ग्रीन बी-ईटर फ़ोटो साभार: सतपाल सिंह |
कृष्ण कुमार मिश्र* भारत के कुछ पूर्व नेताओं ने मिसाले कायम की पर्यावरण व वन्य-जीव संरक्षण में, इस सन्दर्भ में पंडित जवाहर लाल नेहरू का एक कथन प्रासंगिक है "चिडियों को दूर से देख लेना और आनंद का अनुभव करना ही काफ़ी नही है। अगर हम उन्हे पहचाने, उनके नाम को जाने और उन्हे चहचहाते सुनकर पहचान सकें, तो हमारा आनंद और बढ़ जायेगा। अगर हम उनके साथ हिल-मिल जाएँ तो वे हर जगह हमारे साथी हो सकते हैं।
एक बार इन्दिरा गाँधी भरतपुर पक्षी विहार में भ्रमण करते हुए चिड़ियों की 80 प्रजातियों को पहचाना और उनके नाम बतायें, प्रकृति और जीवों के प्रति उनके इस ज्ञान से उनके सहयोगी और अधिकारी हतप्रभ थे।
क्या आप को लगता है कि आज कोई ऐसा नेता है जो भारत वर्ष की धरती पर मौजूद हमारे सहजीवियों के प्रति जागरुक है!.....यकीनन नही क्योकि उन्हे तो अपनी आदम जाति की बदहाली से ही राफ़्ता नही तो वे जानवरो की फ़िक्र क्या करेंगे। क्या उनकी बातें जनमानस को प्रभावित करती हैं?
गाँवों में कट चुके पुराने आम के बगीचों में जहाँ झाड़िया, घासें और सुन्दर लतायें, विभिन्न प्रकार के पक्षियों, कीटो, तितलियों आदि को शरण देते थे, अब वे नदारद है, साथ ही नदारद हो गयी वे प्रकृति की रंगबिरंगी सुन्दर कृतियां भी जिन्हे हमारे लोग अपनी बोलियों में विभिन्न नामों से पुकारते थे। हाँ इन वीरान जगहो पर जहर (पेस्टीसाइड व फ़र्टीलाइजर) के दम पर फ़सले अवश्य उगा रहे है, जो बचे हुए जीवों को विलुप्त करने में अपनी महती भूमिका अदा कर रही हैं। प्रकृति स्वंम में सक्षम होती है संतुलन स्थापित करने में, बशर्ते उसे छेड़ा न जाय। मैनेजमेंट के दौर में जो प्रयोग किए जा रहे है, वे सन्तुलन को ही नही बिगाड़ रहे बल्कि भविष्य में मानव जाति के लिए ही घातक होगे। आखिर हम उस अवधारणा को क्यो नही अपनाते, जो प्रकृति की नियति में है। यदि बाज़ नही होगा तो साँपों की तादाद बढ़ जायेगी, और यदि साँप नही होंगे तो चूहे बढ़ जायेंगे, यदि चूहे बढ़े तो यकीनन किसान की फ़सल नष्ट हो जायेगी......फ़सल नष्ट हुई तो.......। कुल मिलाकर प्रकृति में सभी कुछ महत्व पूर्ण है। और ये सब एक दूसरे को कही न कही प्रभावित करते है।
अब सिर्फ़ सरकारी प्लान बनते है, और कागज़ पर पूरे हो जाते है। इस बात का ताजा उदाहरण है प्रोजेक्ट टाइगर, करोड़ों खर्च हो गये और न जाने कितना जन-बल झोक दिया गया इन प्रयासों किन्तु सब व्यर्थ......आज सिर्फ़ 1411 बाघ ही बचे है पूरे भारत में! किन्तु क्या किसी ने सोचा है कभी, कि तितलियों, पंक्षियों, घासों, अनाजों की कितनी प्रजातियां विलुप्त हो गयी है। अब सवाल ये है कि अनियोजित विकास की चौतरफ़ा दौड़ में आखिर हमें क्या हासिल हो रहा है। चरागाह, तालाब, नदियां, जंगल और उनमे रहने वाले जीवों का निरन्तर विनाश जारी है। किन्तु हम अपने प्राकृतिक खज़ाने को लूटते हुए विकास के गीत गाते जा रहे हैं।...सड़को पर बसता हिन्दुस्तान.............
इस मुल्क के लम्बरदारों को कैसे नींद आ जाती है, जहाँ करोड़ों लोग भूखे है बदहाल है, जानवर किस हाल में इसका तो जिक्र भी मुश्किल है। क्या यही राज़ धर्म है? दुधवा लाइव
फ़ोटो साभार: सतपाल सिंह ( आप वन्य-जीव फ़ोटोग्राफ़र है। उत्तर प्रदेश के खीरी जनपद में रहते हैं, इनसे आप 09616338183 पर संपर्क कर सकते हैं।)
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