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International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Mar 19, 2010

विश्व गौरैया दिवस पर सौजन्या संस्था का सन्देश

 डा० उमा कटियार*  २० मार्च "विश्व गौरैया दिवस" के अवसर पर अपने घर आँगन में डोलती प्यारी
चिड़िया जो अब कहीं नही दिखती, वाश-बेसिन पर लगे दर्पण में अपनी ही तस्वीर पर चोंच मारते-मारते थकती वह मासूम.....हमारी ही ज्यादतियों से खो गयी। ’हर हाथ में मोबाइल’ तो आया अवश्य पर टावरों के अत्याचार से इस चिड़िया का वंश नाश हो गया। प्रकृति कुछ जीव-जन्तुओं को जंगल में ही रखना ठीक समझती है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो हमारे सामाजिक परिवेश में घरेलू रहन-सहन का हिस्सा बने हैं, गौरैया ही ऐसी दुलारी चिड़िया है, जो दुर्लभ हो गयी है। हमारी जन-जन से यह पुरजोर अपील है कि इस मांगलिक पक्षी को लौटा लाने में पूरी ताकत लगायें।

अब न वह पानी, हवा, खुशबू न बगिया
अब न वह मकरन्द फ़ूलों में

अब न दिल में प्रीति प्यारे पंछियों की
अब न वह मस्ती है झूलों में

चहचहानाजब घरों में दे सुनायी
जान जाते थे चिरैया घर आयी

दौड़ते थे ले के हम माँ का महावर
उसको रंगने के लिए हर जुति लगायी

आज मेरे हाथ से चावल के दानें
मुरमुरी लैया व गेहूं के ठिकाने

ध्वस्त चूहे कर रहे, हर अन्न दाना
अब न गौरैया चुने वे अपने दानें

वो बहुत बेखौफ़ होकर घर में आती
खूब रूकती दाने चुगती, चहचहाती

मेरे मन के पत्र पर नक्शे बनाती
अब कभी आँगन में, उसका चहचहाना

धूल में गर्दन खुजा करके नहाना
मुझको उसको रंग देने का बहाना

हो गया वीरान वह सपना सुहाना!
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डा० उमा कटियार ( लेखिका समाज सेवी हैं,  लखीमपुर खीरी में महिलाओं के संगठन सौजन्या की प्रमुख, सामाजिक सरोकारों में सक्रियता)

इस गौरैया की तस्वीर साभार: अब्दुल सलीम

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