वन्य जीवन एवं पर्यावरण

International Journal of Environment & Agriculture ISSN 2395 5791

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बीती सदी में बापू ने कहा था

"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

ये जंगल तो हमारे मायका हैं

Feb 21, 2010

एक और तेंदुए को ग्रामीणों ने मार गिराया

©Krishna Kumar Mishra
दुधवा लाइव डेस्क* तराई में एक और जानवर की मौत जिसे सरकारों ने वाइल्ड लाइफ़ एक्ट के तहत सरंक्षित प्रजाति के अन्तर्गत सेड्यूल वन में रखा है! कतर्नियाघाट वन्य-जीव विहार के मूर्तिहा रेन्ज में १९/२० फ़रवरी की रात को सेमरी घटही गाँव में एक तेन्दुए को ग्रामीणों ने घेर कर मार दिया, गौरतलब हो कि कतर्निया घाट वन्य-जीव विहार प्रोजेक्ट टाइगर के तहत दुधवा टाइगर रिजर्व का हिस्सा हैं, और तराई के जंगलों में तेन्दुओं का तादाद बस उंगलियों पर गिनने लायक बची है। इसके अलावा मई २००८ में इसी वन्य-जीव-विहार के निकट जिला खीरी की धौरहरा रेन्ज के एक गाँव में हज़ारों लोगों की भीड़ ने बड़ी ही दुर्दान्तता के साथ सरकारी अमले की मौजूदगी के बावजूद तेन्दुए पर ईंट और पत्थरों से हमले किए, फ़िर गोलिया चलाई, इसके बाद उसे जिन्दा ही आग में जला दिया, अभी तक जाँच चल रही हैं! इसके अलावा पिछले एक वर्ष में तीन तेन्दुओं को ग्रामीणों ने मार डाला, वाइल्ड लाइफ़ प्रोटेक्शन एक्ट  और सरकार के तमाम भागीरथी प्रयासों के बावजूद!
जंगल  तेन्दुओं का बाहर आना और ग्रामीणों के मवेशियों पर हमलें करने के पीछे क्या कारण इन पर भी तो विचार होना चाहिए! क्या जंगल में इन मांसाहारी शिकारी जानवरों का भोजन यानी शिकार तो नही कम पड़ गया, क्या इन जानवरों के शिकार को आदमी अपना शिकार तो नही बना रहा है, जैसा कि रोज खबरे मिलती हैं,
ग्रामीणों द्वारा जंगलों और गाँव की आबादी (ग्राम पंचायतों की जमीनें जो गाँव के आस-पास एक रिक्त घेरा मनाती हैं) पर अवैध कब्ज़ा। जिससे तमाम अवारा मवेशी इन जगहों मौजूद घास और खरपतवार से अपना पोषण करते थे, और जंगली जीव इन्ही तक आकर रह जाते थे। एक और बात गाँवों का बदलता परिवेश, जिसमें मवेशी या तो खुला घूमते थे या फ़िर घरों से दूर उनके आवास बनाये जाते थे, किन्तु अब प्रत्येक ग्रामीण मवेशी अपने घर पर ही बाँधता हैं, नतीजतन शिकारी व भूखे जंगली जनवरों की आवा-जाही ग्रामीणों के घरों तक हो गयी। फ़िर कोई भी जंगली जीव इरादतन किसी स्वार्थ या द्वेष के कारण किसी को नुकसान नही पहुंचाता उसे तो अपनी भूख मिटानी होती है, और हाँ इस धरती पर सभी को हक है अपनी भूख मिटाने का, केवल मनुष्य ही इस मूल-भूत अधिकार का स्वामी नही है, इस लिए जंगलों और वहां के बाशिन्दों के इलाकों में आदम जाति को घुसपैठ न करे और न ही उनके घर (जंगल) और शिकार को हानि पहुंचाये, क्यों कि यदि ये जानवर प्रकृति प्रदत्त गुणों को छोड़ दे, जैसा कि वे कभी-कभी मजबूरी में करते है, तो फ़िर क्या होगा मनुष्य का। जबकि मनुष्य बहुत पहले ही उस इंस्टिकंट को अलविदा कह चुका है, जिसे प्रकृति ने उसके जीन में कोड किया था।
लेकिन लगता है कि शायद अब आदमी को लग गया हैं, कि यह लोकतन्त्र सिर्फ़ और सिर्फ़ आदमियों के लिए है।
फ़ोटो- दो वर्ष पूर्व खीरी-बहराइच जिले में मारे गये तेन्दुयें का है,

1 comment:

  1. this is an encore of what happened in Amer (near Jaipur, Rajasthan) a month back, where a leoprad strayed into the inhabited area.

    core area and buffer areas of any protected area especailly the buffer area needs to be delineated carefully and honored. Humans can do that while animals knows no boundaries!

    Krishna Kumar

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