirf post hi nahi ye ek masla hai; aur wo bhi aisa jispar hum aap baate kar sakte hai lekin sarkari machinery ke liye sharm ki baat hai]
bahut sundar,,,,,,,
ReplyDeleteविवेक जी .अपने लखीमपुर के धौरहरा का सच लिखा है .मै तीन सालों तक लखीमपुर में रहा बचपन बचाओ आन्दोलन के जरिये मैंने खीरी में कम किया है .गंजर कहे जाने वाले इलाके के पिछड़े पन के लिए वहा के नेता जिम्मेदार है !गन्दी राजनीती ने गंजर की यह हालत की है .!अप ये लिखना भूल गए कि गंजर से जानवर नहीं चोरी हुए ..वहा के नेताओं ने वहा कि जनता को जानवर बना दिया है ! पहले उनका दूध निकलते है !फिर उसकी खल खीच कर सियासत के बाजार में बेंच देते है !
ReplyDeleteधौरहरा के लोगो इन नेताओं पे विश्वास मत करना !ये मीठी बातें बोलकर तुम्हारा ही सौदा कर लेगे !
गोविन्द खनाल
नयी दिल्ली
विवेक जी और मयंक जी
ReplyDeleteमै सहमत हूँ आपसे !
दोनों ने सही लिखा है !
सच खोला है !
बधाई हो दोनों को
''सियासत का तबाही से ताल्लुक पुराना है ,
जब कोई शहर जलता है तो दिल्ली मुस्कराती है !"
रणवीर
बदल देणा ए निजाम
(ऑरकुट पे मिलिए)
संगरूर
पंजाब
रामेन्द्र जनवार जी के लिए ....
ReplyDeleteवो क्या कहते है....
कान में कुंडल भी उसने कभी हसकर नहीं पहना
मुझसे बिछड़ कर कभी जेवर नहीं पहना !
दुनिया मेरे किएदर पे शक करने लगेगी ,
इस खौफ से मैंने कभी खद्दर नहीं पहना!
हा हा हा
मै पहले हँस लेना चाहता हू !
साथ ही फैज अहमद फैज का एक शेर आदरणीय रामेन्द्र जनवार जी को सुनाना चाह रहा हू !गौर करिए
'अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपायें कैसे;
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आयें कैसे!
घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है ,
पहले ये सोचे क़ि इस घर को बचाए कैसे !'
जनवार जी आपके कमेन्ट से दर्द और पीड़ा दोनों का अहसास हो रहा है !काश ये पीड़ा और दर्द थोडा सा यथार्थवादी होता !
पर छमा चाहता हू क़ि मुझे हंसी आ रही है !मै चाहुगा क़ि मेरे कमेन्ट का उत्तर आप इसी मंच पे लिखे !लिखे जरुर !
मै कुछ और भी कहना चाहता हू ..ये भी सुने ...
'आज हम दोनों को फुर्सत है
चलो इश्क करें
इश्क दोनों क़ी जरुरत है
चलो इश्क करें !
वो हुआ वो न हुआ वो कर दिखायेगे ,
अजी छोड़िये ये सियासत है चलो इश्क करें !'
जवाब दीजियेगा इसी मंच पे ....
काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
ReplyDeleteउतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नखास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
mujhe nahi pata tha ki janvaron ka bhi apharan hota hai.
ReplyDeletelagta hai koi film dekhkar sikha hai logo ne.
lakhimpur me to ye gajab ka crime hai.
jinki ap bat kar rahe ho..ye neta hi to iske liye jimmedar hai.ye log jhoote samajvadi hai.hame inse matlab kya hai.police to bikau hai hi.
k.k.mishra ji ko badhai
is suchna ke liye
विवेक जी,
ReplyDeleteलखीमपुर १९ बरस पहले आया था . तब मेरे मामा यहाँ बीज प्रमाणीकरण अधिकारी थे. सिर्फ दो दिन रुकना हुआ था तब मेरा यहाँ. मामा से ''गांजर गाथा'' सुनता रहता था. उनकी बातों से ये तो पता चलता था कि गांजर बेहद पिछड़ा और विपन्न इलाका होगा. मगर आपकी ''खीरी में भी बसते हैं सोमालियाई डाकू'' शीर्षक की रिपोर्ताज ने आँखों के सामने गांजर की मुकम्मल तस्वीर खींच दी. अब यहाँ काम का अवसर मिला है तो गांजर को करीब से देखने की ख्व्वाहिश पूरी करूँगा. आपके प्रशंसक जनवार साहब आपकी रिपोर्ट खासकर शीर्षक को कतिपय कारणों से ''दिल'' पर ले गए हैं. जहाँ तक मैंने महसूस किया उनका दर्द और एतराज़ सियासी लगा मुझे. अगर जनवार साहब की जड़ें गाँव-देहात में हैं तो मैं नहीं समझता उन्हें ये बताने की ज़रूरत है कि एक लघु-सीमान्त किसान के लिए पशुधन संपदा से कम नहीं होता...और जो कुछ गांजर में हो रहा है विवेक जी ने एकदम सटीक तुलना दी है. और रही बात जनवार साहब आपके नेता के प्रयास की तो इतना ही काफी है-
राजभवनो तक जाएँ न फरियादें
पथ्थरों के अभ्यंतर नहीं होता
ये सियासत कि तवायफ का दुपट्टा है
ये किसी के आंसुओं से तर नहीं होता
ब्रिजेश द्विवेदी