कृष्ण कुमार मिश्र* गौरैया हमारे घरों में शेर की हैसियत रखती है, वह इस पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है और सूचक है, जैव-विविधिता की
स्थिति का! २० मार्च सन २०१० को "गौरैया दिवस" पर खीरी जनपद समेत पूरी तराई में यह कार्यक्रम दुधवा लाइव ई-पत्रिका की ओर से चलाये गये। "गौरैया बचाओ अभियान" के तहत लगभग एक महीने पूर्व से ही जागरूकता अभियान और लोगों को पक्षियों के महत्व की बाते बतलाई गयीं। साथ ही यह प्रयास भी किए गये कि लोगों में पक्षियों के भोजन और उनकी सुरक्षा की भावना जागृत हो। २०-२५ दिनों में सारी कवायदे सफ़लता प्राप्त कर चुकी थीं, क्योंकि लोगों ने छतों पर पानी और आँगन में अनाज बिखेरना शुरू कर दिया है। तमाम जगहों से जो सूचनायें प्राप्त हो रहीं है, वह खुशी की है, किसी के यहाँ पानी और अनाज को रखने के बाद गौरैया का आना शुरू हुआ, तो कहीं पर लोगों ने सैकड़ों की तादाद में गौरैया होने की पुष्टि की, साथ ही उनकी वो संवेदनायें वापस लौट आयी इस नन्ही सी चिड़िया के लिए जो मशीनी दुनियां में भटक गयी थी।
स्थिति का! २० मार्च सन २०१० को "गौरैया दिवस" पर खीरी जनपद समेत पूरी तराई में यह कार्यक्रम दुधवा लाइव ई-पत्रिका की ओर से चलाये गये। "गौरैया बचाओ अभियान" के तहत लगभग एक महीने पूर्व से ही जागरूकता अभियान और लोगों को पक्षियों के महत्व की बाते बतलाई गयीं। साथ ही यह प्रयास भी किए गये कि लोगों में पक्षियों के भोजन और उनकी सुरक्षा की भावना जागृत हो। २०-२५ दिनों में सारी कवायदे सफ़लता प्राप्त कर चुकी थीं, क्योंकि लोगों ने छतों पर पानी और आँगन में अनाज बिखेरना शुरू कर दिया है। तमाम जगहों से जो सूचनायें प्राप्त हो रहीं है, वह खुशी की है, किसी के यहाँ पानी और अनाज को रखने के बाद गौरैया का आना शुरू हुआ, तो कहीं पर लोगों ने सैकड़ों की तादाद में गौरैया होने की पुष्टि की, साथ ही उनकी वो संवेदनायें वापस लौट आयी इस नन्ही सी चिड़िया के लिए जो मशीनी दुनियां में भटक गयी थी।
गौरैया दिवस के दिन खीरी जनपद के मितौली विकास क्षेत्र में आयोजित प्रमुख कार्यक्रम में २०१० को "गौरैया वर्ष" घोषित किया गया। और पूरे वर्ष गौरैया सरंक्षण के लिए कार्यक्रम निर्धारित किए गये जो सतत जारी हैं।
इसी सिलसिले में "गौरैया ग्राम" व "गौरैया मित्र" पुरस्कारों की घोषणा भी दुधवा लाइव की तरफ़ से की गयी। जिसमें एक "निगरानी समिति" और "चयन समिति" का निर्माण किया जा रहा है। अब हम गाँव-गाँव जाकर लोगों से बात-चीत कर रहे हैं, और उन लोगों के बारे में जानकारी जुटा रहे है, जो पक्षी सरंक्षण में अपनी भूमिका अदा कर रहे है। इस संबध में तमाम फ़ोन प्राप्त हो रहे हैं, कि इन-इन गाँवों में ये-ये लोग गौरैया का सरंक्षण कर रहे है, हम उन और प्रोत्साहन देंगें, और भविष्य में उन्हे पुरस्कृत भी करेंगे ताकि अन्य लोगों को प्रेरणा मिले।
दुधवा लाइव के प्रयासों से शाह्जहाँपुर, पीलीभीत, लखनऊ, अम्बेडकर नगर, बरेली, फ़ैजाबाद आदि जगहों पर जो कार्यक्रम हुए, उन्हे देखकर और साहस हुआ है, कि इस अभियान को सतत जारी रखा जायेगा, और लोगों की पक्षी सरंक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका सुनश्चित की जायेगी।
हम गौरैया के लिए जिस वातावरण को दोबारा वापस लाने की बात कर रहे है, वह सिर्फ़ गौरैया को ही नही बल्कि उस पूरी की पूरी जैव-विविधिता की वापसी होगी जिसे कभी हम-सब ने अपने बचपन में खेतों, खलिहानों और चरागाहों में देखा है। आनंदित हुए है! गौरैया हमारे घरों और उसके आस-पास रहती आयी हैं, जाहिर है जो वातावरण हमने विकास के नाम पर बनाया है, वह उन सभी जीवों के लिए खतरनाक होगा जो उस माहौल में अपनी ईह-लीला को अंजाम दे रहा है, यकीनन मनुष्य भी इसमें शामिल है। फ़र्क बस इतना है, जो जहर हमने बोया है वह अभी नन्हे जीवों को समाप्त कर रहा है, पर वह समय ज्यादा दूर नही जब मनुष्यता सीधे खतरे में होगी! गौरैया का कम होना मात्र एक संकेत है- मनुष्य के लिए!
यदि हम वह पर्यावरण लौटाने में सफ़ल हुए तो एक बार फ़िर गौरैया हमारे आँगन में खेलेंगी, तितलिया फ़ुलवाड़ी में रंग भरेंगी, और पतंगे रोशनी के इर्द-गिर्द दीवानगी की सारी पराकाष्ठा के साथ समर्पित दिखेंगे। यानी हमारे ग्रामीण व शहरी परिवेश की जैव-विविधिता फ़िर से वापस होगी।
गौरैया हमारे घरों, गाँवों और शहरों की शेर है! यह वह पक्षी है जो सबसे नजदीक रहा है हमारे, शायद हम में से कितनों ने चिड़िया के नाम पर पहली बार गौरैया, और घोसले के नाम पर गौरैया का घोसला देखा हो। हमारे घरों व उसके आस-पास के वातावरण का यह शेर हमारी करतूतों से विलुप्त हो रहा है और साथ में विलुप्त हो रही है जैव-विविधिता जो हमारे आस-पास देखी जाती थी।
गौरैया बचाना मात्र जीव-जन्तु सरंक्षण ही नही है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, लोक-गाथाओं, और ग्रामीण व शहरी जीवन के एक हिस्से को दोबारा वापस ला सकता है। हम अपने संपूर्ण अतीत को सुरक्षित कर सकेंगे, यदि गौरैया बचती है। लोक-गीतों, कथाओं, बचपन की स्मृतियों में वे शब्द और बाते फ़िर से जीवित हो उठेंगी जो कहीं गुम हो गयी थी।
कृष्ण कुमार मिश्र ( लेखक वन्य जीवन के शोधार्थी है, पर्यावरण व जीव-जन्तु सरंक्षण को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए प्रयासरत, इनसे dudhwajungles@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)
गौरैया बचाना मात्र जीव-जन्तु सरंक्षण ही नही है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, लोक-गाथाओं, और ग्रामीण व शहरी जीवन के एक हिस्से को दोबारा वापस ला सकता है। हम अपने संपूर्ण अतीत को सुरक्षित कर सकेंगे, यदि गौरैया बचती है। लोक-गीतों, कथाओं, बचपन की स्मृतियों में वे शब्द और बाते फ़िर से जीवित हो उठेंगी जो कहीं गुम हो गयी थी।
कृष्ण कुमार मिश्र ( लेखक वन्य जीवन के शोधार्थी है, पर्यावरण व जीव-जन्तु सरंक्षण को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए प्रयासरत, इनसे dudhwajungles@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)
गौरैया के विषय में कुछ महत्वपूर्ण लेख-
1-हम रिहाइशी इलाकों के बाघों को बचाने निकले हैं!
2-सफरनामा-जहाँ काले नागों का बसेरा है, वहाँ एक घोंसला चिड़िया का था
2-एक ऐसी प्रजाति जिसने अपनी संततियों का सारा हिस्सा खा लिया!
3-हमारे गाँव से आयी पाती..
4-ताजा खबर: "गौरैया बचाओं जन-अभियान" मना रहा है, "गौरैया वर्ष २०१०"
5-खीरी जनपद में धूमधाम से मनाया गया गौरैया दिवस - मितौली रहा केंद्र
6-मेरे घर भी आए गौरैया
7-विश्व गौरैया दिवस पर सौजन्या संस्था का सन्देश
8-मनुष्य जाति की मित्र नजदीकी पक्षी गौरैया
9-खीरी जनपद में "विश्व गौरैया दिवस"
10-गौरैया
11-जुगनी लौट के आयेगी तो उसके पंखों को हम फिर रंगेगे .....!
12-पर वो नही आयीं!
13-गौरैया बचाओ
14-तू कब आयेगी
15-परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है
16-अरे यें तो हिस्सा थीं हमारे घर का!
17-तराई में आन्दोलन की शक्ल अख्तियार कर रहा है, विश्व गौरैया दिवस
18-दो कवितायें- विश्व गौरैया दिवस २० मार्च के उपलक्ष्य में
19-विश्व गौरैया दिवस
nice
ReplyDeleteहमें ऐसे आयोजन समय समय पर करते रहने की आवश्यकता हैं.........दुधवा लाइव अपने तरह की अनुठी पहल है........ शिशिर शुक्ला....
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