वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

Breaking

बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

May 20, 2010

चिड़ियों की तरह खाइये और जंगल बढ़ाइये!

दुधवा लाइव डेस्क* बायोलॉजिकल कन्जर्वेशन न्यूजलेटर की एक रपट के मुताबिक "चिड़ियों की तरह खाइये, और जंगल बढ़ाइये" कथन के बड़े गहरे मायने उजागर किए, सीधी बात ये है, कि मानव प्रजाति को छोड़कर सभी जीव प्रकृति प्रदत्त वृत्तियों के मुताबिक अपना जीवन जीते है, और यही कारण है, कि जहाँ मनुष्य नही होता है, वहाँ की पारिस्थितकी पूर्ण नियन्त्रण में होती है, ये जीव अपनी आदिम संस्कृति का पालन करते जा रहे है, थोड़े बहुत बदलाव के साथ!

शेर, बाघ, भालू पारिस्थितकी तंत्र में खाद्य श्रंखला के पिरामिड पर सर्वोच्च स्थान पर हैं, और यह बात लगभग सभी स्कूली बच्चे जानते है! ये जीव छोटे जीवों को अपना आहार बनाते हैं। और उस उर्जा पर निर्भर रहते है, जो नीचे से ऊपर की तरफ़ आती है (खाद्य श्रंखला में), यानी उन हरे पेड़-पौधों  से जो सूर्य की ऊष्मा लेकर कार्बोहाइड्रेट बनाते है।
इस नये शोध में स्मिथसोनियन ट्रूपिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सनशाइन वान बेल  बताया, कि पिरामिड के मध्य में जीवों की आपस में महत्वपूर्ण व जटिल सहभागिता होती है। जहाँ पक्षीं, चमगादड़ और लिजार्ड्स कीड़ों को अपना भोजन बनाते हैं, और ये कीट भक्षी जीव पेड़-पौधों पर पाये जाने वाले हानिकारक कीटों को खाकर उनकी संख्या को नियंत्रित करते है, जो अपने आप में एक प्राकृतिक पेस्टीसाइड की भूमिका होती है। नतीजतन वृक्षों को इन जीवों से अप्रत्यक्ष लाभ मिलता है।
स्मिथसोनियन संस्थान के वैज्ञानिकों की रेपोर्ट  कहती है कि हमारा शोध घास के मैदानों, जंगलों के अतिरिक्त मानव आबादी से भी जुड़ा है, जहाँ अनाज उत्पादन किया जाता है। क्योंकि यहाँ भी कीटों को खाने वाले जीव फ़सलों में लगने वाले कीटों को खाकर उनकी तादाद पर काबू रखते है, इससे खाद्य उत्पादन बढ़ता है। 

पुरानी थ्योरी के अनुसार अभी तक ये माना जाता था कि खाद्य जाल में कीट भक्षी पौधों पर बुरा असर डालटे है, क्योंकि पक्षी केवल शाकाहारी कीड़े-मकोड़ों को नही खाते बल्कि इन शाकाहारी कीड़ो को खाने वाले कीट भक्षियों यानी स्पाइडर (मकड़ी) को भी खा जाते है, और जब ये पक्षी किसी वृक्ष पर मौजूद मकड़ियों को नष्ट कर देंगे तो उस वृक्ष पर कैटरपिलर की तादाद बढ़ जायेगी, परिणाम ये होगा कि ये पत्ती खाने कीड़े हरे-भरे जंगलों को वीरान कर देंगे। वृक्षों को रुग्ण बना देंगे! लेकिन शोध के लेखक कहते है, कि यह तथ्य  सत्य नही है, क्योंकि चिड़िया सिर्फ़ मकड़ों को ही नही खाते, उनक कैटरपिलर भी पंसदीदा आहार है, इस लिए ये पक्षी उस समष्ठि में एक तरह समन्वय स्थापित करते है।
Photo Courtesy: Satpal Singh
कैलेन मूनी प्रोफ़ेसर यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलीफ़ोर्निया इरविन के १०० अध्ययनों के हिसाब से कीड़ों  को खाने वाले पक्षी, चमगादड़, व लिज़ार्ड  जंगलों में शाकाहारी व मांसाहारी कीटों व कीडों को खाते हैं, उससे लगभग ४०% वृक्षों का नुकसान कम होता है। और १४% हरियाली में वृद्धि होती है।
वान बेल के मुताबिक अब यह कहना उपयुक्त होगा कि "चिड़ियों की तरह खायें" हमारा शोध यह सिद्ध करता है, कि चिड़ियां, चमगादड़ व छिपकलियां जंगलों की छतरी में वैक्यूम क्लीनर का काम करती हैं, और उनके भोजन की लिस्ट में सब कुछ होता है।
कुल मिलाकर यह अध्ययन यह साबित करता हैं, कि पक्षीं, चमगादड़, और लिज़ार्ड जंगलों के सरंक्षण में अपनी अहम भूमिका निभाते है। इन प्रजातियों के सरंक्षण  पर विशेष ध्यान दिया जाय इस बदलते पर्यावरण में!

(नोट: क्या यह शोध इस तरफ़ तो इशारा नही कर रहा है, कि हम भी अपने खाने के मीनू में शकाहार व मांसाहार दोनों  तरह के आहार अवश्य ले, यदि ऐसा है, तो यह शोध व बहस का विषय बनना चाहिये-जो कि हमेशा से है!, पहले तो यह निश्चित हो कि मानव असल में शाकाहारी है या मांसाहारी, मेरे मुताबिक मानव की आहारनाल व अन्य लक्षणों से यह सब्जीखोर ही है, बजाय गोस्तखोर के, पर कुछ लोग दाँत आदि में कैनाइन का उदाहरण देकर..........खैर प्रकृति में जो प्राकृतिक तौर से हो रहा होता है, वह अक्सर उचित ही होता है, किन्तु मानव पर यह सिंद्धांत न लागू किया जाय वही बेहतर होगा.. क्योंकि मानव की आहार लिस्ट में वैसे भी सभी कुछ शामिल है फ़िर भी यदि उसे  और उत्साहित किया गया कि सब कुछ खाइए तो फ़िर  .....वैसे भी चिड़िया जब कोई फ़ल खाती है , तो उसके बीजों जंगल मे छोड़ती है- और नये वृक्ष तैयार होते है ,पर आदमी  के खाने  से.....जरा सोचिए आदमी सब कुछ खाने लगा तो फ़िर...... क्यों कि आज के समय में यही सर्वोच्च प्रीडेटर है, और खाद्य पिरामिड में शेर की जगह मानव को बिठा दिया जाय तो कोई बेजा बात नही होगी!"---माडरेटर)

courtesy: Biological Conservation Newsletter

3 comments:

  1. mr editor..good article..many good info..its always good read here

    ReplyDelete
  2. mr editor
    please
    consider
    also in birds stuff
    their voices male nd female
    apreciate your attention!!!!

    ReplyDelete

आप के विचार!

जर्मनी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार "द बॉब्स" से सम्मानित पत्रिका "दुधवा लाइव"

हस्तियां

पदम भूषण बिली अर्जन सिंह
दुधवा लाइव डेस्क* नव-वर्ष के पहले दिन बाघ संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महा-पुरूष पदमभूषण बिली अर्जन सिंह

एक ब्राजीलियन महिला की यादों में टाइगरमैन बिली अर्जन सिंह
टाइगरमैन पदमभूषण स्व० बिली अर्जन सिंह और मैरी मुलर की बातचीत पर आधारित इंटरव्यू:

मुद्दा

क्या खत्म हो जायेगा भारतीय बाघ
कृष्ण कुमार मिश्र* धरती पर बाघों के उत्थान व पतन की करूण कथा:

दुधवा में गैडों का जीवन नहीं रहा सुरक्षित
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* पूर्वजों की धरती पर से एक सदी पूर्व विलुप्त हो चुके एक सींग वाले भारतीय गैंडा

Post Top Ad

Your Ad Spot