कृष्ण कुमार मिश्र* दो फणों वाला अदभुत सर्प- नन्हा रसेल वाइपर -एक एतिहासिक घटना!
आप ने कई सिरों वाले राक्षसों, दैत्यों के बारे में कहानियां सुनी होगी, लेकिन यह मिथक सत्य भी हो सकता है, इस बात का प्रामाणिक उदाहरण है, लखीमपुर खीरी जनपद के मीरपुर गांव में मौजूद दो सिर वाला सांप! हमारी कई सिरों वाली शेषनाग की परिकल्पना को सिद्व कर रहा है। 22 जुलाई 2006 की सुबह थी एक ग्रामीण अपने खेत में काम करने गया था, तभी उसे एक नन्हा सांप दिखाई पड़ा, जिसके दो फन थे। भारत की धरती की यह नियति रही है, यहां सभी जीवों को आदर सम्मान के साथ देखा जाता है। और उनका कुछ न कुछ धर्मिक महत्व होता है। यदि उस जीव में कुछ खास विशेषता हो तो उसमें देवत्व का होना निश्चित मान लिया जाता है, कुछ ऐसा ही हुआ इस नन्हे रसेल वाइपर सर्प के साथ भी हुआ, जिसे उत्तर भारत में बहरी बजाज के नाम से सम्बोधित किया जाता है। उस ग्रामवासी ने जैसे ही इस सर्प के दो फण देखे उसके मन में शेषनाग देवता की छवि तुरन्त स्मृत हो आई, और उसने इस अत्यन्त विषधर को अपने अगौछे में लपेटकर घर ले आया फिर क्या था गांव में हल्ला मचा, भीड़ उमड़ी लोग इस सर्प को श्रद्वा के भाव लेकर देखने आए सावन के पवित्र महीने में भोले बाबा यानि महादेव के इस अनोखे आभूषण को नमन किया जाने लगा, नित्य सुबह शिव मन्दिर में इस सर्प को रखकर धूप अगरबत्ती व पुष्पो से पूजा-अर्चना शुरू हो गई मीडिया ने भी खुले मन से इस अदभुत धार्मिक अनुष्ठान का खूब प्रचार किया और वन विभाग के अधिकारियो ने भी खूब बयानबाजी की पर किसी ने इस वैज्ञानिक महत्व वाले दो सिर वाले सर्प की जीवन रक्षा के लिए कुछ नही किया। यहाँ तक कि कोई वन-अधिकारी ने उस गाँव तक जाने की भी जहमत भी नही उठाई, और जिला मुख्यालय से इस सर्प की गलत पहचान बताकर जनमानस को दिगभ्रमित करते रहे।
ग्रामीणो का धार्मिक अनुष्ठान व वन अधिकारी की बयानबाजी तब तक चलती रही। जब तक यह अदभुत सर्प ईश्वर को प्यारा नही हो गय। इस बीच न तो किसी ने चिड़ियाघर से सम्पर्क साधा और न ही किसी सर्प विज्ञानी से जिससे इस सर्प को जीवन मिल सकता था, और हजारों लोगो को यह अदभुत जीव देखने का मौका और इसका वैज्ञानिक अध्ययन भी। मैने जब इस दोमुहे सॉप के सन्दर्भ में बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से सम्पर्क साधा तो वहाँ के सीनियर सर्प विज्ञानी डा वरद गिरि ने बताया कि यह दो सिर वाला रसेल वाइपर पूरे भारत में पहला उदाहरण है। नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी यू एस ए के डेटाबेस में व अन्य स्रोतो से प्राप्त जानकारी से यह स्पष्ट हुआ कि यह दुनिया में इस प्रजाति का पहला स्पेशीमेन है इसके अलावा सन 2003 में स्पेन के एक गॉव में लैडर सांप के दो सिर पाए गए थे व अन्य प्रजातियों के दो सिर वाले सर्प अर्जेन्टीना, श्रीलंका और अमेरिका मे मिले।
यह सांप परिणाम है गर्भावसथा में जुड़वा बनने की अपूर्ण क्रिया का नतीजा है इस प्रकार के जीव हकीकत में टिवन्स ‘जुड़वा’ होते है लेकिन भ्रूण की कोशिकाओ का समान रूप से विभाजन नही हो पाता और जब यह भ्रूण थोड़ा विभाजित होने के बाद रूक जाता है तो इस तरह के जुड़वा बच्चे पैदा होते है इस तरह के विभाजन भ्रूण में किसी तरफ से हो सकता है यदि यह विभाजन सिर निर्माण वाली कोशिकाओं की तरफ से शुरू होकर बाद में रूक जाता है तो दो सिर व एक शरीर वाला जीव उत्पन्न होगा और यदि यह क्रिया पूंछ निर्माण वाली कोशिकाओ की तरफ से शुरू होकर रूक जाती है तो दो पूंछ व एक सिर वाला जीव बनेगा, और यदि यह विभाजन समान रूप् से पूर्ण हो जाता है तो दो अलग सम्पूर्ण जुड़वा जीव बनेगे।
आप ने कई सिरों वाले राक्षसों, दैत्यों के बारे में कहानियां सुनी होगी, लेकिन यह मिथक सत्य भी हो सकता है, इस बात का प्रामाणिक उदाहरण है, लखीमपुर खीरी जनपद के मीरपुर गांव में मौजूद दो सिर वाला सांप! हमारी कई सिरों वाली शेषनाग की परिकल्पना को सिद्व कर रहा है। 22 जुलाई 2006 की सुबह थी एक ग्रामीण अपने खेत में काम करने गया था, तभी उसे एक नन्हा सांप दिखाई पड़ा, जिसके दो फन थे। भारत की धरती की यह नियति रही है, यहां सभी जीवों को आदर सम्मान के साथ देखा जाता है। और उनका कुछ न कुछ धर्मिक महत्व होता है। यदि उस जीव में कुछ खास विशेषता हो तो उसमें देवत्व का होना निश्चित मान लिया जाता है, कुछ ऐसा ही हुआ इस नन्हे रसेल वाइपर सर्प के साथ भी हुआ, जिसे उत्तर भारत में बहरी बजाज के नाम से सम्बोधित किया जाता है। उस ग्रामवासी ने जैसे ही इस सर्प के दो फण देखे उसके मन में शेषनाग देवता की छवि तुरन्त स्मृत हो आई, और उसने इस अत्यन्त विषधर को अपने अगौछे में लपेटकर घर ले आया फिर क्या था गांव में हल्ला मचा, भीड़ उमड़ी लोग इस सर्प को श्रद्वा के भाव लेकर देखने आए सावन के पवित्र महीने में भोले बाबा यानि महादेव के इस अनोखे आभूषण को नमन किया जाने लगा, नित्य सुबह शिव मन्दिर में इस सर्प को रखकर धूप अगरबत्ती व पुष्पो से पूजा-अर्चना शुरू हो गई मीडिया ने भी खुले मन से इस अदभुत धार्मिक अनुष्ठान का खूब प्रचार किया और वन विभाग के अधिकारियो ने भी खूब बयानबाजी की पर किसी ने इस वैज्ञानिक महत्व वाले दो सिर वाले सर्प की जीवन रक्षा के लिए कुछ नही किया। यहाँ तक कि कोई वन-अधिकारी ने उस गाँव तक जाने की भी जहमत भी नही उठाई, और जिला मुख्यालय से इस सर्प की गलत पहचान बताकर जनमानस को दिगभ्रमित करते रहे।
ग्रामीणो का धार्मिक अनुष्ठान व वन अधिकारी की बयानबाजी तब तक चलती रही। जब तक यह अदभुत सर्प ईश्वर को प्यारा नही हो गय। इस बीच न तो किसी ने चिड़ियाघर से सम्पर्क साधा और न ही किसी सर्प विज्ञानी से जिससे इस सर्प को जीवन मिल सकता था, और हजारों लोगो को यह अदभुत जीव देखने का मौका और इसका वैज्ञानिक अध्ययन भी। मैने जब इस दोमुहे सॉप के सन्दर्भ में बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से सम्पर्क साधा तो वहाँ के सीनियर सर्प विज्ञानी डा वरद गिरि ने बताया कि यह दो सिर वाला रसेल वाइपर पूरे भारत में पहला उदाहरण है। नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी यू एस ए के डेटाबेस में व अन्य स्रोतो से प्राप्त जानकारी से यह स्पष्ट हुआ कि यह दुनिया में इस प्रजाति का पहला स्पेशीमेन है इसके अलावा सन 2003 में स्पेन के एक गॉव में लैडर सांप के दो सिर पाए गए थे व अन्य प्रजातियों के दो सिर वाले सर्प अर्जेन्टीना, श्रीलंका और अमेरिका मे मिले।
यह सांप परिणाम है गर्भावसथा में जुड़वा बनने की अपूर्ण क्रिया का नतीजा है इस प्रकार के जीव हकीकत में टिवन्स ‘जुड़वा’ होते है लेकिन भ्रूण की कोशिकाओ का समान रूप से विभाजन नही हो पाता और जब यह भ्रूण थोड़ा विभाजित होने के बाद रूक जाता है तो इस तरह के जुड़वा बच्चे पैदा होते है इस तरह के विभाजन भ्रूण में किसी तरफ से हो सकता है यदि यह विभाजन सिर निर्माण वाली कोशिकाओं की तरफ से शुरू होकर बाद में रूक जाता है तो दो सिर व एक शरीर वाला जीव उत्पन्न होगा और यदि यह क्रिया पूंछ निर्माण वाली कोशिकाओ की तरफ से शुरू होकर रूक जाती है तो दो पूंछ व एक सिर वाला जीव बनेगा, और यदि यह विभाजन समान रूप् से पूर्ण हो जाता है तो दो अलग सम्पूर्ण जुड़वा जीव बनेगे।
दरअसल दो सिर वाले सांप या अन्य किसी जीव का मतलब होता है दो दिमाग एक शरीर या यूँ कह ले कि एक शरीर में दो आत्माए, अब आप सोच सकते है कि जब एक सिर वाला दिमाग एक तरफ चलने की हिदायत करता है और दूसरा सिर वाला दिमाग दूसरी दिशा में जाने का निर्देश देता है। क्या इस उहापोह में सांप किसी निश्चित दिशा में गति कर सकता है यही स्थित तब भी उत्पन्न हो ती है जब यह सर्प शिकार पर होगा क्याकि भूख दोनो सिरो को एक साथ महसूस होगी और शिकार पर झपट्टा भी दोनो सिर एक साथ लगाएगें ऐसे हालात में शिकार को भाग जाने का पूरा मौका मिलेगा। प्रजनन क्रिया मे भी यह अर्न्तद्वन्द बाधक बनता है चूकि सांप कोर्टशिप के वक्त नर सांप अपनी ठुड्ढी मादा की पीठ से रगड़ता है ऐसे वक्त दो मुंह वाला सांप के दोनों सिर अपनी-अपनी ठुड्ढी मादा की पीठ से रगड़ेगें एंव इन दोनो का समागम का अपना अलग ’सोच’ तरीका होगा ऐसे में मादा की प्रतिक्रिया क्या होगी यह अत्यन्त कौतुक का विषय होगा। उपरोक्त कारणो के चलते इस तरह के सांपों की जीने की संभावना उसके प्रकतिक आवास में न के बराबर होती है किन्तु चिड़ियाघरो व शोध केन्द्रों में ये जीव जीवित रह सकते हैं। जहां इन्हे प्रशिक्षित लोगो द्वारा पाला जाता है कैपिटीविटी में इस तरह के दो सिर वाले सर्पो को सफलता पूर्वक जीवित रखा जा सका है दुनिया में इस तरह के कई प्रमाण है। कभी-कभी दोनो सिर आपस में सामजस्य स्थापित करने में सफल भी हो जाते है। "हावर्ड यूनीवर्शिटी के वान वैलेश लिखते है कि वाइल्ड ‘प्राकतिक आवास’ मे इस तरह के सांपों का जीवन काल बहुत कम होता है। टेनेजी यूनिवर्शिटी के प्रोफेसर गार्डन कहते है -कि इस तरह के जीव को अदभुत लीला नही समझना चाहिए ये जीव भी अन्य सामान्य जीवो की ही तरह होते है और ये दो तन्त्रिका तन्त्र यानि दो मसितष्क ‘दो सिर’ व एक शरीर वाले जीव हमें यह मौका देते है कि कैसे एक ही शरीर से दो जीव अपना जीवन आपसी सामजस्य व नियन्त्रण के साथ निर्वहन करते है यह अध्ययन मानव जाति में उन जुड़वा लोगो के लिए लाभप्रद हो सकता है जिनके शरीर आपस में जुड़े हैं।"
वैसे तो दुनिया में सांपों की 2700 प्रजातियां पाई जाती है जो 15 परिवारो के अर्न्तगत रखी गई हैं इनमें वाइपर सांपों को दो भागो में विभक्त किया गया है पिट वाइपर- भारत में यह सांप हिमालयी क्षेत्रों मे पाये जाते है एंव ट्रू वाइपर या इसे आप बिना पिट वाला वाइपर भी कह सकते है ये सभी सर्प अत्यधिक जहरीले होते है इनका जहर हीमोटाक्सिक होता है इस प्रकार के सर्पो की 50 प्रजातियां पाई जाती हैं इन्ही में से एक प्रजाति है रसेल वाइपर ‘बहरी बजाज’ मुखयता उत्तर प्रदेश व पंजाब में पाया जाता है इसके शरीर पर गोल-गोल काले-भूरे धब्बों की तीन समानान्तर श्रखलाए होती है इसकी त्वचा पीले रंग की होती है वाइपर सांप की लम्बाई डेढ़ से दो मीटर तक हो सकती है ये अपने शरीर को अग्रेंजी के यस अक्षर की तरह बनाए रहते है इन सापों की फुफकार किसी उनय जहरीले सापं से ज्यादा तेज व भयानक होती है गुस्से मे ये सर्प हमला करते वक्त जमीन से काफी ऊपर उठ जाता है इन्हे पकड़ना अन्य सर्पो की अपेक्षा अत्यधिक कठिन होता है जबकि कोबरा जैसे सांप को पकड़ना आसान होता है वाइपर पक ड में आ जाने के बाद भी सर्घष जारी रखते है चूंकि इनके विष दन्त लम्बे व चलायमान होते है इसलिए ये पकड़ में आ जानें के बाद भी घातक हो सकते है। इनके ऊपरी जबड़े में एक जोड़ी विष दन्त होते है जो अन्य जहरीले सर्पो के विष दन्तो से बड़े होते है। इनके ये दांत आगे-पीछे घूमने की सामर्थ्य रखते है इनका प्रजनन वर्ष के षुरू में ही प्रारम्भ कर देता है मादा में गर्भावस्था 6 माह की होती है मादा सर्प बच्चे जून-जुलाई के महीने में देती र्है यह 20 से 40 नन्हे वाइपरों को जन्म देती है। ये सर्प जरायुजी यानि सजीव बच्चो को जन्म देते है। ये मुख्यता रात्रिचर होते हे किन्तु ठण्डे दिनों में यह सांप दिन में भी सक्रिय रहते है वाइपर सर्प के आवास सामान्तयः घास के मैदानों, झाड़ीदार मैदानों, फारेस्ट प्लानटेशन व खेतिहर भूमियां होती है चूंकि इनका मुख्य भोजन चूहा होता है इस लिए ये सर्प मानव आबादी के काफी नजदीक आ जाते है। इस सर्प का नाम रसेल वाइपर इस लिए पड़ा क्यो की भारत में सर्वप्रथम सांपों पर कार्य स्काटलैण्ड के सर्जन व नेचुरालिस्ट पैट्रिक रसेल( 1726-1805) ने किया उन्हे भारत में सर्प विज्ञान का पिता कहा जाता है। इनकी किताब ‘एन एकाउन्ट ऑफ इण्डियन सरपेन्टस कलेक्टेड आन द कोस्ट ऑफ कोरोमण्डल’ आज उतनी ही प्रासगिक है। जितनी तब थी, इनका एक और जनकल्याणकारी उद्वेश था, भारत के लोगो को जहरीले व बिना जहर वाले सर्पो में अन्तर करने का ज्ञान कराना ताकि सर्प दंश से होने वाली मौतो पर नियन्त्रण रह सके।
भारत में सर्प दंश से होने वाली मौतो का सबसे पहले सर्वेक्षण जोसेफ फेयरर द्वारा सन 1874 में किया गया, जिसके नतीजो के मुताबिक हमारे देश में 20000 लोगो की मृत्यु सांप के काटने से हो जाती है जिनमें 90 फीसदी सर्प दश। के शिकार हुए लोग असपताल नही पहुंच पाते, हाल ही में सवाइ व होमा द्वारा सन 1974 में किये गये सर्वे के अनुसार अभी भी 10000 लोग सांप के काटने से मरते है। आज भी ग्रामीण इलाको में जहाँ गरीब तबके के लोग जिनके पास रात्रि में टार्च व रोशनी का कोई उम्दा प्रबन्ध नही होता, और खेतो में नंगे पैर कार्य करना पउ़ता है। ऐसे लोग अधिकतर सर्प दशं के शिकार होते है।
हमारे देश में सांपों की 350 प्रजातियां है जिनमें 69 प्रजातिया जहरीले सांपों की होती है इनमें 29 जातिया समुन्द्री सर्पो ‘अत्यधिक विषैले’ की व 40 जातियां स्थलीय होती है। भारत सर्प दंश से होने वाली मौते सांपों की चार प्रजातियों द्वारा होती है। जिन्हें मेडिकल साइंस में बिग फोर के नाम से जाना जाता है ये सर्प है- कोबरा ‘नाग’, रसेल वाइपर, करैत, व सा स्कैल्उ वाइपर।
सर्पो में दो तरह का विष होता है जिसे न्योरोटाक्सिक व हीमोटाक्सिक में विभाजित किया गया है। इस जहर के एन्टीवेनम सरकारी अस्पतालो में मौजूद रहते है किन्तु दूर दराज के प्राथमिक चिकत्सालयों में इसका उचित प्रबन्ध न होने के कारण सांप द्वारा काटे जाने पर लोगो का इलाज नही हो पाता और उनकी मृत्यु हो जाती है। सर्प दंश की सबसे अधिक घटनाए बरसात के मौसम में होती है। तराई क्षेत्रो में सांपों की तादाद ज्यादा होने के कारण व नम मौसम की वजह से यहॉ सांप काटनें से अघिकतर लोग मरते है। ये मीरपुर का दो सिर वाला सर्प विज्ञान के क्षेत्र में अपनी महती भूमिका निभा सकता था। किन्तु यहाँ के खालिस सरकारी तन्त्र की व्यवस्था के चलते व वैज्ञानिक चेतना के अभाव में यह संभव न हो सका।
कृष्ण कुमार मिश्र (लेखक वन्य जीवन के शोधार्थी है, पर्यावरण व जीव-जन्तु सरंक्षण को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए प्रयासरत, इनसे dudhwajungles@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)
महत्वपूर्ण व जानकारीपरक लेख। हिन्दी में ऐसे विषयों पर मौलिक लेखन का क्रम बना रहना चाहिए।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण व जानकारीपरक लेख
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