फ़ोटो साभार: मुदित गुप्ता |
देवेन्द्र प्रकाश मिश्र* विलुप्त होने की कगार पर हैं दुधवा के तेदुआं, बाघों को बचाने के लिये हो-हल्ला मचाने वाले लोगों ने बाघ
के बाद जंगल के दूसरे नंबर के शिकारी जीव तेंदुआ को भुला दिया है। इससे बाघों की सिमटती दुनिया के साथ ही तेदुंआ भी अत्याधिक दयनीय स्थिति में पहुंच गया है। इसे भी बचाने के लिये समय रहते सार्थक एवं दूरगामी परिणाम वाले प्रयास नहीं किए गए तो वह दिन भी ज्यादा दूर नहीं होगा जब तेदुंआ भी ‘चीता’ की तरह भारत से विलुप्त हो जाएगा।
के बाद जंगल के दूसरे नंबर के शिकारी जीव तेंदुआ को भुला दिया है। इससे बाघों की सिमटती दुनिया के साथ ही तेदुंआ भी अत्याधिक दयनीय स्थिति में पहुंच गया है। इसे भी बचाने के लिये समय रहते सार्थक एवं दूरगामी परिणाम वाले प्रयास नहीं किए गए तो वह दिन भी ज्यादा दूर नहीं होगा जब तेदुंआ भी ‘चीता’ की तरह भारत से विलुप्त हो जाएगा।
बिल्ली की 36 प्रजातियों में वनराज बाघ के बाद तेदुंआ चौथी पायदान का रहस्यमयी शर्मिला एकांतप्रिय प्राणी है। बिल्ली प्रजाति के इस प्राणी की तीन प्रजातियां भारतीय जंगलों में पाई जाती है। भारत के जंगलों से इसकी चौथी प्रजाति ‘चीता’ विलुप्त हो चुकी है। भारत-नेपाल सीमावर्ती लखीमपुर-खीरी के तराई वनक्षेत्र में कभी बहुतायत में पाए जाने वाले तेदुंआ आतंक के पर्याय माने जाते थे। धीरे-धीरे बदलते समय और परिवेश के बीच वंयजीव संरक्षण के लिये दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना 1977 में की गई। यहां के बाघों के संरक्षण व सुरक्षा के लिये 1988 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया। 1986 में दुधवा नेशनल पार्क की गणना सूची में 08 तेदुंआ थे। दस साल में इनकी संख्या बढ़ी तो नहीं वरन् 1997 में घटकर मात्र तीन तेदुंआ रह गए और सन् 2001 की गणना में केवल 02 तेदुंआ दुधवा में बचे थे। वर्तमान में इनकी संख्या आधा दर्जन के आस-पास बताई जा रही है। पिछले लगभग डेढ़ दशक के भीतर खीरी जिला क्षेत्र में तीन दर्जन से ऊपर तेदुंआ की खालें बरामद की जा चुकी है, जिन्हे वन विभाग तथा पार्क के अफसरान नेपाल के तेदुंआ की खालें बताकर कर्तव्य से इतिश्री करके अपनी नाकामी पर पर्दा डालते रहे हैं। इसके अतिरिक्त पिछले कुछेक सालों में आधा दर्जन से ऊपर तेदुंआ अस्वाभाविक मौत का शिकार बन चुके हैं। इसमें पिछले माह दुधवा प्रोजेक्ट टाइगर के तहत कतर्नियाघाट वंयजीव प्रभाग क्षेत्र में दो तेदुंओं को ग्रामीणों ने पीटकर मार डाला जबकि दो साल पहले नार्थ-खीरी फारेस्ट डिवीजन की धौरहरा रेंज में ग्रामीणों ने गन्ना खेत में घेरकर एक तेदुंआ को आग से जला कर मौत के घाट उतार दिया था। 27 फरवरी 2010 को कतर्नियाघाट की ही मुर्तिहा रेंज के जंगल में एक चार वर्षीय मादा तेदुंआ का क्षत-विक्षत शव मिला है। इन सबके बीच खास बात यह भी रही कि किशनपुर वन्य-जीव प्रभाग की मैलानी रेंज में मिले तेदुंआ के दो लावारिस बच्चों को तत्कालीन दुधवा के डीडी पी0पी0 सिंह लखनऊ प्राणी उद्यान छोड़ आए थे, ये शावक अब बड़े हो गये हैं, और चिड़ियाघर में कैद, यदि ये अपनी माँ से न बिछड़े होते तो शायद जंगल में स्वछंद विचरण कर रहे होते और दुधवा में तेन्दुओं की वंश-वृद्धि भी हो रही होती, लेकिन शायद इनकी माँ आदम जाति की क्रूर व लालची प्रवृत्ति का निशाना बन गयी हो, या बच्चों की भूख मिटाने के लिए शिकार की खोज में किसी प्रतिद्वन्दी जानवर से संघर्ष करते वक्त मारी गयी हो! अब लखनऊ चिड़ियाघर में ये अनाथ शावक सुहेली और शारदा के नाम से पहचाने जाते हैं।
दुधवा टाइगर प्रोजेक्ट की असफलता सर्वविदित हो चुकी है। बाघों को संरक्षण देने में किए जा रहे अति उत्साही प्रयासों के दौरान वन विभाग के जिम्मेदार आलाअफसरों ने दुधवा नेशनल पार्क के अंय वन्य जीव-जंतुओं का संरक्षण और जंगल की सुरक्षा को नजरंदाज कर दिया है। परिणाम स्वरूप बिल्ली प्रजाति का ही बाघ का छोटा भाई तेदुंआ यहां अपने अस्तित्व को बचाए रखने हेतु दयनीय स्थिति में संघर्ष कर रहा है, और इस प्रजाति का सबसे बलशाली विडालवंशी लायन यानी शेर गुजरात के गिरि नेशनल पार्क तक ही सीमित रह गए हैं । लुप्तप्राय दुर्लभ प्रजाति के वंयजीवों की सूची में प्रथम स्थान पर मौजूद तेदुंआ के संरक्षण एवं सर्वद्धन के लिये अलग से परियोजना चलाए जाने की जरूरत है। समय रहते अगर कारगर व सार्थक प्रयास नहीं किए गए तो तराई क्षेत्र से ही नहीं वरन् भारत से तेदुंआ विलुप्त होकर किताबों के पन्नों पर सिमट जाएगें।
-देवेन्द्र प्रकाश मिश्र,( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है, ब्लैक टाइगर अखबार के संपादक, वन्य-जीवन के मसलों पर लेखन, खीरी जनपद के दुधवा टाइगर रिजर्व के निकट पलिया शहर में रहते हैं, इनसे dpmishra7@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं)
जंगल का राजकुमार तभी बचेगा जब हरामखोरों की जगह नमक हलालों को प्रकृति की सुरक्षा में लगाया जायेगा, यहाँ तो लोग नौकरी बचाने और पैसा कमाने का धन्धा कर रहे हैं!
ReplyDeleteजंगक के राज्कुमार को आपने बचाने का सही तराका च=चुना है मैने भी इस विष्य पर ब्लॉग लिखा है जरुर पढें http://bit.ly/9Ctt9K
ReplyDeleteटी शर्ट पहन कर एस०एम०एस करते, ब्लाग लिखते हुए रंगा-बिल्ला टाइप के लोग वन्य जीव प्रेमी बन कर चले है बाघ बचाने, डा० कुमारेन्द्र सिंह के शब्दों में भ्रूण हत्या में लिप्त इस देश के लोग यानी बहू-बेटियों के हत्यारे अब बाघ बचायेंगे लेकिन कैसे!
ReplyDeleteजैक नाम का रंगा-बिल्ला ब्लाग लिखेगा! शायद यही कर पायेगा या इसका विरोध पर बाघ बचाने की कूबत इसमे क्या इसके खानदान में नही होगी!
ReplyDeleteजहाँ माँ-बाप की जातियों में इतना घाल-मेल हो वह किसी प्रजाति (बाघ) के संरक्षक क्या बनेंगें, क्योंकि हरामियों की कोई जाति ही नही होती
ReplyDeletemishra jee apka lekh bahut dinon baad padha kya haal hain aapke
ReplyDeletemain abhi pichhli fort night men hi gaya tha palia se sampurnanagar ghar ke liye !!!
neelu bhaai se baat huee thi aapke bare men
call me pliz 9838659380
dp bhai, apka lekh achchha laga, muddo par bat karte rahna chahiye,
ReplyDeletesalmreporter.lmp@gmail.com
KK JI, BIHAR ME EK TIGER KI MAUT HUI,MOAT KA MAJAA HAR JINDA KO CHAKHNA HAI,LEKIN IN BEJUBANO KI KYA AISI HI MAUT HOGI ?
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