दुधवा लाइव डेस्क* २५/२६ फ़रवरी २०१० को दुधवा टाइगर रिजर्व के अन्तर्गत कतरनियाघाट वन्य जीव
विहार के मूर्तिहा इलाके में, तकरीबन ४ वर्ष की मादा तेन्दुआ का शव बरामद हुआ। "कतरनियाघाट वेलफ़ेयर सोसाइटी प्रमुख दबीर हसन के मुताबिक, इस तेन्दुए के मृत शरीर पर चोट के निशान तो पाये गये है, और यह किसी बाघ या तेन्दुए से टकराव के कारण हुए होंगे, चूंकि शव के सभी अंग मौजूद हैं, इस लिए यह माना जा रहा है, कि तेन्दुए की मौत के पीछे शिकार वजह नही है। बल्कि जंगल में अस्तित्व के संघर्ष का परिणाम है। " गौरतलब है, कि प्रिन्स ऑफ़ जंगल यानी तेन्दुआ अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए इन बदलती परिस्थितियों में संघर्षरत है, घटते आवास, इनके शिकार में आई कमी और पोचिंग जैसे प्रमुख कारणों से, ये विलुप्ति की डगर पर हैं, सन २००५ में नष्ट हो गये भारतीय चीता, तमाम जंगलों से समाप्त हो रहे दोयम दर्ज़े के माँसभक्षी जैसे जंगली कुत्ता, सियार, भेड़िया इस बात के सूचक हैं, कि अब इन जगहों से जंगल के सर्वोच्च शिकारी जानवर भी जल्द ही नष्ट हो जायेंगे। क्यों की दोनों तरह के जीवों की जरूरते तकरीबन एक सी होती हैं! और इन सब बातों यानी इन्डीकेशन्स को देखने के बावजूद हमारी चेष्टायें सिर्फ़ कागज़ी ही हैं।
गौरतलब है, कि इसी इलाके में २० फ़रवरी को मूर्तिहा रेन्ज़ में ही स्थित सेमरी घटही गाँव में एक मादा तेन्दुआ को ग्रामीणों ने पीट-पीट कर मार डाला, इसकी गलती मात्र इतनी थी की जंगल में ही मौजूद इस गाँव के मवेशियों के बाड़े में चली गयी थी।
विहार के मूर्तिहा इलाके में, तकरीबन ४ वर्ष की मादा तेन्दुआ का शव बरामद हुआ। "कतरनियाघाट वेलफ़ेयर सोसाइटी प्रमुख दबीर हसन के मुताबिक, इस तेन्दुए के मृत शरीर पर चोट के निशान तो पाये गये है, और यह किसी बाघ या तेन्दुए से टकराव के कारण हुए होंगे, चूंकि शव के सभी अंग मौजूद हैं, इस लिए यह माना जा रहा है, कि तेन्दुए की मौत के पीछे शिकार वजह नही है। बल्कि जंगल में अस्तित्व के संघर्ष का परिणाम है। " गौरतलब है, कि प्रिन्स ऑफ़ जंगल यानी तेन्दुआ अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए इन बदलती परिस्थितियों में संघर्षरत है, घटते आवास, इनके शिकार में आई कमी और पोचिंग जैसे प्रमुख कारणों से, ये विलुप्ति की डगर पर हैं, सन २००५ में नष्ट हो गये भारतीय चीता, तमाम जंगलों से समाप्त हो रहे दोयम दर्ज़े के माँसभक्षी जैसे जंगली कुत्ता, सियार, भेड़िया इस बात के सूचक हैं, कि अब इन जगहों से जंगल के सर्वोच्च शिकारी जानवर भी जल्द ही नष्ट हो जायेंगे। क्यों की दोनों तरह के जीवों की जरूरते तकरीबन एक सी होती हैं! और इन सब बातों यानी इन्डीकेशन्स को देखने के बावजूद हमारी चेष्टायें सिर्फ़ कागज़ी ही हैं।
गौरतलब है, कि इसी इलाके में २० फ़रवरी को मूर्तिहा रेन्ज़ में ही स्थित सेमरी घटही गाँव में एक मादा तेन्दुआ को ग्रामीणों ने पीट-पीट कर मार डाला, इसकी गलती मात्र इतनी थी की जंगल में ही मौजूद इस गाँव के मवेशियों के बाड़े में चली गयी थी।
एक दूसरी घटना में, २६ फ़रवरी २०१० को वन्य-जीव विहार के कारीकोट इलाके में एक १४ वर्ष की लड़की जंगल में जलौनी लकड़ी बीनते वक्त तेन्दुए का शिकार बनी, जाहिर हैं जंगलों में मनुष्य का बढ़ता दखल ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है, किन्तु सज़ा जंगली जानवर को भुगतनी पड़ती है, कभी कैद तो कभी स्रकारी गोली का शिकार बनते हैं ये जीव!
अभी हाल में एक तेन्दुए का बच्चा भटक कर आबादी में चला आया, जिसे बेहोश कर कानपुर चिड़ियाघर पहुंचाया गया, क्या इस तेन्दुए की माँ ऐसी स्थित में मानसिक तौर पर आक्रोशित नही होगी? और क्या हमने एक तेन्दुए को जंगल के स्वच्छंद व प्राकृतिक आवास के बजाय कारावास में नही ढ़केल दिया? अतिक्रमणकारी जनमानस के दबाव में भी जो निर्णय ले लिए जाते है, वो वन्य-जीवों के पक्ष में बिल्कुल नही होते।
कतरनियाघाट तराई का वह हिस्सा है जहाँ जंगल का राजकुमार यानी तेन्दुआ अभी भी बेहतरी में हैं, दबीर हसन के मुताबिक कतरनियाघाट में सरकारी गणना के अनुसार ३२ तेन्दुएं है, किन्तु दबीर हसन इस संख्या से भी अधिक तेन्दुओं की संभावना जता रहें हैं। कुल मिलाकर तराई के जंगलों की जैव-विविधिता फ़िलवक्त भी संमृद्ध है, बशर्ते इसकी सुरक्षा, आवास और भोजन सभी में संतुलन कायम करने के भागीरथी प्रयास की दरकार है!
आखिर में क्या हम अपनी मानव जाति से यह उम्मीद कर सकते हैं, कि वह अपने अतीत की तरह जंगल और उनके जीवों से समन्वय स्थापित कर रह सकता है, या फ़िर एनीमल किंगडम और ह्यूमन! किंगडम को अलाहिदा कर दिया जाय!
जंगल में बाघ और तेन्दुओं के कम होते शिकार भी टकराव का एक कारण है, वनों का विस्तार व शाकाहारी जन्तुओं की सख्या को बड़ाने के उचित प्रयास किये जाने चाहिये
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