वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Mar 17, 2010

जुगनी लौट के आयेगी तो उसके पंखों को हम फिर रंगेगे .....!

रागिनी*  (मिश्र जी, दुधवा लाइव के लिए मेरी पहली कहानी है .ये कहानी

गौरैया और इंसानों के बीच के रिश्ते की कथा कहती है .शायद मेरी कहानी उन लोगो को कुछ समझा सके, जो जंगल काटकर शहर बना रहे है .)
......जुगनी ओ जुगनी 

बापू ने जोर से आवाज दी ...जुगनी ओ जुगनी
कही से कोई उत्तर नहीं .कोई जवाब नहीं .बापू के चेहरे पे रंग बदला .फिर जोर से आवाज दी जुगनी ..इस बार बापू के साथ मैंने भी सुर मिला दिया ..जुगनी .फिर कोई जवाब नहीं .अम्मा कि प्रतिक्रिया जरुर आ गई ..चौके से ही बोली ..सवेरे से दोपहर हो गई है दरसन नहीं हुए महरानी के .आज कल पता ही नहीं चलता उनका .बापू कि आँखों में भी गुस्सा छलक आया था .बोले -तुम लोग नजर रखा करो उस पर .अम्मा भी बुदबुदाईं  .मै तो जाने कब से कह रही हु जमाना ख़राब आ गया है ..मेरी कोई सुने तब न ..बापू ने फिर कहा सुनेगी कैसे नहीं .इस बार मै उसकी खबर लेता हू. मुझे अम्मा और बापू कि बाते तनिक भी नहीं भाती. बस दो घंटा पहले ही तो जुगनी यही थी .थोडा निकल कर बाहर क्या गई सब ने आसमान सर पे उठा लिया ..औरत है न वो भी ..!
दोपहर जा चुकी थी .हम दोपहरी कि नीद पूरी कर चुके थे .आंगन में जूठे बर्तन धोये जा रहे थे .बचा हुआ खाना गाय के आगे डालने का फैसला हो चूका था .जुगनी का खाना आज वैसे ही रखा था .मैंने तो बस सोचा ही था .अम्मा बरस पड़ी .खाना भी नहीं खाया है राजकुमारी जी ने ..!
रात होने को थी .बापू इस बार परेशान थे .आज जल्दी घर आ गए थे .दो दफा दरवाजा झांक आये थे .एक बार छत पर टहल चुके थे .लौटते वक़्त उनके चेहरे  पर निराशा  का भाव दीखता था ..बुदबुदाते थे ..यहाँ तो मुझे कोई कुछ समझता ही नहीं ..जुगनी अपने मन कि मालिक हो चली है .भूल गयी कि मोहल्ला ठीक नहीं है .
रात गहरा गई ..जुगनी नहीं आयी .
बापू कि नीद भी दूर थी .
हम बिस्तर में लिपटे करवाते ले रहे थे .
अम्मा उठकर छत पे चली गयीं .
पर सोयी वो भी नहीं ..
किसी तरह सवेरा हुआ ,अम्मा के मुह से बार बार निकल रहा था,  जुगनी रात भर नहीं आयी .उनका मन करता था पड़ोसियों से जुगनी कि बदमाशी बताएं .पर बदनामी का दर था .जाने क्या कहेगे लोग .अपनी बेटी  पाली नहीं जाता .ठेका ले लिया जुगनी का .
अब तो हम भी चिंता करने लगे .ऐसी क्या बात हो गयी .!
दरवाजे की बेल बजी .देखा तो सामने राम चरण खड़ा था .राम चरण का चेहरा सुबह देखना  ..अशुभ समझते थे मोहल्ले वाले .राम बचन पास में बन रहे मिल का विरोध कर रहा था .कहता था कि मिल बस्ती से दूर बने ,बापू कहते कि मिल बनेगी तो काम मिलेगा .कारखाना खुल रहा है दारू कि दुकान थोड़े ही ,राम चरण कहता कि देखना मोहल्ले का नाम बदलना पड़ेगा .मिल वाले तुम्हारे घर में मशीन लगायेगे तो पता चलेगा .आज राम चरण ये खबर लाया था कि मिल वालों ने सड़क के किनारे के सारे पेड़ कट डाले है .बापू पर कोई असर नहीं पड़ा इस खबर का .वो बोले -ठीक किया और क्या ...कम से कम रास्ता दिखेगा ,हम शहर में रहते है ..किसी जंगल में नहीं .तुम लोग जाने क्यों शहर को जंगल बनाने में लगे हो ...!
गुस्से में तमतमाए राम चरण ने अपने पुराने झोले में ठुसे हुए घोसलों को बहार निकल लिया ! परिंदों के घोसले घर कि कच्ची फर्स पर बिखर गए ...! पूरा घर सन्नाटे में आ गया .
राम चरण गुस्से में बोला-ये मिला है मिल वालों से .पेड़ काटने से जंगल को शहर नहीं बनता ...शमशान  बनता है ,!
मेरा सिर चकरा गया .लगा कि हम शमशान घाट में खड़े है ,,,! लगा कि अभी उलटी हो जाएगी .
मेरी आँखों के सामने जुगनी के रिश्तेदारों के आशियाने पड़े थे .इन्ही घोसलों से उड़कर जुगनी हमारे घर तक आयी थी .फॉर कही नहीं गयी ..! मोहल्ले के सारे बच्चों को स्कूल भेजने ,सबको काम पर जाता देख .चौके में बचे हुए खाने पर लौट आती थी .सिर्फ दोपहर के वक़्त अपने रिश्तेदारों से मुलाकात करने जाती थी ...हमारे स्कूल लौटने तक वापस आ जाती थी .रिश्तेदार सड़क के उस पार पेड़ों पार आशियाना बनाये थे ...उस दिन भी वहीं गयी थी .फिर लौट कर नहीं आयी ...!
हमारी खामोशी को एक और मनहूस खबर ने तोडा ..!
मिल डैवार्जन वाली रोड पे नयी सड़क पे ....मालिक की हांडा सिटी और एम्बेसडर निकलती थी .हवा में बाते करते हुए ..उन्ही में से एक के पहियों के नीचे ....!
जुगनी को खबर नहीं थी कि वो जिस सड़क पे सहेलियों के संग खेलने गयी है ...वो अब उसकी नहीं है ..! उसको पता नहीं था कि मशीनों के दौर में उसकी जरुरत भी नहीं थी ...नादाँ थी ..!
वो समझती थी, कि अभी ये मोहल्ला उसकी नानी के समय का पुराना गाँव है .जहाँ हर घर के आगे चावल के दाने और कटोरों में पानी रखा जाता था ..जहा हम लोग डलिया के नीचे लकड़ी लगाकर जुगनी और उसकी सहेलियों को फ़साते थे .और फिर उनके पंखों को रंग कर आसमान में छोड़ देते थे, जुगनी और उसके जैसे दोस्त आपस में हँसते थे ...होली खेलकर लौटे हो जैसे .....!
जुगनी को कौन समझाता कि अब उसकी जरुरत किसी को नहीं है .
पर मुझे है न...! जुगनी लौट के आयेगी तो उसके पंखों को हम फिर रंगेगे .....!
क्या ऐसा होगा ..
सपना पूरा होगा .!
रागिनी (लेखिका रोजी रोटी समिति में कार्यरत हैं, पूर्व में इन्होंने कई सामाजिक संगठनों में कार्य किया, श्रमिक बच्चों के स्कूल में अध्यापन, इनसे raginiaimlko@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।  )

तस्वीर साभार: नेचर फ़ॉर एवर सोसायटी

5 comments:

  1. मिश्रा जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आप प्रकृति के प्रति इतने सजगता फैला रहे है और यही बात मुझे बहुत मुतास्सिर करती है, मैं डीपी मिश्रा जी को जनता हूँ, मैं स्वयं पीलीभीत का रहने वाला हूँ , बल्कि यों कहें कि लखीमपुर खीरी का ही क्यूंकि मेरा घर पीलीभीत में है और घर से बहार निकलते ही जो सड़क है वह खीरी में आती है... पूरी पढाई ही सम्पूर्णा नगर पब्लिक इंटर कॉलेज से की... और हाँ मेरे भाई को आप ज़रूर जानते होंगे समीउद्दीन नीलू अमर उजाला के पत्रकार हैं वह....

    और हाँ मेरा ब्लॉग है विज्ञान आधारित मंच है एक::: छोटा सा प्रयास svachchhsandesh.blogspot.com ज़रूर देखिएगा...

    मैंने आपके लिए एक लेख लिखा है जो गौरैया पर आधिरत होगा और जो 20 मार्च को sb.samwaad.com पर प्रकाशित हो जाएगा...यह विज्ञान संचार में अहम् भूमिका निभा रहा है आज कल. मैं चाहता हूँ आप इसका अवलोकन अवश्य करें और अगर पसंद आये तो इसके मेम्बर भी बन जाईये...

    आपका अनुज
    सलीम ख़ान
    9838659380

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  2. जुगनी लौट के आयेगी तो उसके पंखों को हम फिर रंगेगे .....!
    क्या ऐसा होगा ..
    सपना पूरा होगा .!

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  3. सब एक जुट प्रयास करेंगे तो जरुर पूरा होगा यह सपना..

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  4. Mishra ji, Maafi chahunga, Devnagri mein type karna mere liye eik mushkil kaam hai.
    Jugni ki waapsi asambhaw nahi to mushkil avashya hai.
    Ab pedon ke girne se ghonsle nasht nahi hote kyonki parindey bhi jaan gaye hein ki agar jeevan bitana hai to ghonsla kisi lakdi, phool, patti evam jeevan yukt ped par nahi waran mobile tower par banana hoga.
    Kya vidambana hai, soch kar hi rom rom kaanp uthta hai.
    Kya hum kabhi woh geet ga payenge ........... HARI HARI VASUNDHARA PAR NEELA NEELA YEH GAGAN...........kya Vasundhara hari bhari rahegi aane waale varshon mein?
    But, kehte hein na ki ummeed nahi chhodni chahiye isliye let us all hope............... WOH SUBEH KABHI TO AAYEGI ...... when we all shall sing. CHUN CHUN KARTI AAYI CHIDIYA ..........

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  5. POORA HOGA SAPNA

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