कृष्ण कुमार मिश्र* विश्व प्रवासी पक्षी दिवस 8-9 मई 2010- संकटग्रस्त पक्षियों की सुरक्षा करें- प्रत्येक प्रजाति की गिनती हो!
आइये आसमान के बंजारों को हम पनाह दें अपने खेत-खलिहानों, चरागाहों और तालाबों में!
पक्षियों की कुल ज्ञात प्रजातियों 9865 में से 1227 यानी 12.4% प्रजातियां खतरे में हैं, इनमे से भी 192 पक्षी प्रजातियां अत्यधिक संकटापन्न स्थित में बताई जा रही हैं। बर्ड लाइफ़ इंटरनेशनल व रेड डाटा बुक के मुताबिक पक्षियॊं की कुल किस्मों में से 19% पक्षी प्रजातियां प्रवासी पक्षीयों के अन्तर्गत आती हैं, इनमें 11% प्रजातियां वैश्विक स्तर पर खतरे की सूची में या संभावित खतरे के अन्तर्गत रखी गयी है। 31 प्रजातियां गंभीर खतरे वाली सूची में हैं। दुनियाभर के तमाम संगठन प्रवासी पक्षियों के सरंक्षण व सवंर्धन के लिए आगे आ रहे।, आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं, और सलाह दे रहे हैं, कि इन्हे गिनियें आखिर कब तक हम प्रयोग करते रहेंगे, और दस्तावेज तैयार कर सिर्फ़ नुमाइश करते रहेंगे इन प्रकृति की सुन्दर कृतियों की- एक बाजीगर की तरह!
किन्तु यहाँ भी वही सवाल खड़ा होता है, कि आखिर कौन है जो बचा सकता है हमारी जैव-विविधता को?
जाहिर है कि जिनके पास प्राकृतिक संपदा के खजाने है और जो उनके मध्य रहते है, सह-जीवियों की तरह! हमारे ग्रामीण और उनकी जमीनें, तालाब, चरागाह, खेत-खलिहान सभी कुछ...........यही सब तो आवास होते है हमारे इन पक्षियों, तितिलियों, मछलियों, और न जाने कितनी अदभुत प्रजातियों के। किन्तु बदलते माहौल ने हमारे ग्रामीणों का परिवेश भी बदल दिया, जैसे अब उनकी फ़सलों में विविधता नही होती है, संकर प्रजातियां व जहरीली रसायनों से युक्त फ़सले जो किसी भी जीव को भोजन तो नही मौत अवश्य दे सकती हैं, साथ ही तलाबों में जिन फ़सलों यानी सिंघाड़े आदि का उत्पादन होता है, उसमे अत्यधिक मात्रा में कीटनाशक प्रयोग किए जा रहे है, नतीजा हजारों किस्म के कीट-पंतगें, पक्षी, मछलिया, मेढ़्क, व सर्पों की प्रजातियां विलुप्त होती जा रही है
साथ ही विलुप्त हो रही है वो वनस्पतियां जिन पर ये सब आश्रित होते थे। क्योंकि कैश-क्राप के लोभ में मानव इन अमूल्य वनस्पतियों को खर-पतवार मान-कर समूल नष्ट कर रहा है!
हमारे प्रवासी व स्थानीय पक्षी इन्ही तालाबों के किनारे चरागाहों, व परती भूमि में सैकड़ों मीलों की यात्रा के बाद उतरते थे, जहाँ इन तालाबों का शुद्ध जल, इसकी वनस्पतियां इनका स्वागत करती थी, लेकिन अब न तो चरागाह है और न ही परती भूमि है, छिछले तालाब पाट कर कृषि-भूमि में बदल दिए गये हैं, और जो बचे है उनमें या तो शहरों व गाँवो का गन्दा पानी गिराया जाता है या फ़िर जहरीले रसायन युक्त फ़सलों की खेती- अब ऐसे हालातों में ये पक्षी अपना पड़ाव कहाँ डाले................................. हमें चीजों को बदलना होगा.....और बदलती चीजों में ठहराव लाना होगा तभी संभव है कि हम इन प्रजातियों को धरती पर रोक सके। क्योंकि किसी भी प्रजाति को नष्ट करना हो तो उसका घर ढहा दीजिये और ये काम हम कर चुके है, हमने सभी के घर ढ़्हायें है, यहाँ तक कि अपनी स्व-जाति के घरों में भी बारूद भर कर आतिशबाज़ी के तमाशे देखने से हम नही चूकते और इन सब वृत्तियों के बाद भी हम अगर ये चिल्लाते है कि हमे कुछ बचाना है, तो ये हास्यापद और पागलपन की निशानी के अतिरिक्त और कुछ नही! पहले हम अपनी मनोदशा बदले नही तो हमारी विनाशक प्रवत्ति हमें उसी रास्ते पर ले जायेगी जहाँ हम इन सुन्दर प्रजातियों को भेज रहे हैं।
संसार में पक्षियों की तमाम प्रजातियां अपनी आवश्यकताओं जैसे भोजन, प्रजनन, आवास, जलवायु व सुरक्षा के कारण हर वर्ष हजारों मील का रास्ता तय कर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जाती हैं, जहाँ उनके जीवन जीने के लिए अनुकूल परिस्थितियां मौजूद होती हैं। और फ़िर एक निश्चित समय के बाद अपने मूल आवासों को वापस लौटती हैं, यह प्रवास ४-५ महीने तक का हो सकता है। और प्रवास स्थलों की दूरी १०० मील से लेकर हजारों मील तक हो सकती है। ये पक्षी इतना लम्बा रास्ता तय कर उन्ही स्थानों पर पहुंचते है, जहाँ वह पिछले वर्ष गये थे, और कार्य यह पक्षी बिना किसी नक्शे व राडार प्रनाली का प्रयोग किए बिना करते है! इतनी अधिक दूरी तय कर निश्चित जगहों पर पहुंचना यह साबित करता है, कि ये पक्षी उर्जावान व प्रखर मस्तिष्क वाले होते है। किन्तु आज बदलती जलवायु, बढ़ता प्रदूषण, पर्यावरण असंतुलन के हालात पैदा कर रहा है, मानव की लालची प्रवत्ति ने इन पक्षियों के आवास नष्ट कर दिए, इनका शिकार और इनकी उड़ान में बाधा जैसी विषमतायें उत्पन्न कर डाली, नतीजतन अब इनकी प्रजातियां ही खतरे में- इन्ही कारणों के चलते विश्व स्तर पर इन सुन्दर पक्षियों के सरंक्षण के लिए विश्व प्रवासी पक्षी दिवस मनाने की एक और महत्वपूर्ण मुहिम शुरू हुई।
मानव द्वारा गढ़ित अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को लांघते हुए ये पक्षी जब हजारों मीलों का सफ़र तय करते हैं, तो हर वक्त इनकी जिन्दगियां किसी बारूद भरे लोहे के निशाने पर होती है, पल भर रूक कर सुस्ताने व उर्जा की पूर्ति के लिए भोजन जैसी जरूरी वस्तुओं दरकार के लिए ये पक्षी उन जानी-पहचानी जगहों पर कुछ पल या दिनों के लिए ठहरते है, लेकिन जरूरी नही कि इस बार उन्हे यहाँ प्रश्रय मिले, क्योंकि पिछली बार जब ये किसी समुन्दर के किनारे या जलाशय के किनारे रूके थे, वहाँ अब या तो बड़ी-बड़ी इमारते होती हैं, रिहाइशी जगहें...........हमें इनके ये स्टेशन्स बचाने होगें, ताकि ये परिन्दे स्वछंद इस धरती पर घूम-फ़िर सके। क्योंकि हमारी अतिथि के स्वागत की परंपरा जैसी भावना भी हमारी वृत्ति में शामिल है, जिसे हमे जिन्दा रखना है।
मानव द्वारा गढ़ित अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को लांघते हुए ये पक्षी जब हजारों मीलों का सफ़र तय करते हैं, तो हर वक्त इनकी जिन्दगियां किसी बारूद भरे लोहे के निशाने पर होती है, पल भर रूक कर सुस्ताने व उर्जा की पूर्ति के लिए भोजन जैसी जरूरी वस्तुओं दरकार के लिए ये पक्षी उन जानी-पहचानी जगहों पर कुछ पल या दिनों के लिए ठहरते है, लेकिन जरूरी नही कि इस बार उन्हे यहाँ प्रश्रय मिले, क्योंकि पिछली बार जब ये किसी समुन्दर के किनारे या जलाशय के किनारे रूके थे, वहाँ अब या तो बड़ी-बड़ी इमारते होती हैं, रिहाइशी जगहें...........हमें इनके ये स्टेशन्स बचाने होगें, ताकि ये परिन्दे स्वछंद इस धरती पर घूम-फ़िर सके। क्योंकि हमारी अतिथि के स्वागत की परंपरा जैसी भावना भी हमारी वृत्ति में शामिल है, जिसे हमे जिन्दा रखना है।
यह वैश्विक आयोजन प्रवासी पक्षियों की सुन्दरता के आकर्षण व सरंक्षण को समर्पित है, इस आयोजन में दुनिया भर के पक्षी व जीव-जन्तु प्रेमियों से अपेक्षा की जाती है, कि वह इन आसमान के बन्जारों को अपनी जमीनों व दिलों में एक मेहमान की हैसियत से जगह दे और आम-जनमानस को इनकी महत्ता बतायें।
सर्वप्रथम ९ अप्रैल २००६ को वर्ल्ड माइग्रेटरी बर्द डे के तौर पर अफ़्रीकन-यूरेशियन माइग्रेटरी वाटर बर्ड्स एग्रीमेंट (UNEP/AEWA) और ग्लोबल कनवेंशन ऑन माइग्रेटरी स्पेसीज (UNEP/CMS) द्वारा मनाया गया था, जिसका विषय था "प्रवासी पक्षियों को अब हमारा सहयोग चाहिए।"
जलवायु परिवर्तन के कारण इस वक्त प्रवासी पक्षियों पर बेहद संकट उत्पन्न होने की आंशका जताई जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग व अन्य मानव जनित समस्याओं के चलते आसमान के इन घुमक्कड़ बंजारों पर अत्यंत घातक प्रभाव पड़ रहा है, इस कारण जलवायु परिवर्तन सन २००७ में मुख्य मुद्दा बनाया गया। जलवायु परिवर्तन हमेशा जीवों के आवास स्थलों में घातक बदलाव उत्पन्न करता है, और इनके प्रवास के समय में भी फ़ेरबदल करवा देता है, नतीजतन स्थानीय व प्रवासी पक्षियों की प्रजातियों के मध्य आवास व भोजन को लेकर टकराव की स्थित उत्पन्न होती है।
पक्षियों की पूरी समिष्ट पर जलवायु परिवर्तन की वजह से प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, भविष्य में जलवायु परिवर्तन पर्यावरणीय असंतुलन का मुख्य कारक होगा। जबकि जनमानस में भविष्य की इस भयावह स्थिति को लेकर उदासीनता है, इस लिए पक्षियों के सरंक्षण में सभी का योगदान इस बदलते माहौल में आवश्यक है।
वैश्विक दिवस एक रोज के लिए मनाये जाते है, किन्तु इनका मुख्य उद्देश्य होता है लोगों को किसी अच्छी बात के लिए संस्कारित करना। तभी इन आसमानी जीवों की यात्रायें सुखद व संपूर्ण हो सकेंगी।
यदि हम इन परिन्दों के लिए कुछ बेहतर नही कर सके तो यकीनन एक रोज ये आसमान पक्षीविहीन होगा! क्या आप इस बात की कल्पना करना चाहेंगें!
nice
ReplyDeletekrishna here u wrote a
ReplyDeletegood and very usefull article !!!