तीन तालाब और दर्जनों टांके
नाथू बा जब फौज की नौकरी छोड़कर आए तो रतकुडिया गांव भीषण पेयजल संकट का सामना कर रहा था। सरकारी पाइप लाइन थी नहींं। बारिश का पानी ज्यादा नही टिकता। इस पर उन्होंने गांव वालों से मिलकर कुछ करने को कहा। कुछ ने साथ दिया, कुछ ने अनसुना कर दिया। नाथू बा ने हार नहीं मानी। पहले एक टांका खुदवाया और फिर तालाब। उन्होंने रतकुडिय़ा के रेतीले धोरों के बीच तीन पक्के तालाबों और करीब दो दर्जन से अधिक टांकों का निर्माण करवाया है। यही नहीं उन्होंने इन तालाबों के तलों में सीमेंट की फर्श और चारों ओर पक्की दीवारें बनवा दी, ताकि पानी लम्बे समय तक रह सके। बरसात का पानी संग्रहीत करने के लिए उन्होंने आसपास की पहाडिय़ों से बहकर आने वाले नालों को नहरों का रूप भी दे दिया।
अकाल में भी भरपूर पानी
नाथू बाबा की मेहनत अकाल में भी रंग ला रही है। रतकूडिय़ां से करीब दो किलोमीटर दूर स्थित नाथूसागर पर आस पास की ढाणियां ही नहीं क्षेत्र के कई परिवार निर्भर है। मवेशियों के लिए भी इसमें साल भर पानी रहता है। इसके लिए तालाब के पास ही अलग हौद बना हुआ है। अकाल के वक्त आसपास के खेतों की फसलें भी नाथूसागर व अन्य तालाबों से सींच ली जाती है।
पक्षी सेवा भी
नाथू बाबा तालाब के लिए सहयोग राशि लेने पहुंचते है, लेकिन कई लोग नगदी की बजाय धान उनकी झोली में डाल देते हैं। इस धान का भण्डार पक्षी सेवा में काम आ रहा है। त्यागी बताते हैं कि रोजाना करीब एक बोरी अनाज कबूतरों व पक्षियों के लिए वे घर के पास ही बने चबूतरे पर डालते हैं। इन पर पूरे दिन लगा रहता है पक्षियों का जमघट।
गांव वालों ने किया काम का मान
नाथू बा को न तो आज तक सरकार और प्रशासन ने कोई सम्मान दिया और न ही कभी बाबा ने सम्मान की आशा की। लेकिन ग्रामीणों ने उनके प्रयासों का सम्मान करते हुए उनके द्वारा बनाए गए सबसे बड़े तालाब का नामकरण उनके नाम पर नाथूसागर कर जरूर उनके काम का मान किया।
इंजीनियर पोता-बहू अमरीका में
नाथू बा त्यागी दिखने में तो बहुत ही साधारण से नजर आते हैं, लेकिन उनके ज्येष्ठ पुत्र कंवराराम नौसेना से सेवानिवृत्त होने के बाद मुम्बई में रह रहे हैं। त्यागीजी का पोता रामकिशोर और उसकी पत्नी दोनों ही पेशे से इंजीनियर है और अभी अमेरिका में सेवारत हैं। हालांकि नाबू बा अब बीमार रहने लगे हैं और उनका मिशन भी धीमे पडऩे लगा है, लेकिन उनके होंसलों में आज भी पहले जितने ही बुलंद हैं। वे कहते हैं कि टांके और तालाब ही उनके परिवार हैं। अंतिम सांस तक वे इनकी रक्षा करते रहेंगे।
जीनेश जैन (लेखक राजस्थान पत्रिका में मुख्य उप-संपादक हैं, इससे पूर्व यू०एन०आई० में जर्नलिस्ट के तौर पर वर्षों का कार्यानुभव, पर्यावरण व जमीनी मसायल पर बेहतरीन लेखन, इनसे jinesh.jain@epatrika.com पर संपर्क कर सकते हैं।)
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